Category Archives: अन्तर्राष्ट्रीय

महामारी के दौर में भी यूक्रेन और ताइवान में बजाये जा रहे युद्ध के नगाड़े

हाल के महीनो में कोरोना वायरस की नयी क़िस्म ओमिक्रॉन के दुनियाभर में फैलने की ख़बर सुर्ख़ियों में रही। ऐसे में किसी मानवीय व्यवस्था में यह उम्मीद की जाती कि दुनिया के तमाम देश एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए इस वैश्विक महामारी से निपटने में अपनी ऊर्जा ख़र्च करते। लेकिन हम एक साम्राज्यवादी दुनिया में रह रहे हैं। इसलिए इसमें बिल्कुल भी हैरत की बात नहीं है कि वैश्विक महामारी के बीच, एक ओर यूक्रेन में, तो दूसरी ओर ताईवान में युद्ध के नगाड़ों का कानफाड़ू शोरगुल लगातार बढ़ता जा रहा है।

कज़ाख़स्तान में आम मेहनतकश जनता की बग़ावत

कज़ाख़स्तान में इस साल की शुरुआत बग़ावत के स्तर तक पहुँच गये मज़दूरों और आम जनता के सत्ता-विरोधी प्रदर्शनों के साथ हुई। ये विरोध प्रदर्शन कज़ाख़स्तान के लगभग सभी बड़े शहरों में हुए और प्रदर्शनकारियों द्वारा कई शहरों और प्रदेशों के प्रशासनिक व पुलिस प्रतिष्ठानों पर क़ब्ज़ा कर लिया गया। देश के सबसे बड़े शहर अलमाती में हवाई अड्डे पर भी प्रदर्शनकारियों ने क़ब्ज़ा कर लिया। राष्ट्रपति कासिम तोकायेव द्वारा तत्काल ही प्रदर्शनकारियों की आर्थिक माँगों को एक हद तक मान लिया गया, देश की सरकार को भंग कर दिया गया तथा ‘कज़ाख़स्तान की सुरक्षा परिषद्’ के चेयरमैन और परदे के पीछे से अभी तक शासन पर नियंत्रण रख रहे भूतपूर्व राष्ट्रपति नूर सुल्तान नज़रबायेव को भी हटा दिया गया।

क्यूबा में साम्राज्यवादी दख़ल का विरोध करो!

जुलाई से ही क्यूबा में विपक्ष के नेताओं के आह्वान पर हज़ारों लोगों के सड़कों पर उतरने की ख़बरें आ रही हैं। बिजली कटौती, खाद्य सामग्री का महँगा होना व कोरोना के नये संस्करण के चलते बीमारी का फैलना प्रमुख कारण थे जिनके ख़िलाफ़ आम जनता में रोष है। परन्तु जब इसके साथ ही अमेरिका के सारे मीडिया चैनल और अख़बार ‘क्यूबा की मदद करो’ और इन आन्दोलनों को ‘जनवाद की बहाली’ बताने का आन्दोलन बताने लगते हैं तो समझ में आता है कि दाल में कुछ काला है!

गिनी में तख़्तापलट : निरंकुश सरकारों और सैन्य तानाशाहों के बीच लम्बे समय से पिस रही है अफ़्रीकी जनता

पश्चिमी अफ़्रीका के देश गिनी में एक बार फिर तख़्तापलट हो गया है। 5 सितम्बर को ‘गिनी विशेष बल’ ने राष्ट्रपति अल्फ़ा कोण्डे को हिरासत में लेते हुए यह ऐलान किया कि देश की हुकूमत अब इनके हाथों में है और अब संविधान रद्द रहेगा। कर्नल मामाडी डौम्बौया, जिसके नेतृत्व में यह तख़्तापलट हुआ है, ने ख़ुद को गिनी का नया राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। पिछले एक साल में पश्चिमी अफ़्रीका में यह चौथा सैन्य तख़्तापलट है। सिर्फ़ पश्चिमी अफ़्रीका ही नहीं बल्कि पूरा अफ़्रीकी महाद्वीप ही अपने उत्तर-औपनिवेशिक काल में भयंकर गृहयुद्धों, सैन्य तख़्तापलट और तानाशाह सत्ताओं से जूझता रहा है।

चीन का एवरग्रान्दे संकट : पूँजीवाद के मुनाफ़े की गिरती दर के संकट की अभिव्यक्ति

चीन के रियल एस्टेट बाज़ार में पैदा हुआ हालिया संकट पूँजीवाद की बुनियादी समस्या यानी लाभप्रभता के संकट का ही लक्षण है। इससे चीन की राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था को ‘कुछ विचलनों के साथ समाजवादी अर्थव्यवस्था’, या ‘किसी क़िस्म की संक्रमणशील अर्थव्यवस्था’ होने के चलते इसे आर्थिक संकटों से मुक्त मानने वाली धारणा निर्णायक तौर पर ध्वस्त हो गयी है। चीन की प्रमुख रियल एस्टेट कम्पनी एवरग्रान्दे के साथ अन्य रियल एस्टेट कम्पनियों का ब्याज़ भर सकने और लाभांश दे सकने की अक्षमता के चलते दिवालिया होने ने यह सिद्ध किया है कि चीन एक पूँजीवादी देश ही है, जिसकी संशोधनवादी सामाजिक फ़ासीवादी क़िस्म की पूँजीवादी राज्यसत्ता के कारण अपनी एक विशिष्टता है।

तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के बदतर हालात

बीते 15 अगस्त को तालिबान द्वारा काबुल पर क़ब्‍ज़ा करने के बाद से अफ़ग़ानिस्‍तान में अफ़रा-तफ़री का आलम है। अमेरिका द्वारा अफ़ग़ानिस्‍तान से अपनी सेना वापस बुलाने के फ़ैसले के बाद यह तो तय था कि वहाँ की सत्ता पर देर-सबेर तालिबान का क़ब्‍ज़ा हो जायेगा, लेकिन यह इतना जल्दी हो जायेगा, इसका अनुमान किसी को भी नहीं था। यही वजह है कि तालिबान के क़ब्‍ज़े की ख़बर सुनते ही हज़ारों की संख्या में काबुलवासी बदहवासी में देश छोड़ने के लिए काबुल के एयरपोर्ट पर जमा होने लगे। काबुल एयरपोर्ट पर क़रीब 15 दिनों तक अफ़रा-तफ़री का माहौल रहा।

बीस साल से जारी युद्ध में तबाही के बाद अफ़ग़ानिस्तान गृहयुद्ध की ओर

अमेरिका की अफ़ग़ानिस्तान से वापसी बीस साल से जारी युद्ध में तबाही के बाद अफ़ग़ानिस्तान गृहयुद्ध की ओर – आनन्‍द सिंह ‘आतंक के ख़ि‍लाफ़ युद्ध’ के नाम पर दो दशक…