‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ के सदस्य पर मेट्रो प्रशासन-ठेका कम्पनी का जानलेवा हमला
बिगुल संवाददाता
मज़दूर जब संगठित होकर अपने हकों के लिए आवाज़ उठाने लगता है तो मालिकान किस कदर बौखला जाते हैं इसका एक नमूना 28 जुलाई 2009 को तब मिला जब मेट्रो कामगार संघर्ष समिति के उपाध्यक्ष विपिन साहू पर मेट्रो प्रशासन-ठेका कम्पनी द्वारा जानलेवा हमला किया गया। एराइज़ कम्पनी के प्रोजेक्ट मैनेजर सुनील कुमार ने धोखे से नजफगढ़ डिपो पर पेमेण्ट करने के लिए बुलाकर डिपो के पीछे खुले नये ब्रांच ऑफिस में विपिन को चलने को कहा और वहाँ ले जाकर पहले से बुलाये गये तीन गुण्डों के हवाले कर दिया। न केवल उन्हें बन्धक बना लिया बल्कि बन्द कमरे में करीब 5-6 घण्टों तक नंगा कर पीटा गया। उन्हें आन्दोलन से पीछे हटने के लिए जान से मारने की धमकी भी देते रहे। रात करीब 10 बजे किसी तरह विपिन इन दरिन्दों के चंगुल से अपनी जान बजाकर भाग निकले। अगले दिन जब विपिन व मेट्रो संघर्ष समिति के साथी छावला पुलिस स्टेशन पहुँचे तो पुलिस पूरे दो दिन तक मामले की लीपापोती करती रही और समझौते के लिए दबाव बनाती रही। विपिन व मेट्रो कामगार संघर्ष समिति के सदस्यों को पुलिस स्टेशन के सामने डराने-धमकाने की कोशिश की गयी। उसके बाद एक और अर्ज़ी एसएचओ को दी गयी जिसमें सारी स्थिति का वर्णत करते हुए डाक द्वारा एफआईआर भेजने का आग्रह किया गया जो 4 अगस्त को दोपहर में करीब ढाई बजे प्राप्त हुई। दूसरी तरफ मेट्रो प्रशासन और श्रमायुक्त को शिकायत करने के बाद भी एराइज़ कम्पनी पर कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है। मामला साफ है कि मेट्रो प्रशासन और पुलिसतन्त्र ठेका कम्पनियों से मिला हुआ है। विपिन साहू मेट्रो आन्दोलन में शुरू से ही शामिल रहे हैं। दिल्ली मेट्रो में बतौर सफाईकर्मी कार्यरत रहे विपिन अपनी कानूनी माँगों को लेकर लगातार संघर्ष करते रहे। चाहे 25 मार्च को डीएमआरसी मेट्रो भवन पर न्यूनतम मज़दूरी, साप्ताहिक छुट्टी, पी.एफ. व ई.एस.आई. कार्ड की सुविधा जैसे माँगों को लेकर चेतावनी-प्रदर्शन हो या 5 मई 2009 का प्रदर्शन हो जिसमें वह भी 46 अन्य ठेकाकर्मियों के साथ (जिसमें मेट्रो फीडर बस के चालक और परिचालक भी शामिल हो गये थे) दो दिन के लिए तिहाड़ जेल गये थे।
विपिन साहू 2006 से एराइज़ कार्पोरेट प्रा. लि. में सफाईकर्मी के तौर पर द्वारका मेट्रो स्टेशन पर काम कर रहे हैं तथा नवम्बर 2008 से एराइज़ कम्पनी के अन्तर्गत काम कर रहा था। एराइज़ द्वारा भुगतान मात्र 100 रुपये प्रतिदिन की दर से किया जा रहा था जबकि डीएमआरसी द्वारा श्रम कानूनों के तहत द्वारका मेट्रो स्टेशन पर एक बोर्ड लगा रखा है जिस पर न्यूनतम मज़दूरी की दर 186 रुपये लिखी हुई है। लेकिन मेट्रो-प्रशासन और ठेका कम्पनियाँ सारे श्रम कानूनों को ताक पर रखकर मज़दूरों का शोषण करती है। जब इस नंगे शोषण और अन्याय के ख़िलाफ विपिन ने आवाज़ उठाई तो 30 मार्च, 2009 को उन्हें काम से निकाल दिया गया। इस बात को लेकर विपिन साहू ने अपनी शिकायत ‘सहायक श्रमायुक्त (केन्द्रीय)’ के.जी. मार्ग को 31 मार्च 2009 के समक्ष दर्ज करवाई, जिसके तहत श्रम समझौता अधिकारी तेज बहादुर ने एराइज़ कम्पनी को न्यूनतम मज़दूरी की दर से भुगतान करने का आदेश दिया। तेज बहादुर ने मेट्रो प्रशासन के श्री आर.के. झा को भी मामले से परिचित कराया और भुगतान करवाने को कहा। 15 जुलाई को एक अन्य मेट्रो अधिकारी श्री एस के सिन्हा से भी मेट्रो भवन में मिलकर अपनी कानूनन न्यूनतम मज़दूरी और श्रम कानूनों को लागू करवाने के लिए कहा गया था। इन्हीं सब कोशिशों और संघर्ष समिति के आन्दोलन के फैलते जाने से सभी ठेकेदार कम्पनियाँ बौखलायी और घबरायी हुई थीं। इसी बौखलाहट के चलते एराइज़ कम्पनी ने विपिन को निशाना बनाया।
बिगुल, अगस्त 2009
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन
मैंने भी अपने ब्लॉग पर इस खबर का जिक्र किया है….
पूंजी के राज में मजदूरों को यही मिल सकता है। बर्बर दमन, उत्पीड़न और अपना अधिकार मांगने पर लाठी, गोली, और मार-पिटाई।
श्रीधरन को यह सब शायद नहीं दिखाई देता। उन्हें बस वाह-वाही मिलती है।
यह व्यवस्था एक गंदा, घिनौना लूटतंत्र है, यह कहीं से भी सभ्यता का युग नहीं है।
ऐसी खबरों को मीडिया भी स्थान नहीं देता। लगता है इस तरह की घटनाएँ घटती ही नहीं हैं। जब कि ये आम हैं। इन्हें लगातार किसी भी तरह लोगों तक पहुँचना चाहिए। पुलिस द्वारा कार्यवाही नहीं किये जाने पर सीधे अदालत में शिकायत दर्ज करवाना चाहिए। और अपराधियों को सजा दिलाने की पूरी कोशिश की जानी चाहिए।
बेहद दुखद घटना है, वे इसी तरह हौसला तोड़ने की कोशिश करते हैं लेकिन संघर्ष रुकना नहीं चाहिए, मजदूर एकता जिदाबाद. एकता में ही शक्ति है.
अत्यंत दुखद घटना है, इसी तरह एक ठेकेदार के गुंडों ने सफ़दर हाशमी को पीट पीटकर मार डाला था. अपने चैनल वाले भाई कहाँ हैं…