पुणे पोर्श–वरली बीएमडब्लू घटना
नशे में मदहोश अमीरजादों की चमचमाती गाड़ियों के चक्कों से पिसकर ख़ून से लथपथ होती आम ज़िन्दगी
अविनाश
डेढ़ महीने के समय में दो घटनाएँ घटी, जिसमें नशे में मदहोश अमीरजादों की चमचमाती गाड़ी के चक्कों के नीचे मासूम ज़िन्दगी को कुचल दिया गया। पहली घटना पुणे के कल्याणीनगर इलाके में हुई। जिसमें एक तेज़ रफ़्तार पोर्श कार ने बाइक पर सवार दो लोगों को टक्कर मारी। इस हादसे में दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। वही दूसरी घटना मुम्बई के वरली इलाके में हुई, जिसमें एक बीएमडब्ल्यू कार ने स्कूटर सवार पति-पत्नी को टक्कर मार दी, जिसमें महिला की मौके पर ही मौत हो गई। इन दोनों घटनाओं को थोड़ा और विस्तार से जानते है।
पुणे में पोर्श कार से हुई दुर्घटना
19 मई को, 12वीं पास करने की ख़ुशी में 17 साल के नौजवान ने दोस्तों के साथ पब में 48, 000 रुपये खर्च किये, शराब पिया व उसके बाद अपने अमीर बाप की आलीशान पोर्श कार को शराब के नशे में तेज़ रफ़्तार से चलाते हुए एक बाइक को टक्कर मार दी, जिससे दो युवा आईटी पेशेवर अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा की मौत हो गयी। इसके बाद व्यवस्थित तरीके से इस पूरी घटना को ढँकने व गुनाहगार को बचाने की कोशिश की गयी।
वैसे तो महाराष्ट्र में शराब पीने की क़ानूनी उम्र 25 वर्ष है, लेकिन अमीरों के लिए यह नियम कहाँ लागू होते हैं। सबसे पहले इस घटना के बाद पुलिस ने इस अमीरजादे की ख़ूब आवभगत की, उसे पिज़्ज़ा खिलाया ताकि नशा उतर जाए और ब्लड रिपोर्ट में शराब पीने कि बात न आए। इसके अलावा ब्लड टेस्ट आठ घण्टे से अधिक की देरी से कराया गया। मगर इससे भी सन्तुष्ट नहीं हुए। पिता ने कथित तौर पर डॉक्टरों को 3 घण्टे में 14 कॉल किए, जिसके बाद डॉ. अजय टावरे और डॉ. श्रीहरि हालनोर ने कथित तौर पर आरोपी के नमूने को उसकी माँ के नमूने से बदल दिया। बाद में डॉक्टरों पर भारतीय दण्ड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए जिनमें 120बी, 467, 201, 212 और 213 जैसी धाराएँ शामिल हैं। डॉ. अजय टावरे की बहाली की सिफारिश एनसीपी (अजीत पवार) विधायक सुनील टिंगरे ने की थी। सुनील टिंगरे वही विधायक है, जो सुबह 3: 30 से 6: 00 बजे के बीच पुलिस स्टेशन में मौजूद थे और कह रहे थे उन्होंने केस में किसी भी तरह का दबाव नहीं दिया था। इसके अलावा पिता, माता और दादा पर सबूतों से छेड़छाड़ का मामला शामिल हैं। इन्होंने ड्राइवर को बन्दी बना कर रखा और दुर्घटना का दोष अपने ऊपर लेने के लिए मजबूर किया था। इसके लिए बाप और दादा को गिरफ्तार भी किया गया। उसके बाद भी सबसे हास्यास्पद तो किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) का फैसला था, जिसने 300 शब्दों का निबन्ध लिखने और पन्द्रह दिन तक यातायात पुलिस की सहायता करने जैसी बेतुकी शर्तों पर दुर्घटना के 15 घण्टे के भीतर जमानत भी दे दी थी। 2 जीते-जागते इन्सानों को कुचलकर मार डालने की सज़ा 300 शब्दों का निबन्ध हो सकता है, इससे ज्यादा भद्दा मजाक देखने को नहीं मिल सकता। पुणे में और पूरे देश भर में हुए प्रदर्शन के दबाव में पुलिस ने फिर आरोपी, उसके बाप और दादा को पकड़ लिया था। मगर अब जब मामला थोडा ठण्डा पड़ गया है, तब ड्राइवर के कथित अपहरण और गलत तरीके से बन्धक बनाने से सम्बन्धित मामले में पुणे की एक अदालत ने पोर्श कार दुर्घटना में शामिल आरोपी के पिता और दादा को जमानत दे दी है। साथ ही बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे कार दुर्घटना मामले में नाबालिग आरोपी को भी जमानत दे दी है। इस पूरी घटना में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि किस तरह इस पूरी घटना को रफा-दफा करने के लिए पुलिस, नेता, डॉक्टर, न्यायपलिका का गठजोड़ काम कर रहा था और पूरा का पूरा सरकारी तन्त्र किस तरह हरकत में आया और उसकी पक्षधरता किस तरफ़ थी। इस घटना ने बिना किसी पर्देदारी के साफ़ कर दिया कि मौजूदा व्यवस्था किस वर्ग की है और इसमें आम लोगों की क्या जगह है।
वरली में बीएमडब्ल्यू से हुई दुर्घटना
पुणे पोर्श दुर्घटना की ही तरह चौंकाने वाली समानता में 7 जुलाई को शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता राजेश शाह के बेटे मिहिर शाह, जिसकी उम्र 23 साल है, के द्वारा चलाई जा रही एक तेज़ रफ्तार बीएमडब्ल्यू ने वरली में एक दम्पत्ति को टक्कर मारी, जिसके परिणामस्वरूप एक महिला (कवेरी) की मौके पर मौत हो गई। घटना से पहले मिहिर रविवार की सुबह तक जुहू के एक बार में चार दोस्तों के साथ पार्टी कर रहा था, जिसका बिल 18,000 रुपये था। वहीं सुबह 5: 30 बजे, कवेरी नाखवा और उनके पति प्रदीप नाखवा, वरली के कोलीवाडा क्षेत्र से ससून डॉक में मछली लाने के लिए यात्रा कर रहे थे। पुलिस ने कहा कि पूरा हादसा सीसीटीवी में कैद हो गया है, जिसके सीसीटीवी फुटेज में कावेरी नखवा, जिनकी आयु 45 वर्ष थी, को कार द्वारा 1.5 किलोमीटर तक घसीटा जाता हुआ देखा जा सकता है। पुलिस ने पीटीआई के हवाले से कहा, “वरली से घसीटे जाने के बाद, मिहिर और ड्राइवर बिदावत ने बान्द्रा वर्ली-सी लिंक से ठीक पहले कार रोकी और महिला को निकाला जो वाहन के टायर में फँस गई थी। इसके बाद ड्राइवर बिदावत ने ड्राइवर की सीट ले ली और कार को पीछे करते हुए पीड़िता के ऊपर चढ़ा दिया, इसके बाद वे भाग गए।” कावेरी के पति प्रदीप नखवा ने कहा, “अगर मैं गरीब नहीं होता तो वह (ड्राइवर) मिल जाता। वह लोग अमीर हैं इसलिए उसे छुपा दिया। हमारा जो सहारा था वही चला गया।” आगे प्रदीप नाखवा ने कहा, “मेरे पास दो बच्चे हैं। हमने सब कुछ खो दिया। मेरी पत्नी चली गई, लेकिन दोषी को दुर्घटना के लिए कठोर सजा मिलनी चाहिए।”
इस घटना में गाड़ी का ड्राइवर 23 वर्षीय मिहिर शाह था, जो शिव सेना (एकनाथ शिंदे) के नेता राजेश शाह के बेटा हैं। राजेश शाह पर कथित तौर पर गलत सूचना देने और सबूत नष्ट करने का मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने मिहिर के पिता, राजेश शाह को गिरफ्तार भी किया था। हालाँकि, गिरफ्तारी के एक दिन बाद, मुम्बई कोर्ट ने शिंदे सेना के नेता को 15,000 रुपये की जमानत पर रिहा कर दिया। आरोपी मिहिर शाह को भी 72 घण्टे के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है। मगर केस कमज़ोर करने के लिए मर्डर के चार्ज नहीं लगाये गए है। ऐसी क्रूरतम तरीके से मारना, फिर घसीटना और उसके बाद चक्के से निकाल कर फेंक देना और वापस गाड़ी मृत शरीर पर चलाना। ऐसी वीभत्सतम घटना के विवरण भर से रोंगटे खड़े हो जाते है। क्या सच में कोई ऐसा काम कर सकता है? लेकिन जब आप इस देश के धनपशुओं पर एक निगाह डालते हैं, तो आप समझ जाते हैं कि उनसे किसी प्रकार की मानवीयता या संवेदनशीलता की उम्मीद करना बेकार है। धनबल के कारण उनमें अधिकार-सम्पन्नता का ऐसा बोध है कि वे अन्य आम लोगों को इन्सान भी नहीं समझते हैं। प्रदीप नाखवा का कहना था कि अगर गाड़ी रोक दी जाती तो शायद उनकी पत्नी बच सकती थी।
पहले भी रौंदी जाती रही है आम लोगों की ज़िन्दगी अमीरज़ादों की गाड़ियों के चक्कों तले
महाराष्ट्र में शिंदे सरकार इस पूरी घटना में इन अमीरजादों से ध्यान हटाने के लिए और जनता में बढ़ रहे असन्तोष को ठण्डा करने के लिए, सारा दोष पब पर डालने का काम कर रही है और ‘बुलडोज़र न्याय’ के द्वारा एक पब को तोड़ा भी जा चुका है। मगर जैसे यह मामला थोड़ा पुराना होगा, इसे भी ठण्डे बस्ते में डाल दिया जाएगा। पिछले दशक में, अमीरजादों द्वारा इसी तरह अपने गाड़ियों के नीचे रौंदने के कई मामले देखे गए हैं। मगर उन मामलों में क्या हुआ ?
महाराष्ट्र में इन दोनों घटनाओं के बीच ही 29 मई को, बृज भूषण सिंह – जो देश की शीर्ष महिला पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों के केन्द्र में हैं, के बेटे, करण भूषण सिंह के काफिले के वाहन ने गोंडा में दो लोगों को कुचल दिया और उनकी हत्या कर दी। एक प्राथमिकी दर्ज की गई, लेकिन उसमें किसी का नाम नहीं लिखा गया।
राजेश रेड्डी, रियल एस्टेट एजेण्ट और कन्नड़ फिल्म निर्माता लोकेश रेड्डी के बेटे ने कथित तौर पर एक व्यक्ति की हत्या कर दी और दो अन्य को अपंग बना दिया, जब उनकी ऑडी Q7 मेयो हॉल के पास एक ऑटो से टकरा गई। जून 2013 में हुई यह दुर्घटना कथित तौर पर नशे में गाड़ी चलाने के कारण हुई थी। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कार में शराब की बोतलें पाई गई थीं और उसका ड्राइवर उस समय 19 वर्ष का था। राजेश को दो साल बाद लापरवाही से गाड़ी चलाने की एक अन्य घटना में कब्बन पार्क पुलिस ने फिर से पकड़ा। आज इस केस को बन्द कर दिया गया है।
कथित रूप से नशे में धुत बार कृष्णप्पा ने तब सुर्खियाँ बटोरीं, जब उनकी लैण्ड रोवर ने फुटपाथ पर चल रहे लोगों को कुचल दिया, जब वह एक डिवाइडर से बचने के लिए मुड़े। कृष्णप्पा जुलाई 2013 में 56 वर्ष के थे, जब यह घटना घटी। इसमें चार लोगों की मौत हो गई और छह घायल हो गए। उन पर पुलिसकर्मियों पर हमला करने का भी आरोप था। उन्हें आठ साल बाद नवम्बर 2021 में बरी कर दिया गया।
मर चुके उद्योगपति और सांसद आदिकेसावुलु के पोते गीता विष्णु ने कथित तौर पर सितम्बर 2017 में अपनी लग्जरी एसयूवी को मारुति ओमनी से टकरा दिया था। साउथ एण्ड सर्कल के पास हुई इस दुर्घटना में छह लोग घायल हो गए थे। विष्णु कथित तौर पर नशे में था और पुलिस ने कहा कि उन्होंने कार से गांजा बरामद किया है। विष्णु पुलिस हिरासत में रहते हुए “अस्पताल से भाग गया” और तीन दिन बाद आत्मसमर्पण कर दिया। जुलाई 2019 में उसे बरी कर दिया गया।
सलमान खान : शराब के नशे में एक सफेद टोयोटा लैण्ड क्रूजर से हिल रोड, बान्द्रा के अमेरिकन एक्सप्रेस बेकरी में टक्कर मारी थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौके पर मौत हो गई और चार लोग घायल हुए थे। इसके लिए भी सलमान खान को जमानत मिल गयी थी और पाँच साल की सजा निलम्बित कर दी गयी थी।
मुहम्मद निशाम: बीड़ी किंग ने केरल में एक व्यक्ति को अपनी हमर कार से टक्कर मार दी। उसने आरोप लगाया कि एक आवासीय टाउनशिप के गेट को खोलने में देरी हुई, जहाँ उसका एक अपार्टमेण्ट है। यानि अमीरों कि खिदमत में आप समय पर न आए तो आपको उनके गाड़ियों के चक्कों के नीचे कुचल दिया जाएगा।
इन घटनाओं से पता चलता है कि कैसे दौलत के नशे में डूबे यह अमीरजादे अपने पोर्शे, बीएमडब्ल्यू और लक्ज़री गाड़ियों में बैठने के बाद, सड़क पर चलने वाले इन्सान को कीड़े-मकोड़े से ज़्यादा कुछ नहीं समझते और मानते हैं कि वे उन्हें कीड़ों-मकोड़ों के ही समान कुचल सकते हैं। उन्हें पता होता है कि इसके बाद यह बेहद आसानी से छूट भी जाएँगे। भला ऐसा हो भी क्यूँ नहीं? पैसे और बहुबल के दम पर पुलिस–न्यायपालिका–नेता का गठजोड़ जो इनके पीछे खड़ा रहता है! इसके तहत ‘खाओ-पियो-ऐश करो’ की संस्कृति व दौलत के नशे में, घमण्ड से चूर यह धन्नासेठ वर्ग सबसे क्रूरतम घटनाओं को अंजाम देता रहता है। पूरी राज्य व्यवस्था इन अमीरजादों के हाथों में कठपुतली की तरह काम करती है। इनको सजा कहाँ मिलेगी? जेलों में सड़ती है बस आम गरीब जनता।
आज भी भारतीय जेलों के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 68 प्रतिशत कैदी ऐसे हैं जिन्हें किसी भी अदालत ने किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया है। उनमें से कई को अपने मामलों की सुनवाई शुरू करने से पहले ट्रायल कोर्ट में सालों तक इंतज़ार करना पड़ता है। बिना अपराध साबित हुए सालों तक जेल में बंद करके रखा जाता है, सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। अगर भूल-चूक से कोई अमीर जेल चला भी जाए तो उनके लिए वहाँ पर फाइव स्टार होटल जैसी सेवा की व्यवस्था मौजूद होती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नवीनतम रिपोर्टों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत की जेलों में ज़्यादातर युवा पुरुष और महिलाएँ ऐसे हैं जो अशिक्षित या अर्ध-शिक्षित हैं और समाज के सामाजिक-आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों से आते हैं। 65 प्रतिशत से ज़्यादा कैदी एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों से आते हैं। उनमें से ज़्यादातर इतने गरीब हैं कि वे ज़मानत राशी भी नहीं चुका पाते, जो जेलों में सबसे बुरी परिस्थितियों में रहनो को मज़बूर होते है। क्या यही इंसाफ है? अमीरों के लिए सब कुछ और गरीबों के लिए नरक से भी बुरी व्यवस्था। आज हमें इस पूंजीवादी व्यवस्था में मौजूद, अदालतों, जेल, अफसर, दफ्तर और इस पूरे ढांचे की हक़ीकत व उसके सच्चे चरित्र को पहचानना होगा और इस अन्यायपूर्ण ग़रीब विरोधी ढोंगी व्यवस्था को बदलने के काम में जुट जाना होगा। वर्ना फिर कोई नशे में मदहोश अमीरजादा अपनी गाड़ी की तेज रफ़्तार से किसी आम इंसान को कुचल कर आगे बढ़ जायेगा और यह सिलसिला जारी ही रहेगा। अपने इंसान होने का सबूत देने के लिए लड़ना होता है, वरना चुप्पी के साथ कमर झुका कर कोड़े खाने को तैयार लोग वाकई कीड़े-मकोड़ों में तब्दील हो जाते हैं।
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2024
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