पंजाब में क्रान्तिकारी जन संगठनों द्वारा साम्प्रदायिकता विरोधी जन सम्मेलन का आयोजन

बिगुल संवाददाता

22 march convention-2बीते 22 मार्च 2015 को लुधियाना की ई.डब्ल्यू.एस. कॉलोनी (ताजपुर रोड) में पाँच संगठनों टेक्सटाईल-होज़री कामगार यूनियन, पंजाब, नौजवान भारत सभा, कारख़ाना मज़दूर यूनियन, पंजाब, पंजाब स्टूडेंटस यूनियन (ललकार) और बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा साम्प्रदायिकता के विरोध में सम्मेलन का आयोजन किया गया। पंजाब के अलग-अलग इलाक़ों से पहुँचे मज़दूरों, मेहनतक़शों, नौजवानों, विद्यार्थियों, बुद्धिजीवियों ने धार्मिक साम्प्रदायिकता के खि़लाफ़ एकजुट आन्दोलन खड़ा कर जुझारू संघर्ष करने का प्रण किया। यह सम्मेलन महान क्रान्तिकारी शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की 84वीं शहादत वर्षगाँठ को समर्पित किया गया।

साम्प्रदायिकता मुर्दाबाद!, लोक एकता जिन्दाबाद!, अमर शहीदों का पैग़ाम, जारी रखना है संग्राम!, आदि गगन-भेदी नारों और क्रान्तिकारी सांस्कृतिक मंच ‘दस्तक’ द्वारा पेश क्रान्तिकारी गीत-संगीत के साथ शुरुआत हुआ। साम्प्रदायिकता विरोधी इस सम्मेलन को अलग-अलग संगठनों के नेताओं ने सम्बोधित किया।

वक्ताओं ने कहा कि साम्प्रदायिक फासीवाद इस समय बहुत बड़ा खतरा बन चुका है जिसे बहुत गम्भीरतापूर्वक लेना चाहिए। हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथियों की ताक़त अधिक होने के चलते अल्पसंख्यक धर्मों की जनता मुस्लमानों, इसाईयों, सिक्खों पर बड़ा ख़तरा मँडरा रहा है। आर.एस.एस. (भाजपा जिसका राजनीतिक संसदीय संगठन है) अपने, दर्जनों रंग-बिरंगे संगठनों-संस्थाओं द्वारा हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकता का गन्दा खेल खेल रहा है। हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथियों की काली करतूतों का फायदा उठाकर अल्पसंख्यक धर्मों के साम्प्रदायिक कट्टरपंथी भी सभी हिन्दुओं को ही अल्पसंख्यकों का दुश्मन बताकर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे हैं।

22 march convention-3साम्प्रदायिकता फैलाने के पीछे छिपी साज़िशों के बारे में बात करते हुए वक्ताओं ने कहा कि पूँजीवादी हुक्मरान साम्प्रदायिकता फैलाकर, जनता के भाईचारे और वर्गीय एकता को कमज़ोर करके घोर जन-विरोधी उदारीकरण-निजीकरण-भूमण्डलीकरण की नीतियाँ आगे बढ़ाना चाहते हैं। पिछले ढाई दशकों में इन नीतियों ने जनता की हालत बद से बदतर कर दी है और पूँजीवादी हुक्मरानों के खिलाफ़ भारी गुस्सा पैदा हुआ है। इस समय विश्व पूँजीवादी अर्थव्यवस्था और इसी के एक अंग के तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था गम्भीर आर्थिक मन्दी का शिकार है और यह मन्दी लगातार गहराती जा रही है। महँगाई, बेरोज़़गारी, ग़रीबी, बदहाली बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। मज़दूरों को पहले ही न के बराबर श्रम अधिकार हासिल हैं और ऊपर से सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में गम्भीर मज़दूर विरोधी संशोधन किए जा रहे हैं। जनता से सरकारी सेहत, शिक्षा, परिवहन, पानी, बिजली आदि सहूलियतें बड़े स्तर पर छीनी जा रही हैं। जनता से ज़मीनें जबरन छीनकर देशी-विदेशी पूँजीपतियों को दी जा रही हैं और इसलिए घोर जन-विरोधी क़ानून पारित किये जा रहे हैं। ऐसी हालत में जनता के विरोध को कुचलने के लिए ज़रूरी है कि जनता के जनवादी अधिकार छीने जाएँ, जनता में फूट डाली जाये। जैसे-जैसे उदारीकरण की नीतियों को सख्ती से लागू किया गया है वैसे-वैसे साम्प्रदायिक ताक़तें भी और ज़्यादा सक्रिय होती गई हैं और हिन्दुत्ववादी फासीवाद का ख़तरा बढ़ता गया है। केन्द्र में कुछ महीने पहले बनी मोदी सरकार ने उदारीकरण-निजीकरण-भूमण्डलीकरण की नीतियों को सख्ती के साथ लागू करने की प्रक्रिया में तेज़ की है और इसी दौरान हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक ताक़तें और भी आतंक मचा रही हैं। हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथियों द्वारा अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ़ कुत्सा-प्रचार और हिंसक हमलों में बहुत बढ़ोतरी हुई है।

वक्ताओं ने कहा कि धर्म के नाम पर होने वाले दंगों और कत्लेआमों में औरतों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया जाता है। सभी धर्मों के कट्टरपंथी औरतों की मानवीय आज़ादी के घोर विरोधी हैं। हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथी भी यही कुछ करते हैं। हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथी दलितों के भी घोर विरोधी हैं और उन पर जाति आधारित दबाव क़ायम रखना चाहते हैं। पंजाब में यू.पी.-बिहार और अन्य राज्यों से आई जनता के खि़लाफ नफ़रत भड़काने की साजिशें भी तेज़ हुई हैं। खालिस्तानी कट्टरपंथी सिक्खों को सभी हिन्दुओं और अलग-अलग डेरों के पैरोकारों के खिलाफ़ भड़का रहे हैं।

वक्ताओं ने कहा कि सरकारों, पुलिस, प्रशासन, अदालतों से जनता को इंसाफ़ की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। जनता का आपसी भाईचारा और एकजुटता ही जनता का सहारा बन सकती है। सन 1984 के सिक्खों के क़त्लेआम, गुजरात-2002 में मुसलमानों के क़त्लेआम, ओडीशा-2007-08 में ईसाइयों के क़त्लेआम समेत प्रत्येक धार्मिक क़त्लेआम और दंगों में दोषियों को सजा नहीं मिली। जनता का आपसी भाईचारा ही दंगों-क़त्लेआमों में जनता का सहारा बनता रहा है और जनता की एकजुट ताक़त ही इंसाफ़ दिला सकती है।

वक्ताओं ने कहा कि भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू की शहादत को समर्पित इस साम्प्रदायिकता विरोधी सम्मेलन में हमें साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ़ तीखे संघर्ष का प्रण लेना होगा। साम्प्रदायिक फासीवाद के खिलाफ़ संघर्ष क्रान्तिकारी, जनवादी, धर्मनिरपेक्ष, इंसाफ़पसंद जनता से भारी कुर्बानियों की माँग करता है। हिटलर-मुसोलिनी की भारतीय फासीवादी औलादों को मिट्टी में मिलाने के लिए जनता को बेहद कठिन संघर्ष करना पड़ेगा।

वक्ताओं ने कहा कि सभी धर्मों के साथ जुड़ी साम्प्रदायिकता जनता की दुश्मन है और इसके खिलाफ़ सभी धर्मनिरपेक्ष और जनवादी ताकतों को आगे आना होगा। मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतक़शों, नौजवानों, विद्यार्थियों, औरतों के आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक अधिकारों के लिए किया गया जुझारू आन्दोलन ही हर तरह की साम्प्रदायिकता का मुक़ाबला कर सकता है। धर्म जनता का निजी और दूसरे दर्जे का मसला है। जनता को वर्गीय आधार पर न कि धर्म के आधार पर एक होना चाहिए और लुटेरे वर्गों के खिलाफ़ वर्ग संघर्ष करना चाहिए।

सम्मेलन को बिगुल मज़दूर दस्ता के नेता सुखविन्दर, टेक्सटाइल-होज़री कामगार यूनियन, पंजाब के अध्यक्ष राजविन्दर, पंजाब स्टूडेंटस यूनियन (ललकार) के अध्यक्ष छिन्दरपाल, नौजवान भारत सभा के नेता कुलविन्दर, स्त्री मुक्ति लीग की नमिता ने सम्बोधित किया। संचालन कारखाना मज़दूर यूनियन, पंजाब के अध्यक्ष लखविन्दर ने किया। सम्मेलन में शामिल होने के लिए महाराष्ट्र से आये हर्ष ठाकोर ने भी सम्बोधित किया और कहा कि यह सम्मेलन अच्छा प्रयास है। मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह आदि ने भी सम्मेलन को सम्बोधित किया। क्रान्तिकारी सांस्कृतिक मंच, दस्तक के कुलविन्दर, गविश, गुरमीत, लक्की, कुलदीप आदि ने क्रान्तिकारी गीत-संगीत पेश किया। इस अवसर पर जनचेतना और ज्ञान प्रसार समाज द्वारा क्रान्तिकारी- प्रगतिशील-वैज्ञानिक किताबों-पोस्टरों की प्रदर्शनियाँ भी लगाई गईं।

इससे पूर्व सम्मेलन की तैयारी के लिए पंजाब के विभिन्न इलाक़ों में साम्प्रदायिकता विरोधी व्यापक प्रचार मुहिम चलाई गई थी। जनता को साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ जागरूक करने के लिए बड़े स्तर पर मीटिंगों, नुक्कड़ सभाओं, पैदल/साइकिल/मोटरसाईकल मार्च, घर-घर प्रचार अभियान चलाया गया था। पंजाबी-हिंदी में बड़े स्तर पर पर्चा बाँटा गया और पोस्टर लगाए गए। शहीद भगत सिंह का लेख ‘साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज’ भी पर्चे के रूप में छापकर बाँटा गया था।

 

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2015


 

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