माकपा और सीटू – मज़दूर आन्दोलन के सबसे बड़े गद्दार

 बिगुल संवाददाता, लुधियाना

लुधियाना के मज़दूरों ने मालिकों द्वारा लूट-शोषण-दमन-अन्याय के खिलाफ़ समय-समय पर एकजुट आवाज़ उठाते हुए मिसालपूर्ण साहस, जुझारूपन और क़ुर्बानियों का परिचय दिया है। मज़दूरों ने यह साबित किया है कि अगर मज़दूर एकजुट होकर जुझारू संघर्ष लड़ते हैं तो मालिकों और उनकी सेवा करने वाले पुलिस-प्रशासन और सरकार को लोहे के चने चबाने पर मज़बूर कर सकते हैं। लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि आज लुधियाना का मज़दूर आन्दोलन ठहराव का सामना कर रहा है। मज़दूरों के समय समय पर उठने वाले संघर्षों की हार ने भयंकर निराशा पैदा की है। मज़दूर इतना हारों से निराश नहीं होते जितना कि नेतृत्व करने वालों की गद्दारी से। लुधियाना के मज़दूर आन्दोलन के साथ भी ऐसा ही हुआ है। गद्दारी करने वाले संगठनों-नेताओं की संख्या तो काफ़ी है लेकिन सबसे अधिक बड़ी गद्दार सी.आई.टी.यू. (सीटू) है जो कि चुनावबाज नकली कम्युनिस्ट पार्टी सी.पी.आई (एम) का मज़दूर फ्रण्ट है। अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए सी.पी.आई. (एम) सीटू का इस्तेमाल करती है। चुनावबाज राजनीति करने वाले हमेशा मालिकों की दलाली करते हैं और जनता के साथ धोखा। यही काम सीपीआई (एम) और सीटू का है। जहाँ इन्होंने पूरे देश में मज़दूर विरोधी-जन विरोधी काली क़रतूतों के कीर्तिमान स्थापित किए हैं और लाल झण्डे को कलंकित व बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है वहीं लुधियाना के मज़दूर आन्दोलन में भी इन्होंने मज़दूरों से गद्दारी और मालिकों की दलाली के, मज़दूर आन्दोलन की पीठ में छुरा खोपने के सारे रिकार्ड तोड़ डाले हैं। ऑटो पार्टस, साईकिल इण्डस्ट्री, टायर, स्टील, टेक्सटाइल, होजरी आदि सभी प्रकार के उद्योगों के मज़दूरों के समय-समय पर उठने वाले संघर्षों में इनकी मालिक भक्ति और इनका घोर मज़दूर विरोधी, कलंकित-काला चेहरा मज़दूरों ने बखूबी देखा है। लुधियाना के मज़दूर काफ़ी हद तक इनकी काली करतूतों के बारे में जानते हैं लेकिन फिर भी बजाज सन्स इण्ड. लि. और हीरो साईकिल जैसे कारखानों में तथा मज़दूर बस्तियों में कुछ लोगों को ये अभी भी अपने जाल में फँसाए हुए हैं। ये दलाल लुधियाना के मज़दूरों को अपने जाल में फँसाने में हमेशा लगे रहते हैं। इसलिए इन दलालों का लगातार पर्दाफाश करते रहना ज़रूरी है।

सीटू/सीपीआई (एम) की एक बेहद घटिया ताज़ा करतूत बजाज सन्स इण्डिया लि. में सामने आई है। सन् 2005 में इस कारखाने के मज़दूरों ने एकजुट संघर्ष का रास्ता चुना था। सीटू के दलाल चरित्र के बारे में न जानने के कारण संघर्षरत मज़दूर इसके जाल में फँस गए और यूनियन का नेतृत्व सौंप दिया। लेकिन जल्द ही इसके नेताओं के चंदा हड़पने और मालिकों की दलाली जैसी काली करतूतें सामने आने लगी। मज़दूरों ने सोचा कि शायद नेता गलत है और संगठन ठीक है। नेता बदल दिया गया। सीटू के नए नेता और अन्य छुटभैया नेताओं के झुण्ड ने पहले वाले नेता को भी पीछे छोड़ दिया। इन्होंने ऐसे काले कारनामे कर दिखाये हैं कि अब इस कारखाने के किसी भी मज़दूर को कोई भ्रम नहीं रह गया है कि मालिक-मैनेजमेण्ट और सीटू के सारे नेता मिलकर चलते हैं व मिलकर मज़दूरों को लूटने का काम करते हैं। सीटू के प्रधानों द्वारा मज़दूरों से मारपीट, गालीगलौज़, धमकाकर जबरदस्ती चन्दा बटोरने और हड़पने का काम तो हो ही रहा था कि अब इनकी एक और करतूत के कारण बजाज सन्स मज़दूरों में सीटू के प्रति भयंकर रोष है।

पंजाब सरकार द्वारा 1 मार्च 2013 से नये न्यूनतम वेतन लागू किए जाने के आदेश जारी हुए हैं। बजाज सन्स मज़दूरों की सीटू नेताओं से माँग थी कि वे उनसे इतना चंदा बटोरते हैं तो नया न्यूनतम वेतन भी लागू करवायें। मज़दूरों ने सीटू प्रधानों को कहा कि पिछले नेताओं की तरह पीठ में छुरा घोंपते हुए प्रोडक्शन बढ़ाने का समझौता कतई न करें। सीटू नेताओं ने मज़दूरों के सामने वायदा किया कि प्रोडक्शन हरगिज नहीं बढ़ाई जाएगी। लेकिन जब समझौता करने बैठे तो प्रोडक्शन बढ़ाने का समझौता कर डाला। समझौते के बाद भी सीटू प्रधान मज़दूरों को झूठ बोलते रहे कि प्रोडक्शन नहीं बढ़ी है। लेकिन जब कम्पनी ने प्रोडक्शन बढ़ाने का आदेश जारी कर दिया तो सीटू प्रधान मज़दूरों को कहने लगे कि प्रोडक्शन तो बढ़ानी ही पड़ेगी। कम्पनी की सी-103 युनिट में आम तौर पर दोगुना से भी अधिक प्रोडक्शन बढ़ा दी गई है। दूसरी यूनिटों में भी जल्द ही प्रोडक्शन बढ़ा दी जाएगी। सीटू द्वारा मज़दूरों पर थोपे गए डिपार्टमेण्टों के प्रधान मज़दूरों के साथ सुपरवाइजरों की तरह पेश आ रहे हैं और प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए दबाव बना रहे हैं।

मालिकों की दलाली और मज़दूरों की पीठ में छुरा घोंपने की यह कहानी यहीं नहीं रुकती। इन दलालों ने लगभग मज़दूरों की एक बड़ी सूची बनाकर कम्पनी मैनेजमेण्ट को सौंप दी है और कहा है कि ये लोग प्रोडक्शन बढ़ाने का समझौता लागू होने में रूकावटें खड़ी करेंगे। इस सूची में उन मज़दूरों के नाम हैं जो सीटू का किसी न किसी प्रकार विरोध करते रहते हैं। सीटू प्रधानों ने कम्पनी मैनेजमैंट को कहा कि इन मज़दूरों को या तो डरा-धमकाकर, कड़ी मेहनत वाले डिपार्टमेण्ट में भेजकर, पैसे रोककर या अन्य किसी हथकण्डे से झुकाया जाए या फैक्ट्री से निकाल दिया जाए। बजाज सन्स के मज़दूरों का कहना है कि दलाल यूनियनें बहुत देखीं हैं लेकिन सीटू का मुक़ाबला इस मामले में कोई नहीं कर सकता। बिलकुल ठीक कहते हैं बजाज सन्स के मज़दूर साथी। सीटू से बड़ा भितरघाती-दलाल संगठन और कोई है भी नहीं। इन्होंने आज तक लाखों रुपया मज़दूरों से इकट्ठा किया है और हड़प लिया है। चंदे का कोई हिसाब आज तक मज़दूरों को नहीं दिया है। कम्पनी से जो पिछले दरवाजे से पैसा खाते रहे हैं वह अलग है। मज़दूरों की इच्छाओं के विपरीत समझौते होते रहे हैं। आज बजाज सन्स का कोई भी मज़दूर सीटू वालों पर विश्वास नहीं करता। सीटू बजाज में अगर आज भी टिकी हुई है तो इसलिए कि उसे मैनेजमेण्ट का पूरा साथ प्राप्त है। जो भी मज़दूर सीटू वालों का विरोध करता है उस पर कम्पनी से कार्रवाई करवा दी जाती है। बजाज सन्स कम्पनी के मज़दूरों को सीटू की गुण्डावाहिनी से पीछा तो छुड़ाकर अपनी सच्ची और जुझारू यूनियन क़ायम करने के लिए आगे आना होगा।

