पंजाब सरकार के फासीवादी काले क़ानून को रद्द करवाने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर तीन विशाल रैलियाँ
पंजाब सरकार का बनाया काला क़ानून ‘पंजाब (सार्वजनिक व निजी जायदाद नुक्सान रोकथाम) क़ानून-2014’ रद्द करवाने के लिए पंजाब के करीब चालीस मज़दूर, किसान, मुलाजिम, छात्र-नौजवान जनसंगठनों द्वारा गठित ‘काला क़ानून विरोधी संयुक्त मोर्चा, पंजाब’ द्वारा संघर्ष तेज़ करते हुए पंजाब में तीन क्षेत्रीय स्तर की विशाल रैलियाँ की गयीं। 29 सितम्बर को माझा क्षेत्र की रैली अमृतसर के कम्पनी बाग में, 20 सितम्बर को दोआबा क्षेत्र की रैली जालन्धर के देशभगत यादगार हाल में और मालवा क्षेत्र की रैली बरनाला में दाना मण्डी में हुई। तीनों रैलियों में विशाल संख्या में जुटे लोगों ने पंजाब सरकार के खिलाफ़ रोषपूर्ण आवाज़ बुलन्द करते हुए यह काला क़ानून रद्द करने की माँग की।
इन विशाल रैलियों को सम्बोधित करते हुए जनसंगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि इस क़ानून के ज़रिए सरकार अपने हक़ों के लिए और सच्चाई के पक्ष में आवाज़ उठाने वालों को जेल और जुर्माने की सख़्त सज़ाएँ देने की तैयारी कर रही है। रैली, धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, आदि के दौरान अागज़नी, तोड़फोड़ जैसी कार्रवाइयाँ हक़ और इंसाफ़ के लिए संघर्ष करने वाले जनसंगठन नहीं बल्कि सरकारों और पूँजीपतियों द्वारा पुलिस व गुण्डों के ज़रिए जनसंघर्षों को बदनाम करने के लिए की जाती हैं। पंजाब सरकार अब इस क़ानून के ज़रिए संघर्ष करने वाले लोगों को 5 वर्ष तक की जेल, 3 लाख रुपये तक का जुर्माना और नुकसान भरपाई की सख्त सज़ाएँ देने की तैयारी कर चुकी है। हड़ताल को अप्रत्यक्ष रूप में गैरक़ानूनी बना दिया गया है। वक्ताओं ने कहा कि पहले भी हुक़्मरानों का जनता पर ज़ोर-ज़ुल्म कम नहीं था, अब यह और भी बढ़ता जा रहा है। उदारीकरण, निजीकरण, भूमण्डलीकरण की नीतियों के चलते आज मज़दूरों, किसानों आदि मेहनतकश वर्गों की हालत बहुत ख़राब हो चुकी है। गरीबी, बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ी है। विश्वव्यापी आर्थिक संकट की चपेट में भारत भी आया हुआ है और भारत के हुक़्मरान आर्थिक संकट का बोझ जनता पर ही डाल रहे हैं। चारों ओर जनता में भारी रोष है और जनान्दोलनों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। लोगों को धर्म-जाति के नाम पर बाँटने की कोशिशें तो तेज़ हो ही चुकी हैं और साथ ही हुक़्मरान अपने दमनकारी औज़ारों को भी तीखा करते जा रहे हैं। वक्ताओं ने कहा कि यह काला क़ानून हुक़्मरानों की इन दमनकारी साज़िशों का ही अंग है।
पंजाब सरकार सन् 2010 में भी दो काले क़ानून लेकर आयी थी। जनान्दोलन के दबाव में सरकार को दोनों काले क़ानून वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। रैलियों के दौरान वक्ताओं ने ऐलान किया कि इस बार भी पंजाब सरकार को लोगों के आवाज़ उठाने, एकजुट होने, संघर्ष करने के जनवादी अधिकार छीनने के नापाक इरादों में कामयाब नहीं होने दिया जायेगा।
‘काला क़ानून विरोधी संयुक्त मोर्चा, पंजाब’ के नेतृत्व में पिछले 11 अगस्त को भी पंजाब के सभी ज़िलों में ज़ोरदार धरने-प्रदर्शन हुए थे। क्षेत्रीय स्तर की इन रैलियों के दौरान जनसंगठनों ने ऐलान किया कि अगर पंजाब सरकार यह काला क़ानून रद्द नहीं करती तो संघर्ष और तीखा किया जायेगा।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2014
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