मजदूरों के पत्र – हम सब मेहनतकश आदमखोर पूँजीपतियों की लूट का शिकार हैं।
मैंने अपने परिवार की गाढ़ी कमाई के सहारे डिप्लोमा किया। इसके बाद गुुड़गाँव, रेवाड़ी, बद्दी, डेराबस्सी, पानी आदि स्थानों पर नौकरी के लिए आवेदन दिया, लेकिन कहीं भी सिफ़ारिश या जान-पहचान न होने के कारण मेरे आवेदनों का कोई जवाब नहीं आया। उसके बाद मैनें दो साल एसएससी-एचएसएससी की कोचिंग शुरू कर दी। लम्बी तैयारी के बाद कोचिंग की धन्धेबाज़ी और सरकारी नौकरियों की बेहद कमी के कारण मैं हताश हो गया। और उसके बाद मैं कैथल की चावल मिल में मज़दूर के रूप में काम करने लगा। वहाँ मुझे 12 घण्टे के 7500 रुपये मिलते थे। इसके अलावा न कोई छुट्टी और न ही कम्पनी की तरफ़ से कोई चाय या फिर लंच के टाइम-सीमा तय नहीं थी। मुझे वहाँ चावल पोलिश की बोरिया मशीन से हटाकर 25-30 फ़ीट की दूरी पर उठाकर ले जानी थी। जिसके लिए बिल कार्ट होनी चाहिए।