बजाज सन्स में अपने काले कारनामों के ग्रन्थ में यह नया अध्याय जोडऩे वाले सीटू-सीपीआईएम वही हैं जिन्होंने 2004 से लुधियाना के ऑटो पार्टस, स्टील व साइकिल इण्डस्ट्री में उठने वाले मज़दूरों के साहसपूर्ण, क़ुर्बानियों भरे, शानदार जुझारू संघर्ष को दलाली, कायरता, समझौतापरस्ती और भितरघात के जरिए बिखेर डाला था। देश  में हर जगह इनका यही काम है। लाल झण्डे को दागदार, कलंकित करने की कोशिश करने वाले इन नकली कम्युनिस्टों को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता। इनको पूरी तरह नंगा करने और जन आन्दोलनों से पूरी तरह बाहर फेंकने के लिए क्रान्तिकारी मज़दूरों को पूरा जोर लगा देना चाहिए। मज़दूर आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए जहाँ मज़दूरों को उनके हक़-अधिकारों के बारे में, पूँजीवाद से मुक्ति के संघर्ष में उनकी ऐतिहासिक भूमिका के बारे में, देश-दुनिया के मज़दूरों के गौरवमयी संघर्षों-अन्दोलनों-क्रान्तियों के बारे में, आज के समय में मज़दूरों के राजनीतिक, आर्थिक व

सामाजिक संघर्षों को आगे बढ़ाने की सही रणनीति और कार्यनीति के बारे में बताने और जागृत करने के लिए बड़े स्तर पर प्रचार और आन्दोलन चलाने की जरूरत है वहीं यह भी ज़रूरी है कि सीटू-सीपीआईएम जैसे भितरघातियों के खिलाफ़ कड़ा संघर्ष किया जाए और इनकी काली क़रतूतों को व्यापक जनता के सामने लाया जाए।

दलालों और इनके द्वारा पैदा की गई निराशा से पीछा छुड़ाकर लुधियाना का मज़दूर आन्दोलन आगे बढ़ सकता है। बिगुल मज़दूर दस्ता के साथ जुड़कर टेक्सटाइल मज़दूरों ने लुधियाना में जो जुझारू और जनवादी संगठन खड़ा किया है वह इसकी अहम उदाहरण है। इसलिए सीटू-सीपीआई (एम) के भ्रमजाल में फँसे हुए मज़दूरों को इन दलालों की असलीयत को पहचानना होगा, इनके चंगुल से निकलना होगा। मज़दूरों को सीटू और सीपीआई (एम) वालों से सतर्क रहना होगा और इन्हें अपने संघर्षों-अन्दोलनों से हमेशा दूर रखना होगा। इन दलालों द्वारा पैदा की गई निराशा से उभरना होगा, एक नई शुरुआत करनी होगी। जो मज़दूर सीटू-सीपीआई (एम) जैसे दलालों के जाल में नहीं फँसे हैं, जो चाहते हैं कि दलालों द्वारा पैदा की गई निराशा से मज़दूरों को उभारा जाए और जो मज़दूर जुझारू और क्रान्तिकारी भावना रखते हैं- उन सभी मज़दूरों को मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी और सच्चे यूनियन संगठन खड़े करने के लिए पूरा ज़ोर लगा देना होगा क्यों कि मज़दूरों के सामने एक क्रान्तिकारी विकल्प पेश किए बिना मज़दूर आन्दोलन को सी.पी.आई.एम. व सीटू जैसे भितरघातियों के चुंगुल से निकालना और इनके द्वारा पैदा की गई निराशा से उभारना सम्भव नहीं है।

 

मज़दूर बिगुलजुलाई  2013

 


 

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