जागेंगे!                                    लड़ेंगे!!                                  जीतेंगे!!!

दुनिया के मज़दूरों एक हो!
छिन गये अधिकारों को फिर से लड़कर लेना होगा हर ज़ोर-ज़ुल्म का ज़ोरदार जवाब हमको देना होगा !
चुप्पी तोड़ो, आगे आओ!
मई दिवस की अलख जगाओ!!

मज़दूर स्त्री-पुरुष साथियो!

मज़दूरों की एकजुटता से बड़ी ताक़त कोई नहीं!

मज़दूरों की एकजुटता से बड़ी ताक़त कोई नहीं!

मई दिवस का इतिहास पूँजी की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ देने के लिए उठ खड़े हुए मज़दूरों के ख़ून से लिखा गया है। जबतक पूँजी की ग़ुलामी बनी रहेगी, संघर्ष और कुर्बानी की उस महान विरासत को दिलों में सँजोये हुए मेहनतक़श लड़ते रहेंगे। पूँजीवादी ग़ुलामी से आज़ादी के जज़्बे और जोश को कुछ हारें और कुछ समय के उलटाव-ठहराव कत्तई तोड़ नहीं सकते। करोड़ों मेहनतक़श हाथों में तने हथौड़े एक बार फिर उठेंगे और पूँजी की ख़ूनी सत्ता को चकनाचूर कर देंगे।

हम यह साफ़ कर देना चाहते हैं कि हमारा यह पर्चा उन मज़दूरों के लिए नहीं है जो ग़ुलामी और ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी के आदी हो चुके हैं, मालिकों के जूते और गालियाँ खाये बिना जिन्हें नींद नहीं आती। यह पर्चा उन मज़दूरों के लिए भी नहीं है जो दलाल, सौदेबाज़ यूनियनों के भ्रष्ट नेताओं के अन्धे पिछलग्गू बनकर दुअन्नी-चवन्नी की रियायतों की भीख पाकर संतुष्ट रहते हैं। यह पर्चा उन ग़र्म ख़ून वाले मज़दूरों के लिए है जिनके दिलों में शोषण और ज़ुल्म के खि़लाफ बग़ावत की भावना है और पूँजी की ग़ुलामी से मुक्ति के सपने हैं। यदि आप फिर से संगठित होकर इक्कीसवीं सदी में मज़दूर मुक्ति की ऐतिहासिक लड़ाई के नये दौर में शामिल होने की हिम्मत रखते हैं तो हमारा यह पर्चा ज़रूर पढ़ें और हमसे सम्पर्क ज़रूर करें।

1886 के मई महीने में ‘काम के घण्टे आठ’ की माँग को लेकर अमेरिका के शिकागो शहर के मज़दूरों ने जो ज़बरदस्त संघर्ष किया और जो महान कुर्बानियाँ दीं, उन्होंने पूरी दुनिया के मज़दूरों को जगा दिया। सरकार ने इस हड़ताल को कुचलने के लिए पूरी ताक़त झोंक दी जिसमें कई मज़दूर शहीद हुए। झूठे आरोपों में मुकदमा चलाकर मई आन्दोलन के चार नेताओं – पार्सन्स, स्पाइस, फिशर और एंजेल को फाँसी दे दी गयी। लेकिन उस आन्दोलन से भड़की ज्वाला जंगल की आग की तरह यूरोप और फिर पूरी दुनिया में फैलती चली गयी। 1887 में मज़दूर वर्ग की पार्टियों के पेरिस सम्मेलन में मज़दूर वर्ग के महान शिक्षक और कार्ल मार्क्स के सहयोगी फ्रेडरिक एंगेल्स के प्रस्ताव पर 1 मई को हर वर्ष ‘अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस’ मनाने का प्रस्ताव पारित हुआ। तबसे मई दिवस दुनिया भर के मज़दूरों का पर्व बन गया। मई दिवस हमें इस बात की याद दिलाता है कि मज़दूर वर्ग को सिर्फ़ आर्थिक माँगों की लड़ाई में नहीं उलझे रहना चाहिए, बल्कि उससे आगे बढ़कर अपनी राजनीतिक माँगों की लड़ाई लड़नी चाहिए, एक इंसान की तरह जीने का हक माँगना चाहिए। राजनीतिक माँगों की यह लड़ाई पूँजीवादी लोकतंत्र की सारी जालसाजियों को नंगा करती है, पूँजीवाद की जड़ों पर चोट करती है और पूँजीवाद को कब्र में दफ़नाकर राजकाज और समाज के ढाँचे के समाजवादी पुनर्निर्माण की दिशा में मज़दूर संघर्षों को आगे बढ़ाती है।

शिकागो के अमर शहीद

शिकागो के अमर शहीद

बीसवीं सदी में मज़दूर वर्ग ने अनगिनत बहादुराना संघर्षों की बदौलत बहुत सारे क़ानूनी हक़ हासिल किये। यही नहीं, सोवियत संघ, चीन और कई देशों में पूँजीवाद को उखाड़कर उसने मज़दूर राज भी कायम किये। लेकिन पहले राउण्ड की ये जीतें स्थायी नहीं हो सकीं। पूरी दुनिया की पूँजी अपनी एकजुट ताक़त और मज़दूर वर्ग के गद्दारों की मदद से मज़दूर वर्ग को एक बार फिर पीछे धकेलने में और मज़दूर राज्यों को तोड़ने में कामयाब हो गयी। तबसे पूरी दुनिया के नवउदारवाद की जो उलटी लहर चल रही है, उसने अनगिनत कुर्बानियों से हासिल मज़दूरों के सारे अधिकारों को फिर से छीन लिया है। पूँजी की चक्की मज़दूरों की हड्डियों तक का चूरा बना रही है और शोषण की जोंकें उनकी नस-नस से लहू चूस रही हैं। मज़दूर वर्ग की नकली पार्टियाँ और भ्रष्ट दलाल यूनियनें इस काम में पूँजीवाद की मदद ही कर रही हैं।

