अनजान बचपन
रामाधार, बादली
सुबह ड्यूटी जा रहा था तो एक लड़का मेरे साथ-साथ चल रहा था। मुझे उसने देखा, मैंने उसे देखा। लड़के की उम्र करीब 12 साल थी। मैंने पूछा कहाँ जा रहे हो। उसने कहा ड्यूटी। कहाँ काम करते हो? लिबासपुर! क्या काम है? जूता फ़ैक्टरी! कितनी तनख्वाह मिलती है? आठ घण्टे के 3500 रुपये। मैंने पूछा, आठ घण्टे के 3500 रुपये? बोला हाँ। मैंने पूछा सुबह कितने बजे जाते हो, बोला 9 बजे। मैंने कहा शाम कितने बजे आते हो, बोला 9 बजे। मैंने कहा तो 12 घण्टे हो गये। कहा नहीं… आठ घण्टे के 3500 रुपये।
मैंने कहा ड्यूटी 9 से 9 की है? – हाँ। महीने में 30 दिन ? – हाँ
कुल तनख़्वाह – 3500 रुपये? – नहीं, 4500 मिलते हैं।
मैंने पूछा 9 से 9 काम करते हो। उसके बाद रात में भी रुकते हो? कहा हाँ, एक हफ़्ते में 4 रात काम करना पड़ता है। इसलिए मुझे अभी भी नींद आ रही है। मैंने पूछा, महीने में 15-16 नाइट? कहा, हाँ। मैंने कहा, तब तो तुम्हें 8 घण्टे की तनख्वाह 15-16 सौ रुपये ही देता है। तो बोला हम अनपढ़ हैं। इसलिए हमने मालिक से कह दिया, मेरी तनख़्वाह मम्मी के हाथ में दे दिया करें।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2012
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन