Category Archives: अन्तर्राष्ट्रीय

दुनिया की सबसे बड़ी तकलोलॉजी कम्पनियों में भारी छँटनी

जिस समय कोरोना महामारी अपने चरम पर थी, उस समय दुनिया के तमाम देशों में लॉकडाउन की वजह से उत्पादन ठप हो जाने के कारण ज़्यादातर सेक्टरों में कम्पनियों के मुनाफ़े में गिरावट आयी थी। लेकिन उस दौर में चूँकि लोग ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों पर पहले से ज़्यादा समय बिताते थे इसलिए कम्प्यूटर व इण्टरनेट की दुनिया से जुड़े कुछ सेक्टरों जैसे आईटी, ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया आदि में चन्द इज़ारेदार कम्पनियों के मुनाफ़े में ज़बर्दस्त उछाल देखने में आया था। लेकिन लॉकडाउन हटने के बाद ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों पर लोगों की मौजूदगी के समय में कमी आने की वजह से और विश्व पूँजीवाद के आसन्न संकट की आहट सुनकर इन कम्पनियों को भी अपने मुनाफ़े की दर में गिरावट का ख़तरा दिखने लगा है।

आज़ाद ज़िन्दगी के लिए ज़ालिम इस्लामी कट्टरपन्थी पूँजीवादी निज़ाम के ख़िलाफ़ ईरान की औरतों की बग़ावत

गत 16 सितम्बर को ईरान की राजधानी तेहरान में महसा अमीनी नामक कुर्द मूल की 22 वर्षीय ईरानी युवती की मौत के बाद शुरू हुआ आन्दोलन सत्ता के बर्बर दमन के बावजूद जारी है। ग़ौरतलब है कि महसा को 13 सितम्बर को ईरान की कुख्यात नैतिकता पुलिस ने इस आरोप में गिरफ़्तार करके हिरासत में लिया था कि उसने सही ढंग से हिजाब नहीं पहना था और उसके बाल दिख रहे थे। हिरासत में उसको दी गयी यंत्रणा की वजह से वह कोमा में चली गयी और तीन दिन बाद उसकी मौत हो गयी।

गाम्बिया में कफ़ सिरप से 69 बच्चों की मौत

मरियम कुयतेह, मरियम सिसावो, इसातु चाम गाम्बिया में रहने वाले उन कुछ लोगों के नाम हैं, जिन्होंने अपने मासूम बच्चों को ख़राब गुणवत्ता की दवा के कारण खो दिया। बीते माह पश्चिमी अफ़्रीका के देश गाम्बिया में 69 मासूम बच्चों की मौत की ख़बर आयी, मरने वाले बच्चों में 70 फ़ीसदी बच्चे 2 साल से कम उम्र के थे। सर्दी-ज़ुकाम की शिकायत के उपरान्त इन तमाम अभिभावकों ने अपने बच्चों को वहाँ के बाज़ारों मे उपलब्ध भारत में निर्मित कफ़ सिरप दिये थे, जिसके सेवन के बाद बच्चों की तबीयत और भी बिगड़ने लग गयी व उनकी मौत हो गयी।

बढ़ती महँगाई के ख़िलाफ़ फ़्रांस की जनता उतरी सड़कों पर

अक्टूबर महीने में फ़्रांस ने मज़दूरों की कई हड़तालें देखीं। अनुपात में ये हड़तालें इसी साल हुई मार्च और जनवरी की हड़तालों से कई गुना बड़ी थीं। इन हड़तालों की वजह फ़्रांस में लगातार बढ़ती महँगाई है जिसने एक तरफ़ तो वहाँ के पूँजीपति वर्ग को अकूत मुनाफ़ा कूटने का अवसर दिया है वहीं दूसरी तरफ़ मेहनतकश जनता की कमर तोड़ रखी है। फ़्रांस की मेहनतकश आबादी भयानक महँगाई से जूझ रही है, जो कि लगातार तीव्र हो रहे पूँजीवादी संकट का ही नतीजा है, जिसे ब्रुसेल्स की नौकरशाही की नीतियाँ और भी तीखा करने का काम कर रही हैं जो यूक्रेन में रूस के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के असफल आर्थिक और छद्म सैन्य युद्ध को तेज़ करने पर तुली हुई है।

इंग्लैण्ड का नया दक्षिणपन्थी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और बेगानी शादी में दीवाने अण्डभक्त

अभी जब इंग्लैण्ड में घोर मज़दूर-विरोधी, धुर-दक्षिणपन्थी कंज़रवेटिव पार्टी का भारतीय मूल का ब्रिटिश कुलीनवादी, धनपशु ऋषि सुनक लिज़ ट्रस नामक एक अन्य दक्षिणपन्थी नेत्री को हटाकर इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री बना तो देश-विदेश में रहने वाले सारे खाते-पीते उच्च व उच्च मध्यवर्गीय भारतीय हर्षोन्माद में ऐसे बौरा गये मानो भारत ने इंग्लैण्ड से दो सौ साल की ग़ुलामी का बदला लेते हुए इंग्लैण्ड को अपना उपनिवेश बना लिया हो!

ताइवान को लेकर अमेरिका व चीन के बीच तेज़ होती अन्तर-साम्राज्यवादी होड़

विश्व पूँजीवाद के अन्तरविरोध दुनिया के विभिन्न हिस्सों में तीखे रूप में प्रकट हो रहे हैं। अन्तर-साम्राज्यवादी होड़ के नतीजे के रूप में यूक्रेन में शुरू हुआ युद्ध अभी तक जारी है। इसी बीच 3 अगस्त 2022 को अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने अपनी दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा के दौरान ताइवान की राजधानी ताइपेई का भी दौरा किया जिसके बाद से वैश्विक राजनीति में उथल-पुथल मच गयी। दरअसल चीन ताइवान को एतिहासिक तौर पर अपना हिस्सा मानता है और उसका देर-सबेर चीन के साथ विलय होना निश्चित मानता है।

एक बार फिर विकल्पहीनता की स्थिति से गुज़रती श्रीलंका की जनता

गोटाबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति पद से हटाने के बाद भी श्रीलंका की जनता सड़कों पर है। श्रीलंका की संसद ने रानिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति चुना है लेकिन जनआन्दोलन अभी भी जारी है। लोगों का कहना है कि रानिल विक्रमसिंघे जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि नहीं है इसलिए लंका की जनता उसे राष्ट्रपति की तरह नहीं स्वीकार करेगी। विक्रमसिंघे के चुने जाने से भी जनता को किसी भी तरह के परिवर्तन की कोई उम्मीद नहीं है। यह सही भी है क्योंकि रानिल विक्रमसिंघे उसी सम्भ्रान्त शासक परिवार का हिस्सा है जो देश के संसाधनों और मज़दूर-मेहनतकश जनता की मेहनत को लूटने वाली देशी-विदेशी पूँजी की ख़िदमत में आज़ादी के बाद से लगा हुआ है।

श्रीलंका का संकट : नवउदारवादी नीतियों की ख़ूनी जकड़ का विनाशकारी परिणाम

श्रीलंका की आम जनता अपने सबसे भयंकर दु:स्वप्न से गुज़र रही है। सभी मूलभूत सुविधाओं से एक-एक कर वह वंचित होती जा रही है। वह आज ईंधन, बिजली, रसोई गैस, पेट्रोल की समस्या से जूझते हुए दाने-दाने को मोहताज है। देश की एक बड़ी मेहनतकश आबादी दिन में एक समय भोजन कर रही है। कइयों को वह भी नसीब नहीं है। जीवनरक्षक दवाइयों के अभाव में अस्पतालों में लोग बे-मौत मर रहे हैं। दवाइयों और बिजली के अभाव में ऑपरेशन और अन्य चिकित्सा प्रक्रिया स्थगित करनी पड़ रही है जिससे हज़ारों की मौत हो रही है।

श्रीलंका और पाकिस्तान में नवउदारवादी पूँजीवादी आपदा का क़हर झेलती आम मेहनतकश आबादी

वैसे तो आज के दौर में दुनियाभर की मेहनतकश जनता मन्दी, छँटनी, महँगाई, आय में गिरावट और बेरोज़गारी का दंश झेल रही है, लेकिन कुछ देशों में अर्थव्यवस्था की हालत इतनी ख़राब हो चुकी है कि वे या तो पहले ही कंगाल जो चुके हैं या फिर कंगाली के कगार पर खड़े हैं और उनका भविष्य बेहद अनिश्चित दिख रहा है। ये ऐसे देश हैं जिनकी अर्थव्यस्थाएँ या तो बहुत छोटी हैं या उनका औद्योगिक आधार बहुत व्यापक नहीं है जिसकी वजह से वे बेहद बुनियादी ज़रूरतों की चीज़ों के लिए भी आयात पर निर्भर हैं या फिर उनकी अर्थव्यवस्थाएँ दशकों से विदेशी क़र्ज़ों के चंगुल में फँसी हैं।

यूक्रेन में जारी साम्राज्यवादी युद्ध का विरोध करो!

दो साम्राज्यवादी ख़ेमों की आपसी प्रतिस्पर्धा की क़ीमत विश्व की आम जनता एक बार फिर चुका रही है। एक ओर साम्राज्यवादी रूस और दूसरी ओर साम्राज्यवादी अमेरिका के नेतृत्व में नाटो (उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन)। इन दोनों साम्राज्यवादी ख़ेमों की आपसी प्रतिस्पर्धा में यूक्रेन की जनता युद्ध की भयंकर आग में झुलस रही है। 24 फ़रवरी को साम्राज्यवादी रूस ने यूक्रेन पर युद्ध की घोषणा कर दी। इस घोषणा ने रूस और अमेरिका के नेतृत्व में नाटो के बीच महीनों से चल रहे वाकयुद्ध को वास्तविक युद्ध में बदल दिया है, हालाँकि नाटो इस युद्ध से किनारे हो गया है और यूक्रेन की जनता पर रूसी साम्राज्यवाद को क़हर बरपा करने के लिए खुला हाथ दे दिया है।