लेकिन पूँजीवाद की यह जीत स्थायी नहीं है। पूँजीवाद अजर-अमर नहीं है। इक्कीसवीं सदी में पूँजी और श्रम के बीच फैसलाकुन जंग होगी जिसमें श्रम के पक्ष की जीत पक्की है। भविष्य मज़दूर वर्ग का है। इस बात के संकेत मिलने लगने हैं। सन्नाटा टूटने लगा है। पूरी दुनिया के कोने-कोने से मज़दूर विद्रोहों की ख़बरें आ रही हैं और भारत का मज़दूर भी जागने लगा है। हमें एक लम्बी, कठिन और फैसलाकुन लड़ाई के लिये ख़ुद को तैयार करना होगा।

भारत के मज़दूरों की पहली ज़िम्मेदारी यह बनती है कि वह दुअन्नी-चवन्नी की भिखमंगई की आर्थिक लड़ाइयों और संसदीय चुनावों से बदलाव के भ्रमजालों से अपने को मुक्त करें तथा दलाल यूनियनों, गद्दार मज़दूर नेताओं और चुनावी पूँजीवादी पार्टियों को मज़दूर बस्तियों से लात मारकर बाहर खदेड़ दें। मज़दूरों को पूँजीवाद को जड़मूल से उखाड़ फेंकने के अपने ऐतिहासिक मिशन को पूरा करने के लिए नये सिरे से लामबंद होना होगा। इसके लिए उन्हें मेहनतक़श जनता को बाँटने वाली धार्मिक कट्टरपंथी (फासिस्ट) ताक़तों और जातिवादी राजनीति के ठेकेदारों से भी लोहा लेना होगा। मज़दूर वर्ग को स्वयं अपने दकियानूस पिछड़े विचारों की दिमाग़ी ग़ुलामी से छुटकारा पाना होगा।

हमें बस्ती-बस्ती में नये सिरे से क्रान्तिकारी मज़दूर यूनियनें बनानी होंगी और बिखरे हुए, असंगठित मज़दूरों की भारी ताक़त को लामबंद करना होगा। हुकूमत पर भारी जन दबाव बनाने के लिए और भावी मज़दूर सत्ता का बीज अंकुरित करने के लिए मज़दूरों को अपनी पंचायतें संगठित करनी होंगी। स्त्री मज़दूरों की इन यूनियनों और पंचायतों में भागीदारी बढ़ानी होगी और उनके अलग से संगठन भी बनाने होंगे। याद रखिये, आधी आबादी को घरेलू ग़ुलामी में कैद रखकर, मज़दूर वर्ग स्वयं अपनी गुलामी से कभी मुक्त नहीं हो सकता। मज़दूर वर्ग को मज़दूर क्रांति का अपना अगुआ दस्ता तैयार करना होगा। इसके लिए उसे क्रान्तिकारी मज़दूर अख़बार और अध्ययन-मण्डलों के जरिये मज़दूर क्रान्ति के विज्ञान, इतिहास और भावी रास्ते के नक्शे को जानना समझना होगा। मज़दूरों के बहादुर युवा सपूतों को भगतसिंह के सपनों का मज़दूर राज्य बनाने के लिए भगतसिंह के बताये रास्ते पर चलना होगा और बस्ती-बस्ती में क्रान्तिकारी नौजवान संगठन बनाने होंगे।

आइये, मई दिवस के इस मौके पर हम इस काम में, बिना मिनट भर की देर किये, जुट जाने की शपथ लें। आइये, हम मज़दूर बस्तियों में क्रान्तिकारी विचारों के संदेशवाहक बनकर फैल जाने का संकल्प लें। अँधेरा छँटेगा। ग़ुलामी की इस अँधेरी सुरंग के उस पार आज़ादी की रौशन घाटी हमारी प्रतीक्षा कर रही है। हमें एक नयी शुरुआत का प्रण लेना ही होगा।

आज घोषणा करने का दिन, हम भी हैं इंसान

हमें चाहिए बेहतर दुनिया, करते हैं ऐलान

क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,

बिगुल मज़दूर दस्ता  नौजवान भारत सभा  स्त्री मज़दूर संगठन

कार्यक्रम

1 मई, शाम 6 बजे से

जनसभा, क्रान्तिकारी गीत एवं फिल्म शो

स्थान: दादा सैयद भूरा मंदिर के पास, शाहपुर गढ़ी के निकट, नरेला औद्योगिक क्षेत्र, दिल्ली

2 मई, शाम 6 बजे से

जनसभा, क्रान्तिकारी गीत एवं फिल्म शो

स्थान: एफ़ ब्लॉक, शाहाबाद डेयरी, दिल्ली

सम्पर्क: शहीद भगतसिंह पुस्तकालय, एफ-412, शाहाबाद डेयरी, दिल्ली-42

फोनः 9971158783, 9560374554, 9136421582


 

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मज़दूरों के महान नेता लेनिन

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