चित्रकूट पहाड़ियों की खदानें बन रही हैं मज़दूरों की क़ब्रगाह
महाप्रसाद
चित्रकूट की पहाड़ियों में स्थित पत्थर खदानें मज़दूरों की क़ब्रगाह बनती जा रही हैं। अभी हाल ही में चित्रकूट के भरतकूप में ग्वाँणा ग्राम से लगी पहाड़ी की खदान में राम औतार नाम के एक मज़दूर की मृत्यु हो गयी। राम औतार खदान की सफ़ाई का काम कर रहा था जिसमें कि मज़दूरों को मिट्टी को हटाकर पत्थर चट्टान निकालनी होती है और इसके बाद उस पत्थर की चट्टान में कम्प्रेसर से होल करके चट्टान को डायनामाइट से उड़ा दिया जाता है।
जिस खदान में राम औतार काम कर रहा था उस पत्थर खदान की गहराई लगभग 100 मीटर थी। राम अवतार उस पत्थर खदान में कमर में रस्सी बाँधकर खदान के बीच में काम कर रहे थे। इसी बीच खदान में अचानक मिट्टी व पत्थर से बनी एक चट्टान के खिसक जाने से उसके आगे से मिट्टी धँस गयी जिसके नीचे दबकर राम औतार की दर्दनाक मौत हो गयी। इस तरह की दुर्घटनाओं में पिछले एक महीने में ही पाँच मज़दूरों की मौत हो चुकी है। अधिकतर मामलों में मरने वाले के परिवार को कोई मुआवज़ा तक नहीं मिलता क्योंकि कई बार दुर्घटना की किसी भी व्यक्ति को जानकारी ही नहीं हो पाती है। ठेकेदार उन मज़दूरों को जेसीबी के द्वारा खोदकर उसी खदान में दफ़ना देता है। राम औतार के पत्थर खदान में काम कराने वाले ठेकेदार पैसे के दम पर मीडिया, खनिज विभाग, शासन, प्रशासन व पुलिस को मैनेज करके पत्थर खदान में हुई दुर्घटना को रोड एक्सीडेण्ट की घटना बनाकर केस रफ़ा-दफ़ा करा लिया। साथ ही अपने मुंशी व आदमियों को पीड़ित परिवार के पास भेजकर सहानुभूति व सामाजिक दबाव के ज़रिये सुलह-समझौता करा लिया। राम औतार के परिवार पर दबाव बनाया गया कि यदि आप सुलह-समझौता नहीं करते हैं तो आपको कुछ भी आर्थिक मदद नहीं मिलने वाली है। ठेकेदार के मुंशी व आदमियों के द्वारा यह कहा गया कि बड़ा आदमी है, यानी पैसा वाला आदमी है। यदि कुछ कार्यवाही करोगे तो जो पैसा आपको देना है वह शासन-प्रशासन को देकर मुक़दमा लड़ लेगा और आप ना तो मुक़दमा लड़ पायेंगे और ना कुछ पायेंगे। इससे अच्छा यही है कि आप जो ठेकेदार दे रहा है उसको ले लीजिए। हम सब लोगों की मान-मर्यादा बनी रहेगी। इसके अलावा अन्य लोगों के बारे में भी तो सोचो, सभी लोगों का रोज़गार छिन जायेगा। और कल को ठेकेदार से दुश्मनी ऊपर से हो जायेगी। आपकी कड़ी मेहनत के बाद कोई क़ानूनी कार्यवाही हो भी गयी तो हम उसके ख़िलाफ़ हाई कोर्ट से स्टे लेंगे। या जो भी होगा। इसलिए आप लोग हम लोगों की बात मान जाओ। कल को आपके तीन लड़कियाँ हैं जिनकी शादी करनी होगी। उनकी शादी के लिए हम लोग एक-एक लाख दिला देंगे और क्रिया कर्म का 20 हज़ार और दिला देंगे। अन्ततः राम औतार की पत्नी शकुन्तला को और उसके परिवार ने अन्य कोई उपाय न देखकर उनकी बात मान भी ली।
ऐसी घटनाएँ इस इलाक़े में कोई नयी बात नहीं है। मज़दूरों के पास ऐसी कोई यूनियन भी नहीं है जो कि उनकी मज़दूरी बढ़ाने, जीवन बचाव उपकरण, मेडिकल भत्ता व बच्चों को शिक्षा आदि हक़ और अधिकार के लिए लड़ाई लड़े और किसी भी पीड़ित मज़दूर व मज़दूर के परिवार को उचित मुआवज़ा दिलाने के लिए संघर्ष करने को तैयार रहे।
पिछले 35-40 वर्षों से लगातार बुन्देलखण्ड क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का बहुत ही भयानक व तीव्र गति से दोहन किया जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप 200-300 मीटर ऊँची पहाडि़यों को कहीं-कहीं तो पूरी तरह से ख़त्म कर दिया गया है और कहीं-कहीं ख़त्म होने की क़गार पर हैं। दूसरी तरफ़ नदियों से मोरन, रेत व बालू आदि लगातार निकाला जा रहा है। यह प्राकृतिक तबाही व बर्बादी बाक़ायदा शासन व प्रशासन की मिलीभगत से क़ानूनी वैधता के साथ कुछ लोगों के द्वारा की जा रही है।
इन प्राकृतिक संसाधनों की लूट छिपाने के लिए शासन-प्रशासन बीच-बीच में सतत विकास व समावेशी विकास जैसे नारे लगा देता है। जिससे लोगों को लगे कि शासन-प्रशासन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए बहुत ही तत्पर है जबकि शासन-प्रशासन की मिलीभगत के बग़ैर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बड़े पैमाने पर किया ही नहीं जा सकता है। अगर इस लूट के ख़िलाफ़ लोगों को लामबन्द नहीं किया गया तो यह पूरे क्षेत्र के मानवीय जीवन के लिए संकट पैदा कर देगी।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2019
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