नम्बर एक हरियाणा की असलियत
एक मज़दूर, गुडगांव
हरियाणा के ज़्यादातर अख़बारों में, अख़बार के नाम के नीचे बड़े-बड़े विज्ञापन दुहाई दे-देकर हरियाणा को नम्बर एक का राज्य साबित करने पर तुले रहते हैं। जैसे कि ‘सशक्त हरियाणा, सबसे आगे हरियाणा,’ ‘श्रमनीति लागू करवाने वाला पहला राज्य,’ ‘हरियाणा देशभर में श्रमिकों को सर्वाधिक न्यूनतम वेतन देने वाले राज्यों में अग्रणी’, ‘सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर एल.टी.सी. की सुविधा’ वगैरह वगैरह…-
ऐसे सैकड़ों विज्ञापन रोज़ हरियाणा के नम्बर एक होने के दावे ठोंकते हैं। भाई, मैं भी हरियाणा के गुडगांव शहर में आया। यहाँ ओरिएण्ट क्राप्ट, प्लाट नम्बर-7, सेक्टर-34 में काम पकड़ा। यहाँ मुझे नियुक्ति पत्र मिला जिसमें सुविधाओं का एक लम्बा जखीरा दर्ज था। कम्पनी में जगह-जगह साइनबोर्ड लगे हुए हैं। कम्पनी परिसर के लिए सभी मज़दूर समान हैं। यहाँ लिंग, जाति, धर्म के हिसाब से पदोन्नति नहीं होती है। कम्पनी परिसर में इच्छानुसार ओवरटाइम करने का अधिकार है। इस तरह की बातों से मज़दूरों को जागरूक कर रहे कई बोर्ड जगह-जगह लगे हुए हैं।
हरियाणा सरकार द्वारा तय की गयी न्यूनतम मज़दूरी इस प्रकार है – अकुशल को 4,967 रुपये, अर्द्धकुशल को 5,096 रुपये, कुशल को 5,226 रुपये। भाई वाह! ऐसा लगता है कि हुड्डा जी के राज्य हरियाणा में मज़दूरों की चाँदी है। मगर जमीनी हक़ीक़त कुछ और ही है। मैं ओरिएण्ट क्राप्ट में काम करता हूँ जिसके पूरे गुड़गांव मानेसर में करीब 35-36 प्लाण्ट हैं। इसका प्रतिदिन का कारोबार करोड़ों रुपये का है। ओरिएण्ट क्राप्ट, प्लाट नम्बर 7, सेक्टर 34 में हेल्परों की भर्ती तीन ठेकेदारों के ज़रिये होती है। कहने को तो कम्पनी में मज़दूरों की तनख्वाह 4,967 रुपये है लेकिन इसमें ई.एस.आई. व पी.एफ. के नाम पर 14 प्रतिशत काट लेते हैं जो 6 महीने से पहले नहीं मिलता और 40 प्रतिशत के करीब मज़दूर तो 6 महीने किसी फ़ैक्टरी में टिकते ही नहीं हैं। मतलब हाथ में सिर्फ़ 4300 रुपये तनख्वाह आती है। नियुक्ति पत्र में 20 दिन में एक अरैण्ज़्ड छुट्टी लेने की बात भी लिखी है जिसके पैसे भी काट लिए जाते हैं। नियुक्ति पत्र में लिखकर देते हैं कि इच्छानुसार ओवरटाइम करने पर वेतन के रेट से दोगुना दिया जायेगा। मगर हक़ीक़त ये है कि ओवरटाइम करना ही पड़ेगा और वो भी सिंगल रेट से भी कम रुपयों में – मतलब कि 23 रुपये प्रति घण्टा की दर से।
इसके अलावा, कोई चाय-नाश्ता कुछ भी नहीं मिलता। कैण्टीन बनी है, अगर कुछ खाना है तो रुपये खर्च करके खाओ। चाय के नाम पर 4 रुपये में 40 मि.ली. हल्का गर्म पानी मिलता है। बाकी खाने का अपना अलग रेट है। इस कम्पनी में पहले पीने का पानी भी नहीं था। पिछली गर्मियों में काफी कहा-सुनी होने पर पानी की व्यवस्था हुई। सुबह 9:30 बजे से शाम 6:15 की ड्यूटी करने पर 8 घण्टे के पैसे मिलते हैं। इसमें से मज़दूर के 45 मिनट लंच के नाम पर कट जाते हैं। पूरे महीने की तनख्वाह 10 से 15 तारीख़ के बीच में मिलती है। 4300 रुपये महीना पर काम करने वाले वर्कर को 30 से 15 तारीख़ के बीच में अक्सर रुपयों की ज़रूरत पड़ जाती है। उस समय, ठेकेदार के आगे-पीछे भीख माँगते रहो, तब भी वे एक रुपया तक नहीं देते और ऐसे समय में 10 रुपये सैकड़ा के हिसाब से ब्याज पर कर्ज लेना पड़ता है क्योंकि खाने-पीने का सामान, किराया-भाड़ा, दवा, सब्जी व किसी अन्य बुनियादी ज़रूरत का सामान उधारी की दुकान पर नहीं मिलता। इतना सब करने के बाद भी मज़दूर के घण्टे काटना व हाजिरी काट लेना जैसी चीज़ें चलती रहती हैं। अगर काम है तो जबरन ओवरटाइम करना पड़ता है, और अगर काम नहीं है तो जबरन भगा भी देते हैं। अगर कम्पनी में ही बने रहो तो हाजिरी ही नहीं चढ़ायेंगे। यहाँ काम करने के बाद हरियाणा के नम्बर एक होने की असलियत पता चली और यह अन्दाजा हुआ कि हरियाणा को असल में किन थैलीशाहों के लिए नम्बर एक कहा जाता होगा!
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2013
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