सत्यम कम्पनी के घोटाले में नया कुछ भी नहीं है…
घपलों-घोटालों-भ्रष्टाचार पर पनपते परजीवी पूँजीवाद का असली चेहरा ऐसा ही है!

ramalinga-rajuनये साल की शुरुआत में सत्यम कम्प्यूटर्स नाम की देश की सबसे बड़ी आईटी कम्पनी के प्रमुख रामलिंगम राजू द्वारा किये गये 7,000 करोड़ रुपये के घोटाले ने मन्दी से डगमगाती भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका दिया है। सत्यम कम्प्यूटर्स उन्हीं कम्पनियों में से एक है जो एक वास्तविक उत्पादन से अलग, ग़ैर-उत्पादक गतिविधियों के विराट कारोबार से बेहिसाब कमाई करती रही हैं। आज के पूँजीवाद का तीन-चौथाई से भी ज्यादा हिस्सा शेयर बाज़ार, बैंकिंग, बीमा जैसी वित्तीय गतिविधियों, मीडिया, मनोरंजन और तमाम किस्म की सेवाओं के कारोबार से चलता है। सत्यम, इन्फोसिस, विप्रो जैसी आईटी या साफ़्टवेयर कम्पनियों के कारोबार का बड़ा हिस्सा भी इन्हीं ग़ैर-उत्पादक गतिविधियों के लिए होता है जो दुनिया की वास्तविक सम्पदा में कुछ भी इज़ाफ़ा नहीं करते।

वैसे तो पूँजीवाद ख़ुद ही एक बहुत बड़ी डाकेजनी के सिवा कुछ नहीं है लेकिन मुनाफ़ा कमाने की अन्धी हवस में तमाम पूँजीपति अपने ही बनाये क़ानूनों को तोड़ते रहते हैं। यूरोप से लेकर अमेरिका तक ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जो बिल्कुल साफ कर देते हैं कि पूँजीवाद में कोई पाक-साफ होड़ नहीं होती। शेयरधारकों को खरीदने-फँसाने, प्रतिस्पर्धी कम्पनियों की जासूसी कराने, रिश्वत खिलाने, हिसाब-किताब में गड़बड़ी करने जैसी चीजें साम्राज्यवाद के शुरुआती दिनों से ही चलती रहती हैं। सत्यम ने बहीखातों में फर्जीवाड़ा करके साल-दर-साल मुनाफ़ा ज्यादा दिखाने और शेयरधारकों को उल्लू बनाने की जो तिकड़म की है वह तो पूँजीवादी दुनिया में चलने वाला एक छोटा-सा फ्रॉड है। राजू पकड़ा गया तो वह चोर है – लेकिन ऐसा करने वाले दर्जनों दूसरे पूँजीपति आज भी कारपोरेट जगत के बादशाह और मीडिया की आँखों के तारे बने हुए हैं।

सत्यम कम्पनी के घोटाले में जितनी बातें सामने आयीं हैं वह तो पानी में तैरते विशाल हिमखण्ड का ऊपर दिखने वाला छोटा-सा हिस्सा भर है। इसकी सारी परतें तो सरकार भी उजागर नहीं करेगी। अगर ये पूरा घोटाला सामने आ गया तो वित्त (फाइनेंस) का सारा हवाई कारोबार ही चरमराकर बैठ जायेगा। कारोबार की थोड़ी भी समझ रखने वाला कोई आदमी इतना तो समझ ही सकता है कि इतना बड़ा गोरखधन्धा दो-चार व्यक्तियों का खेल नहीं हो सकता। आँकड़ों की हेराफेरी, सरकारी अधिकारियों-मंत्रियों आदि को मोटी घूस खिलाने से लेकर हर तरह के छल-छद्म का इस्तेमाल करके ही सत्यम कम्प्यूटर्स ने चन्द एक सालों में दुनिया भर में दसियों हजार करोड़ का कारोबार फैला दिया। आन्ध्र प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू और उनके धुर विरोधी वर्तमान मुख्यमंत्री वाई- राजशेखर रेड्डी दोनों से राजू के बहुत करीबी सम्बन्ध हैं जिसका वह जमकर फायदा उठाता रहा है। फिर भी पूरे मामले को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे ये एक “बिगड़े हुए” आदमी की गलतियों का नतीजा है। बार-बार यह बताया जा रहा है कि यह तो महज एक भटकाव है। क़ानून को सख़्ती से कार्रवाई करनी चाहिए ताकि दुनिया को यह पता लगे कि सारी कम्पनियाँ ऐसी ही नहीं हैं… वगैरह-वगैरह।

सत्यम कम्पनी और राजू ने जो कुछ किया उसमें कुछ भी अप्रत्याशित और चौंकाने वाला नहीं है। चन्द एक वर्षों में बेशुमार मुनाफ़ा कमाने वाली ज़्यादातर कम्पनियों की अन्दर की कहानी ऐसी ही है। सरकार से लेकर मीडिया तक इनका चेहरा चमकाने और इन्हें “चमकते भारत” के ‘आइकन’ बनाकर पेश करने में लगे रहते हैं। पूँजीवाद के अपने अन्दरूनी टकरावों की वजह से कभी-कभी इनमें से कुछ की असलियत सामने आ जाती है। कल तक जो राजू मीडिया का दुलारा और बिज़नेस स्कूलों का मॉडल था वह रातोंरात खलनायक बन जाता है और गर्दन पकड़कर जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया जाता है। पूँजीवाद के नायक स्थायी नहीं हुआ करते। आज जो जगमगाते सितारे हैं कल वे गन्दगी के ढेर में पड़े दिखायी देते हैं।

ऐसी घटनाएँ पूँजीवाद के असली परजीवी चरित्र को उजागर करती हैं। ये अन्दर से खोखली और सड़ चुकी पूँजीवादी व्यवस्था की बदबूदार सच्चाई को लोगों के सामने ला देती हैं। ये एक बार फिर प्रसिद्ध लेखक बाल्ज़ाक की इस उक्ति को सही साबित करती हैं कि हर सम्पत्ति साम्राज्य अपराध की बुनियाद पर खड़ा होता है।

मध्यवर्ग का एक भारी हिस्सा सत्यम कम्पनी के घोटाले पर हाय-तौबा मचा रहा है। ये वे लोग हैं जो पूँजीवाद की बहती गंगा में डुबकी तो मारना चाहते हैं लेकिन उसमें बहते मैले से छू जाने पर छी-छी करने लगते हैं। बिना कुछ किये शेयर बाज़ार में मुनाफ़ा कमाने की टुच्ची हवस में जब तक इन्हें कमाई होती रहती है तब तक ये पूँजी और बाज़ार की महिमा गाते रहते हैं लेकिन जैसे ही किसी घपले-घोटाले में इनकी पूँजी डूबती है तो ये कांय-कांय चिल्लाने लगते हैं। पूँजीवाद की अन्धी दौड़ में घुसे छुटभैयों के साथ ऐसा अक्सर ही होता रहता है। मन्दी के दौर में ऐसी घटनाएँ और बढ़नी ही हैं। सर्वहारा के दृष्टिकोण से इनकी बस खिल्ली ही उड़ायी जा सकती है। ये तथाकथित “छोटे निवेशक” सहानुभूति नहीं नफ़रत के हकदार हैं!

ऐसी घटनाएँ बुर्जुआ न्याय के असली वर्ग चरित्र को भी नंगा कर देती हैं। हज़ारों करोड़ का चूना लगाने वाले राजू और उसके अपराध में भागीदार लोगों को कोई तक़लीफ़ न हो, इसका ख्याल पुलिस भी रख रही है, उनकी पैरवी के लिए वकीलों की पूरी फौज खड़ी हो जायेगी और हो सकता है कि कुछ सज़ा और कुछ जुर्माने के बाद वे बच भी जायें। उनकी अरबों की सम्पत्ति तो बनी ही रहेगी। दूसरी ओर अगर अपने बच्चों की भूख और बीमारी से बचाने के लिए कोई गरीब दस रुपये की भी चोरी कर ले तो उसे पीट-पीटकर सड़क पर ही मार डाला जायेगा या फौरन जेल के सीखचों में कैद कर दिया जायेगा।

 

बिगुल, जनवरी 2009

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments