हरियाणा में यूनियन बनाने की सज़ा – मुक़द्दमा और जेल!

अनुष्का सिंह, सीजो जॉय
सचिव, पीयूडीआर

10 जून 2017, पीयूडीआर आइसीन ऑटोमोटिव हरियाणा प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के संघर्षरत मज़दूरों के खि़लाफ़ दर्ज मुक़द्दमे एवं गिरफ़्तारी की निन्दा करता है। पिछले कुछ महीनों से मज़दूर अपनी यूनियन पंजीकृत करवाने के लिए और मैनेजमेण्ट से अपने काम की परिस्थितियों से सम्बन्धित माँगों को लेकर संघर्षरत हैं। 31 मई 2017 को कम्पनी के गेट पर बीते कईंं दिनों से शान्तिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों पर पुलिस ने मैनेजमेण्ट की शिकायत पर पहले लाठी चार्ज किया, फिर उन्हें हिरासत में ले लिया। इन सभी के ख़िलाफ़ रोहतक के साँपला थाने में एफ़आईआर दर्ज किया गया है जिनमें यूनियन लीडरों को मुख्य आरोपी नामित किया गया है।
आइसीन ऑटोमोटिव हरियाणा प्राइवेट लिमिटेड एक जापानी कम्पनी है जो 2011 से आईएमटी रोहतक में स्थित अपनी फ़ैक्टरी में टोयोटा, मारुती, हौण्डा आदि नामी गाड़ी बनाने वाली कम्पनियों के लिए ‘डोर लॉक’ एवं ‘इनसाइड-आउटसाइड हैण्डल’ जैसे पार्ट्स बनाती है। इस फ़ैक्टरी में क़रीब 450 मज़दूर काम करते हैं। इन्हें क़रीब 8000 से 10000 रुपये का मासिक वेतन मिलता है। आइसीन ऑटोमोटिव हरियाणा मज़दूर यूनियन द्वारा जारी किये गये एक पर्चे के अनुसार, काम के दौरान मज़दूरों को पानी व पेशाब के लिए मना किया जाता है, उनके साथ गाली-गलौच की जाती है और महिला मज़दूरों के साथ भी दुर्व्यवहार किया जाता है।
कम वेतन और काम की बुरी परिस्थितियों के चलते मज़दूरों ने फै़सला किया कि वे अपनी यूनियन को पंजीकृत करेंगे और अपनी माँगों को मैनेजमेण्ट के सामने रखेंगे। 20 मार्च 2017 को उन्होंने यूनियन के पंजीकरण के लिए श्रम विभाग में अर्जी दी।
26 मार्च को मज़दूरों ने अपना माँगपत्र कम्पनी को दिया। पर न तो कम्पनी मैनेजमेण्ट और न ही प्रशासन की तरफ़ से मज़दूरों की कोई ख़बर ली गयी या सुनवाई की गयी। उल्टा 25 अप्रैल को कम्पनी ने रोहतक सिविल कोर्ट में मुक़द्दमा दाखि़ल कर दिया और यूनियन लीडरों और सदस्यों को फ़ैक्टरी गेट के अन्दर आने से रोकने और फ़ैक्टरी परिसर के 1000 मीटर तक कोई धरना या शामियाना लगाने से रोकने के निर्देश माँगे। 26 अप्रैल को सिविल जज ने अन्तरिम आदेश दिये कि फ़ैक्टरी परिसर के अन्दर और फ़ैक्टरी गेट से 400 मीटर दूरी तक मज़दूर धरने पर भी नहीं बैठ सकते। 3 मई को कम्पनी ने मोर्चे की अगुवाई कर रहे 20 मज़दूरों को काम से निकाल दिया। बाक़ी मज़दूरों ने जब इसका विरोध किया तो कम्पनी ने उन्हें एक “अण्डरटेकिंग” थमा दी और यह शर्त रख दी कि इस पर हस्ताक्षर करके ही वे काम पर वापस आ सकते हैं। कम्पनी के मनमाने बर्ताव के विरोध में मज़दूर 3 मई से कम्पनी के गेट के बाहर बैठकर शान्तिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हैं।
इस बीच 12 मई को मज़दूरों की यूनियन पंजीकरण की अर्जी ख़ारिज़ हो गयी। यूनियन लीडरों का कहना है की अर्जी को बेबुनियाद कारणों से ख़ारिज़ किया गया है। जहाँ कारण बताया गया है कि यूनियन के चार सदस्य क़ानूनी परिभाषा में अनुसार “मज़दूर” नहीं हैं, वहीं लीडरों का कहना है कि ये बात उनकी वेतन रसीद से झूठ साबित होती है। जहाँ कारण बताया गया है कि यूनियन के कुल सदस्य कम्पनी की कुल मज़दूर संख्या के 10 प्रतिशत से भी कम है, वहीं लीडरों का कहना है कि कम्पनी ने यह संख्या षड्यन्त्र के तहत बढ़ाकर बताई है।
इसके पश्चात 30 मई को, चल रहे सिविल मुक़द्दमे में जज ने एक और निर्देश दिया कि यूनियन के सदस्य फ़ैक्टरी परिसर में न तो घुसेंगे, न उसके 200 मीटर के दायरे में कोई धरना करेंगे, न नारे लगायेंगे, न घेराव करेंगे, न रास्ता रोकेंगे। कम्पनी द्वारा दिये गये तथ्यों (जैसे मज़दूरों द्वारा फ़ैक्टरी सम्पत्ति को नुक़सान पहुँचाया गया और उत्पादन धीमा किया गया) की पड़ताल किये बिना और संविधान के अनुच्छेद 19 में दिये गये शान्तिपूर्वक प्रदर्शन करने के बुनियादी हक़ों को नकारते हुए उपरलिखित फै़सला कम्पनी के पक्ष में सुना दिया गया। 31 मई को सुबह से ही मज़दूर अपने परिवारजनों के साथ अपनी अनसुनी माँगों को उठाने के लिए फ़ैक्टरी के बाहर धरने पर बैठे थे। मैनेजमेण्ट की शिकायत पर हरियाणा पुलिस वहाँ एकत्रित हो गयी, प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया, उन्हें हिरासत में ले लिया और उन पर साँपला थाने में मुक़द्दमा दर्ज कर दिया। एफ़आईआर के अनुसार मज़दूरों पर आरोप है कि वे ग़ैर-क़ानूनी रूप से ख़तरनाक हथियार (यानी झण्डे!) लेकर एकत्रित हुए, रास्ता रोका, कम्पनी के गेट को जाम कर दिया, कम्पनी के स्टाफ़ को धमकी दी और आम चोट पहुँचाई।
425 लोगों को, जिनमें मज़दूर, उनके परिवारजन और कुछ कार्यकर्ता भी शामिल थे, रोहतक के सुनारियन जेल में बन्द कर दिया और मजिस्ट्रेट को अर्जी देने पर ही 6 जून तक सभी को बेल पर छोड़ा गया।
मज़दूरों के काम की परिस्थितियों से सम्बन्धित माँगों को लेकर कम्पनी प्रबन्धन और श्रम विभाग की उदासीनता बीते माह में उनके रवैये से स्पष्ट है। और मज़दूरों के यूनियन बनाने के बुनियादी हक़ के संघर्ष को विफल बनाने में पुलिस और न्यायपालिका भी अपना सम्पूर्ण योगदान दे रही है। एक तरफ़ मज़दूरों को संगठित होने से रोकने के लिए प्रबन्धन ने 20 मज़दूरों को सीधा निष्कासित कर दिया और बाकि़यों से अण्डरटेकिंग देने की शर्त रख दी। उनकी माँगों के बारे में बातचीत की कोई पहल नहीं की, बल्कि गेट पर बाउंसरों को तैनात किया गया। सिविल कोर्ट में यूनियन के सदस्यों को बाहर निकालने के लिए मुक़द्दमा कर दिया और फिर 31 मई को उनके खि़लाफ़ पुलिस में शिकायत भी दर्ज करायी। दूसरी तरफ़ प्रशासन, ख़ास तौर से श्रम विभाग, की तरफ़ से मज़दूरों की माँगों के लिए प्रबन्धन पर कोई दबाव नहीं बनाया गया है। प्रबन्धन का मनोबल बढ़ाते हुए पुलिस ने मज़दूरों पर लाठीचार्ज किया, उन पर मुक़द्दमा दर्ज किया और कई दिनों तक गिरफ़्तार करके रखा। साथ ही सिविल कोर्ट ने मज़दूरों को फ़ैक्टरी के आस-पास प्रदर्शन करने से भी रोक दिया है।
हरियाणा में आइसीन, हौण्डा, मारुती, ओमैक्स आदि कम्पनियों के संघर्षों से स्पष्ट पता चलता है कि आज भी मज़दूरों के लिए संविधान के अनुच्छेद 19 में दिये गये संगठित होने के मूलभूत अधिकार को हासिल करना कितना मुश्किल है। ऐसे में पीयूडीआर माँग करता है कि –
1. मज़दूरों पर लगाये गये झूठे मुक़द्दमे वापस लिए जायें।
2. मज़दूरों की यूनियन को तुरन्त पंजीकृत किया जाये।
3. श्रम विभाग, मैनेजमेण्ट से मज़दूरों की माँगें मनवाने के लिए उचित कार्यवाही करे।

 

मज़दूर बिगुल, जून 2017


 

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