क्रान्ति की अलख जलाएँ
रासलाल, करावलनगर, दिल्ली
चलो मिलकर क्रान्ति की मशाल जलाए,
हर टूटे हुए, बुझे हुए दिल में रोशनी जगाऐं
वो जो डरे हुए हैं, सहमें हुए हैं
इस जालिम समाज, खूनी महफिल से, किन्तु
जिनकी आंखों में नक्शा है, दुनिया बदलने का
दिल में जज्बा है बुराई से लड़ने का
उन बिखरे हुए मोतियों को धागे में पिरोएं
जन-जन की आवाज को मिलकर सुरों में पिरोकर
नया संगीत, नयी क्रान्ति का गीत बनाएं
चलो मिलकर क्रान्ति की, मशाल जलाए
हर टूटे हुए दिल में क्रान्ति की अलख जलाएं।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2011
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