सांपनाथ तो चले गये अब नागनाथ की बारी है!
हरियाणा के मज़दूरों के लिए और “अच्छे दिनों” की शुरुआत!
मज़दूर साथियो!
हरियाणा में भी “अच्छे दिन” आ गये हैं! केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद हरियाणा में भी भाजपा की सरकार बन गयी है। आर.एस.एस. के दुलारे मनोहर खट्टर हरियाणा के दसवें मुख्यमन्त्री बने हैं। हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी सभी पूँजीवादी चुनावों की तरह धर्म, जाति, बाहुबल और पैसे का खेल नंगे तरीके से हुआ। तभी तो चुने गये विधायकों में से 83 प्रतिशत करोड़पति हैं और करीब 10 प्रतिशत पर अपराधी मुकदमे दर्ज़ हैं! “राष्ट्रवाद”, “देशभक्ति” और “सादगी-सदाचार” का ढोल बजाने वाली भाजपा के सबसे ज़्यादा विधायक करोड़पति हैं। लोकसभा चुनावों से पहले मोदी ने देश की जनता से “अच्छे दिनों” का वायदा किया था। 150 दिनों की सरकार में ही मोदी ने रेल टिकट भाड़ा बढ़ाकर, श्रम कानूनों को बरबाद करके और देशी-विदेशी कम्पनियों की खुले दिल से सेवा करके दिखा दिया है कि किसके “अच्छे दिन” आये हैं! अब हरियाणा में मनोहर खट्टर ऐसे ही “अच्छे दिन” लाने वाले हैं! लोकसभा चुनावों में मोदी के चुनाव प्रचार पर इन्हीं पूँजीपतियों ने दस हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किये और हरियाणा के चुनावों में भी भाजपा को हरियाणा के पूँजीपतियों ने दिल खोलकर मदद की है। ज़ाहिर है कि नये मुख्यमन्त्री अब पूँजीपतियों की तिजोरियाँ भरकर सूद समेत ऋण चुकायेंगे।
ज़रा सोचिये मज़दूर साथियो! इन पूँजीवादी चुनावों से हम मज़दूरों को क्या मिला? क्या भाजपा की सरकार हुड्डा सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों को समाप्त कर देगी? क्या गुड़गाँव से बावल तक फैली औद्योगिक पट्टी के मज़दूर आन्दोलनों को न्याय मिल जायेगा? क्या मारुति सुजुकी से लेकर मिण्डा फुरुकावा और ऑटोफिट के मज़दूरों को इंसाफ़ मिल जायेगा? क्या हुड्डा सरकार और उसके पहले चौटाला सरकार के दौर में मज़दूरों के लिए कायम किया गया आतंक राज्य समाप्त हो जायेगा? क्या हरियाणा के लाखों-लाख बेरोज़गार नौजवानों को रोज़गार मिलेगा? अपने दिल से पूछिये!
चुनाव-दर-चुनावः मज़दूरों को क्या मिला?
साथियो! आप सभी सच्चाई जानते हैं! कांग्रेस, भाजपा, इनेलो, बसपा, सपा, माकपा, भाकपा, भाकपा (माले) समेत सभी चुनावी पार्टियों में इस बात की होड़ है कि पूँजीपतियों की सेवा कौन बेहतर करेगा। मौजूदा मन्दी के दौर में पूँजीपति वर्ग के लिए मज़दूरों पर नंगी तानाशाही लागू करने के मामले में भाजपा ने सभी चुनावी मदारियों को पीछे छोड़ दिया है। भाजपा-शासित राज्यों और विशेषकर गुजरात, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मज़दूरों-मेहनतकशों पर देशी-विदेशी पूँजीपतियों की नंगी तानाशाही कायम करके भाजपा ने दिखला दिया है कि पूँजीपति वर्ग को संकट से कुछ राहत देने के लिए वह इस समय सबसे उपयुक्त पार्टी है। इसीलिए देश के पूँजीपतियों ने एकजुट होकर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करके पहले देश में और फिर हरियाणा, महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनवायी है। पूँजीवादी चुनावों में जीतता वही है जिसके पास पूँजीपतियों का समर्थन होता है क्योंकि इन चुनावों में सारा खेल ही बाहुबल, धनबल और मीडिया का होता है।
भाजपा ने देश व हरियाणा प्रदेश के पूँजीपतियों को भरोसा दिलाया है कि देश में “औद्योगिक शान्ति” कायम की जायेगी! इसका अर्थ हम मज़दूर जानते हैं! इसका अर्थ है मुँह पर ताला लगाकर पूँजीपतियों के लिए खटना और उनके सारे जुल्म सहना! इसके लिए श्रम कानूनों में मोदी सरकार ने बदलाव कर दिया है। गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल का मज़दूर तो पहले से ही अपने तजुरबे से जानता है कि यहाँ श्रम कानूनों और श्रम विभाग का कोई अर्थ नहीं है। हालाँकि ये श्रम कानून पहले भी कानूनी किताबों की ही शोभा ज़्यादा बढ़ाते थे, लेकिन फिर भी जहाँ कहीं मज़दूर आन्दोलन ताकतवर होता था वहाँ इन श्रम कानूनों के कारण पूँजीपतियों को कुछ असुविधा का सामना करना पड़ता था। मोदी ने श्रम कानूनों के ‘स्पीड ब्रेकर’ को अपनी तानाशाही के रोडरोलर से सपाट कर दिया है! मोदी सरकार ने 31 जुलाई को फैक्टरी एक्ट, ट्रेड यूनियन एक्ट, औद्योगिक विवाद एक्ट, ठेका मज़दूरी एक्ट के साथ एपरेंटिस एक्ट आदि में 54 बदलाव का प्रस्ताव रखा है। यानी “अच्छे दिनों” का शोर मचाकर आयी मोदी सरकार ने पूँजीपतियों के लिए अच्छे दिनों और मेहनतकशों के लिए बुरे दिनों की शुरुआत कर दी है! अभी हाल ही में मोदी की जापान-यात्रा में मोदी की मालिक-भक्ति फिर जगजाहिर हो गयी। उन्होंने जापानी पूँजीपतियों की हर समस्या का चुटकी बजाते समाधान करने के लिए अपने कार्यालय में ‘जापान प्लस’ नाम से नया प्रकोष्ठ खोलने का एलान किया। जापानी कम्पनियाँ अपने विशेष जापानी प्रबन्धन तन्त्र द्वारा मज़दूरों की हड्डियाँ निचोड़ने में कितनी बेरहम होती हैं और श्रम कानूनों को किस प्रकार ताक पर रख देती हैं, यह गुड़गाँव से लेकर भिवाड़ी तक के मज़दूर अच्छी तरह से जानते हैं। अब सुजुकी, होण्डा, आदि जैसी कम्पनियों को मज़दूरों के शरीर से खून की आख़िरी बूँद तक निचोड़ लेने की पहले से भी ज़्यादा आज़ादी दी जायेगी। यही मिला है हमें इन चुनावों से!
जब भी इन अत्याचारों के ख़िलाफ़ हम अपने जायज़ हक़ों को लेकर आवाज़ उठाते हैं तो “औद्योगिक शान्ति” कायम करने के नाम पर गुण्डे, पुलिस, न्यायपालिका, प्रशासन, चुनावी पार्टियाँ व मीडिया हम पर टूट पड़ते हैं! हमें देश की “तरक्की” की राह में रोड़ा डालने वाला क़रार दिया जाता है! गुड़गाँव से लेकर भिवाड़ी और नीमराना तक फैले ऑटोमोबाइल पट्टी का हर मज़दूर आन्दोलन के समय समझ जाता है कि देश में मज़दूरों के लिए कोई जनतन्त्र नहीं बल्कि पूँजी का धनतन्त्र है! जब हम मज़दूरों के हक़ नंगे तौर पर छीने जा रहे होते हैं तो श्रम विभाग तमाशा देखता है! एटक, एचएमएस, सीटू, इण्टक आदि जैसी चुनावी पार्टियों से जुड़ी यूनियनें और एनजीओ-सरीखे “मज़दूर सलाह/सहायता केन्द्र” हमारे आन्दोलन को सीमित और कमज़ोर करने का काम करते रहते हैं, उन पर ग़लत रणनीति थोपकर उन्हें गुमराह करते रहते हैं। किसी भी पूँजीवादी पार्टी की सरकार हो, इन ग़द्दारों का उनके साथ तालमेल होता है। ऐसे में, इन चुनावों में जीते कोई भी हार हम मज़दूरों की ही होती है!
तो क्या करें?
मज़दूर भाइयो और बहनो! हुड्डा सरकार के दौर में भी हम पर देशी-विदेशी पूँजी की तानाशाही कायम थी। हरियाणा में भाजपा की सरकार बनने के साथ यह तानाशाही और भी ज़्यादा भयंकर और नंगे तौर पर लागू होगी। क्या अब वक़्त नहीं आ गया है कि हम इन चुनावी पार्टियों के भ्रम से खुद को मुक्त करें? क्या वक़्त नहीं आ गया है कि हम चुनावी पार्टियों की दलाल ट्रेड यूनियनों के वहम से खुद को आज़ाद करें? क्या वक़्त नहीं आ गया है कि हम अपना नया क्रान्तिकारी ट्रेडयूनियन संगठन बनाने की शुरुआत करें? वक़्त आ गया है कि हम जाति-धर्म-क्षेत्र के चक्कर में कभी नागनाथ तो कभी साँपनाथ को चुनने का सिलसिला बन्द करें! वक़्त आ गया है कि मज़दूर वर्ग की नयी इंक़लाबी पार्टी खड़ी करने का बीड़ा उठाया जाय जो कि इलेक्शन नहीं बल्कि एक मज़दूर इंक़लाब के रास्ते मज़दूरों के लोकस्वराज्य को स्थापित करने के लिए संघर्ष करे! हम सभी मज़दूर साथियों का आह्नान करते हैं: गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल से लेकर भिवाड़ी-नीमराना तक के मज़दूरों की सेक्टरगत यूनियन बनाने के लिए आगे आओ! इस समूची औद्योगिक पट्टी के मज़दूरों की इलाकाई एकता कायम करने के लिए आगे आओ! पिछले लगभग डेढ़ दशक से हमारे इलाके में मज़दूर आन्दोलन का गतिरोध और हमारी हार का सिलसिला तभी टूट सकता है जब हम एक ऐसी इंक़लाबी ऑटो मज़दूर यूनियन का निर्माण करें जो कि किसी भी पूँजीवादी चुनावी पार्टी की पिछलग्गू न हो, बल्कि स्वतन्त्र हो! इसके बिना, हम हारते ही रहेंगे, दबाये और कुचले जाते रहेंगे!
भगतसिंह का ख़्वाब! इलेक्शन नहीं इंक़लाब!
बजा बिगुल मेहनतकश जाग! चिंगारी से लगेगी आग!
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन