नोएडा के निर्माण की दास्तान : चमचमाती आलीशान इमारतों के पीछे छिपी मेहनतकशों की अँधेरी दुनिया

– रूपेश, सुमित, सत्येन्द्र

दिल्ली से जब हम नोएडा में प्रवेश करते हैं तो गगनचुम्बी इमारतें, बड़े-बड़े आलीशान मॉल, मार्केट, चमचमाती सड़कें, एक्सप्रेस-वे आदि को देखकर लगता है तेज़ी से विकसित हो रहा नोएडा-ग्रेटर नोएडा विकास की एक नयी इबारत लिख रहा है। जब आप नोएडा-ग्रेटर नोएडा के चमकदार इलाक़ों से होकर गुज़रते हैं तो दिल्ली में बड़े-बड़े होर्डिंगों के माध्यम से उत्तर प्रदेश के विकास की जो तस्वीर पेश करने की कोशिश फ़ासिस्ट योगी सरकार कर रही है वह सच लगने लगती है। पर जैसे-जैसे आप राजधानी से सटी इस औद्योगिक नगरी के अन्दर घुसते जायेंगे, इस चमक के पीछे का अँधेरा नज़र आने लगेगा।
गगनचुम्बी आवासीय परिसरों के समानान्तर नोएडा-ग्रेटर नोएडा के गाँवों, अनधिकृत कॉलोनियों, झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लाखों मेहनतकशों की आबादी भी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। यहाँ रहने वाले लोग किस प्रकार का नारकीय जीवन बिता रहे हैं; यह जानने के लिए इस तथ्य पर ग़ौर करना ही काफ़ी होगा कि कमरतोड़ महँगाई के दौर में भी महज़ 7-9 हज़ार रुपये प्रति माह की आय पर लोग गुज़ारा कर रहे हैं। हिण्डन नदी के किनारे बसी “अनधिकृत” कॉलोनियों में लोगों को सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी हासिल नहीं हैं।
आज़ादी के बाद के शुरुआती 20 वर्षों में नेहरू काल में भारतीय पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के विकास की जो नींव डाली गयी; इन्दिरा, राजीव गाँधी के अगले 25 वर्षों के शासन काल ने उस पर तेज़ी से “विकास” की इमारत का निर्माण किया। देश के अलग-अलग हिस्सों में सुव्यवस्थित औद्योगिक नगरों का निर्माण उभरते हुए नवधनाढ्य वर्ग के लिए चमचमाते आवासीय परिसरों का निर्माण, तेज़ी से पैर पसारती राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कार कम्पनियों की महँगी गाड़ियों के फर्राटा भरने के लिए चौड़ी-चौड़ी सड़कों, एक्सप्रेस-वे, फ़्लाई ओवरों और अण्डरपासों का निर्माण किया गया।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे हुए इलाक़े भी इसी विकास का हिस्सा थे। फ़रीदाबाद, गुरुग्राम (गुड़गाँव), सोनीपत, पानीपत, ग़ाज़ियाबाद और नोएडा-ग्रेटर नोएडा जैसे शहरों के पिछले 40-45 वर्षों के विकास की कहानी भारत में पूँजीवादी विकास की तेज़ रफ़्तार की गवाह है।

नोएडा के निर्माण का इतिहास

नोएडा एक नियोजित शहर है, जो आपातकाल के दौर में 17 अप्रैल 1976 को अस्तित्व में आया। दिल्ली में बढ़ते उद्योगों व जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए इसकी स्थापना की गयी थी। ग़ैर-परम्परागत औद्योगिक इकाइयों के साथ यहाँ पर बड़ी संख्या में आईटी कम्पनियाँ हैं। साथ ही आईटीएस, बीपीओ, बीटीओ और केपीओ की कम्पनियों का भी यह हब है। जो कि बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं, बीमा, फ़ार्मा, ऑटो, फ़ास्ट-मूविंग उपभोक्ता वस्तुओं और विनिर्माण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में काम करती हैं। नोएडा आईटी सेवाओं को आउटसोर्स करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का एक प्रमुख केन्द्र है।
यहाँ पर जेवर इण्टरनेशनल एयरपोर्ट बनाया जा रहा है, नोएडा-आगरा को जोड़ने वाला देश का पहला निजी एक्सप्रेसवे भी यहाँ पर स्थित है। पूर्व-पश्चिम व उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर दोनों यहाँ पर आकर मिलते हैं, जो अभी निर्माणाधीन हैं। इसके आसपास औद्योगिक सेक्टर बनाये जा रहे हैं, जहाँ पर देश-विदेश की लगभग 200 कम्पनियों को ज़मीन दी जा रही है, यह क्षेत्र न्यू नोएडा के नाम से विकसित किया जा रहा है।
नोएडा व ग्रेटर नोएडा की जनसंख्या 10 लाख है। (2011 की जनगणना के अनुसार) लेकिन इससे भी अधिक संख्या में यहाँ पर विभिन्न कम्पनियों में कार्यरत कर्मचारी रहते हैं। यहाँ पर भवन निर्माण से जुड़े मज़दूरों की अच्छी-ख़ासी आबादी रहती है, साथ ही विभिन्न कम्पनियों में काम करने वाले कुशल-अकुशल मज़दूर लाखों की संख्या में यहाँ पर निवास करते हैं। इतना विकसित शहर होने के बाद भी, इस शहर में लगभग 250 ऐसी कॉलोनियाँ हैं जहाँ पर लोग बिना किसी सुविधा के रहते हैं। सरकारें इन कॉलोनियों को अवैध बोलकर तोड़ने की कोशिश करती रहती हैं।
दिल्ली के ओखला औद्योगिक क्षेत्र के विस्तार के तौर पर नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (New Okhala Industrial Development Authority) की स्थापना की गयी। प्रारम्भ में 12 सेक्टर बसाये गये जिसमें सेक्टर 1 से 10 औद्योगिक थे और 11 मिश्रित तथा 12 आवासीय सेक्टर थे। दूसरे दौर में फ़ेज़-2 का औद्योगिक क्षेत्र भारत का पहला विशेष आर्थिक क्षेत्र (NSEZ) था।
तीसरे चरण में सेक्टर 14 से 62 तक और चौथे चरण में सेक्टर 63 से 168 तक के निर्माण की परिकल्पना को धीरे-धीरे धरातल पर उतारा गया। उसके बाद फिर ग्रेटर नोएडा के अलग-अलग हिस्सों का विकास किया गया जिनमें औद्योगिक क्षेत्र, आवासीय सोसायटियाँ, संस्थागत क्षेत्र, व्यावसायिक परिसर आदि हैं। उसके बाद यमुना एक्सप्रेस-वे के किनारे बसा हुआ क्षेत्र है जो कि यमुना एक्सप्रेस-वे विकास प्राधिकरण के अन्तर्गत आता है। आज की तारीख़ में नोएडा, ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण और यमुना एक्सप्रेस-वे विकास प्राधिकरण मुख्यतः यह तीन विकास प्राधिकरण हैं जो इस पूरे शहर की विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए ज़िम्मेदार हैं।
शुरुआती दौर में बसे औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने के लिए आये हुए प्रवासी मज़दूरों को सेक्टर 4, 5, 8, 9 और 10 के बीच में झुग्गियों में बसाया गया। इन सेक्टरों के अन्तर्गत आने वाले गाँवों (नया बास, हरौला, झुण्डपुरा) आदि के ग्रामीणों ने मज़दूरों के लिए किराये के मकानों व लॉजों का निर्माण कराया। यहाँ एक कमरे में चार-चार मज़दूर रहते हैं। जैसे-जैसे नोएडा का विकास होता गया वैसे-वैसे मज़दूरों की आबादी बढ़ती गयी औद्योगिक मज़दूरों के साथ-साथ निर्माण कार्य में लगे मज़दूरों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ी।
आवासीय परिसरों के निर्माण क्षेत्र में प्राइवेट बिल्डरों के उतरते ही नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे विकास प्राधिकरणों के अन्तर्गत चारों तरफ़ ऊँची इमारतों के निर्माण पर ज़ोर बढ़ गया। दिल्ली मेट्रो रेल का नोएडा तक विस्तार और आज की तारीख़ में नोएडा के अपनी मेट्रो सेवा के शुरुआत के साथ-साथ पिछले 20 वर्षों का विकास बहुत तेज़ गति से हुआ है।
वर्तमान में पूरे नोएडा-ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में हज़ारों छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ सक्रिय हैं। कपड़े से लेकर कार तक, मशीन से लेकर मोबाइल तक, खिलौने से लेकर खाद्य पदार्थों तक, कॉल सेण्टर से लेकर आईटी कम्पनियों तक के बड़े-बड़े ऑफ़िस यहाँ स्थापित हैं। यहाँ की फ़ैक्टरियों में काम करने वाले मज़दूर इन्हीं औद्योगिक क्षेत्रों के आस-पास के गाँवों में तेज़ी से बस रही “अनधिकृत” कॉलोनियों में नारकीय स्थित में रहने को मजबूर हैं।
गाँवों के धनी किसानों ने ज़मीन के मुआवज़े से मिले पैसों से 100 से लेकर 500 कमरों तक के लॉजों का निर्माण करवा दिया जिनमें मज़दूर परिवार सहित रहते हैं। इतने विशाल औद्योगिक क्षेत्र की विकास परियोजना की रूपरेखा तैयार करने वालों ने इन औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों की रिहायश के लिए कोई इन्तज़ाम नहीं किया।
मज़दूरों के श्रम के बिना न तो नोएडा-ग्रेटर नोएडा का निर्माण किया जा सकता था और न ही इसका संचालन सम्भव है। फिर भी नीति निर्धारकों और सरकार द्वारा मज़दूरों के रिहायशी मकान क्यों नहीं बनवाये गये? उनकी सुविधा के लिए अस्पताल, बच्चों के लिए स्कूल क्यों नहीं बनवाये? ज़ाहिर-सी बात है वह मज़दूरों के श्रम को केवल निचोड़कर उसके ख़ून-पसीने को सोने के सिक्कों में ढालना चाहते हैं। विकास की परियोजनाओं में मेहनतकशों के लिए कोई जगह नहीं है।

नोएडा का विस्तार

“नियोजित“ नोएडा-ग्रेटर नोएडा के समानान्तर एक अनियोजित नोएडा-ग्रेटर नोएडा विकसित हो रहा है यहाँ वे लोग रहते हैं जो अपने श्रम से इस नियोजित नोएडा-ग्रेटर नोएडा को रौशन करते हैं। बुलन्दशहर और ग़ाज़ियाबाद ज़िलों के कुछ ग्रामीण व अर्द्धशहरी क्षेत्रों को काटकर 1997 को गौतमबुद्धनगर ज़िले का निर्माण किया गया। लगभग सवा सौ गाँवों में बसी औद्योगिक मज़दूरों-ग्रामीण मज़दूरों की लाखों की आबादी है जो हाशिये पर ढकेल दी गयी है। जिन गाँव वालों की ज़मीन अधिग्रहीत करके शहर का विकास किया गया है उन गाँवों में भी बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ गयी है।
भूमि अधिग्रहण के समय प्राधिकरण द्वारा गाँव वालों से किये गये वायदों को लेकर अक्सर टकराव की स्थिति पैदा होती रहती है। यह तथाकथित विकास गाँव वालों को भी रास नहीं आ रहा है। वे ख़ुद को ठगा महसूस करते हैं। नोएडा के केन्द्र में बसे कुछ गाँवों (हरौला, झण्डूपुरा, चौड़ा गाँव, गिझौर, ममूरा, बरोला, भंगेल) आदि में मज़दूरों की सघन आबादी रहती है।
सेक्टर 4, 5, 8, 9 तथा 10 की झुग्गियों में एक बड़ी मज़दूर आबादी रहती है। इसके अलावा हिण्डन नदी जो कि शहर के बीच से होकर गुज़रती है, उसके दोनों किनारों पर गाँवों से सटी अनधिकृत कॉलोनियों में मेहनतकशों की एक बड़ी आबादी रहती है। छिजारसी, चोटपुर, बहलोलपुर, सोरखा, फ़ेज़-2 औद्योगिक क्षेत्र से सटे गाँव इलहाबास, याकूबपुर, नयागाँव, नगला, ककराला, भूरा आदि वे सघन इलाक़े हैं जहाँ मज़दूर आबादी रहती है।
नोएडा को विस्तारित करते हुए 1991 में इसका एक हिस्सा ग्रेटर नोएडा के नाम से बसाया गया। ग्रेटर नोएडा में नॉलेज पार्क के नाम से शैक्षणिक संस्थानों के लिए अलग सेक्टर बसाये गये हैं, जहाँ पर लगभग 20 निजी विश्वविद्यालय व लगभग 300 कॉलेज व स्कूल हैं। हिण्डन उर्फ़ हरनन्दी नदी नोएडा व ग्रेटर नोएडा को विभाजित करती है। नोएडा से दादरी की तरफ़ जाते हुए भंगेल के बाद फ़ेज़-2 का औद्योगिक क्षेत्र शुरू होता है जो काफ़ी फैला हुआ है। यहाँ हौज़री कॉम्पलेक्स, नोएडा विशेष आर्थिक क्षेत्र के अलावा सेक्टर 80, 83, 84, 85, 86, 87, 88 का इलाक़ा है। यहाँ सैमसंग का एशिया का सबसे बड़ा उत्पादन केन्द्र है तो छोटी-छोटी औद्योगिक इकाइयाँ भी हैं। फ़ेज़-2 का औद्योगिक क्षेत्र ख़त्म होने के बाद हिण्डन नदी है जिसे पार करते ही ग्रेटर नोएडा शुरू हो जाता है जिसका पहला गाँव कुलेसरा है। कुलेसरा से दादरी के बीच ईको टेक-3 का औद्योगिक क्षेत्र, साइट बी और सी औद्योगिक क्षेत्र है। जिसमें मुख्यतः न्यू हॉलैण्ड, यामाहा, मिण्डा, डेंसो आदि बड़े औद्योगिक संयंत्र हैं। टॉय सिटी, महिला उद्यमी केन्द्र, उद्योग केन्द्र भी इसी इलाक़े में हैं। इन क्षेत्रों में काम करने वाली मज़दूर आबादी मुख्यतः कुलेसरा, हलदौनी, जलपुरा, हबीबपुर, सूतयाना, सूरजपुर, देवला और तिलपता गाँव में तथा इन गाँवों के साथ-साथ बसी अनधिकृत कॉलोनियों में रहती है।
कुलेसरा से दादरी की ओर जाते हुए बीच में सूरजपुर पड़ता है, जहाँ से एक रास्ता कासना की ओर जाता है जिसे आमतौर पर सूरजपुर-कासना रोड कहते हैं। सूरजपुर से कासना के बीच मुख्यतः ईकोटेक 1 व 2 और ईकोटेक एक्सटेंशन का औद्योगिक क्षेत्र पड़ता है जिसमें एलजी, मोज़रबियर, पेप्सिको, होण्डा सीएल, एशियन पेण्ट्स, ओप्पो, वीओ आदि के बड़े-बड़े प्लाण्ट हैं। सूरजपुर और कासना के बीच में सघन मज़दूर बस्तियाँ कम हैं। मुख्यतः सूरजपुर तथा कासना में बड़ी मज़दूर आबादी रहती है।

अनुपस्थित हैं मज़दूरों को संगठित करने वाली ताक़तें

नोएडा-ग्रेटर नोएडा में जिस रफ़्तार से गगनचुम्बी आवासीय परिसरों का निर्माण हो रहा है तथा जितनी बड़ी संख्या में मध्यवर्गीय व उच्च मध्य वर्गीय परिवार शिफ़्ट हो रहे हैं उनकी सुविधाओं एवं ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उसी अनुपात में घरेलू कामगारों की एक बड़ी आबादी भी आ रही है। इनकी आबादी इन सोसायटियों के आस-पास रहती है। नोएडा में सदरपुर, छलेरा, हाज़ीपुर, बरोला, गेझा, शाहदरा गढ़ी, सोरखा, भंगेल, सलारपुर, असगरपुर आदि गाँवों में घरेलू कामगारों की बड़ी आबादी रहती है। जिन्हें किसी भी तरह के श्रम क़ानूनों की सुविधा नहीं प्राप्त है।
नोएडा-ग्रेटर नोएडा में कार्यरत लाखों मज़दूरों की आबादी जिस प्रकार का नारकीय जीवन बिता रही है, फ़ैक्टरियों में जिस प्रकार से श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ायी जा रही हैं, आये दिन होने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं में रोज़ मज़दूरों की जिस प्रकार मौतें होती हैं, उसके मद्देनज़र मज़दूरों के प्रतिरोध को इन भयंकर अन्याय के विरुद्ध संगठित करने वाली ताक़तें अनुपस्थित हैं। मज़दूरों के अन्दर पल रहा ग़ुस्सा समय-समय पर दुर्घटनाओं के बाद स्वत:स्फूर्त और अराजक रूप से फूट पड़ता है जिसके बाद पुलिस प्रशासन का दमन भी मज़दूरों को झेलना पड़ता है और फिर मज़दूर बिखर जाते हैं। ज़ाहिर है, जब तक मज़दूरों के क्रान्तिकारी संगठनों व यूनियनों का निर्माण नहीं किया जाता है, तब तक ये स्वत:स्फूर्त विद्रोह फूटते रहेंगे और बिखरते रहेंगे, लेकिन संगठित और योजनाबद्ध तरीक़े से प्रतिरोध और आन्दोलन की रणनीतियाँ नहीं बन सकेंगी। नोएडा व ग्रेटर नोएडा के लाखों-लाख मज़दूरों के लिए एक ऐसे संगठन का निर्माण आज पहली ज़रूरत है। कहने को तो संशोधनवादी पार्टियों की धन्धेबाज़ ट्रेड यूनियनें कुछ इलाक़ों में सक्रिय हैं मगर यह मज़दूरों के हित में संघर्ष करने के बजाय मालिकों-मज़दूरों व प्रशासन के बीच बिचौलिये की भूमिका तक ही सीमित हैं। मज़दूरों को अपने बीच से क्रान्तिकारी संगठन व ताक़त विकसित करने के साथ ही धन्धेबाज़ ट्रेड यूनियनों के चरित्र को भी समझना होगा।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2021


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments