मुनाफ़ाखोर व्यापारी की प्रार्थना

ताज मुहम्मद अंसारी,लुधियाना।

fat-capitalistभाइयो इस महँगाई के दौर में एक तरफ जब लोग कुपोषण से बीमार पड़ रहे हैं, भूख से मर रहे हैं, लोगों का जीना दुश्वार हो गया है वहीं दूसरी तरफ सरकारी गोदामों में सैकड़ों टन अनाज़ सड़ाया जा रहा है। एक तो सरकार हम गरीबों के दिये टैक्स के पैसों से अमीर किसानों से महँगा अनाज खरीदती है,दूसरी ओर उस अनाज को गोदामों में सड़ा कर जमाखोरों को फायदा पहुँचाती है। ऐसे में एक जमाखोर क्या सोच रखता है, मुनाफा कमाने का क्या-क्या तरीका सोचता है, मैं अपनी कविता के जरिए बिगुल के पाठकों को बताना चाहता हूँ

मुनाफाखोर व्यापारी की पूजा-अर्चना कविता के रूप में

रहेंगे जितना सब बदहाल
बनेंगे उतना हम खुशहाल,
गरीबी सदा रहे आबाद।
गरीबी सदा रहे आबाद।
खरीदेंगे जब महँगी दाल
बढ़ेगा तेजी से अपना माल,
भरेंगे चीजों से गोदाम
तभी तो बढ़ेंगे उनके दाम,
गरीबी सदा…महँगाई बढ़ो तुम सुबहो-शाम
नमक को होवे तिगुना दाम,
सड़े गोदामों में जनता का माल
बिके बाजार में अपनी दाल,
गरीबी सदा…हो जाए देश चाहे कंगाल
रहेंगे हम तो मालामाल,
पड़ेंगे भूखे जब बीमार
करेंगे दवा का कारोबार,
गरीबी सदा…मरेंगे भूख से बच्चे हज़ार
करेंगे कफन का कारोबार,
महँगाई की बढ़ती रहे रफ्तार
हमारी लिए सस्ती नैनो कार,
गरीबी सदा…बनी है पूंजी की सरकार
मुनाफा जमकर काटो यार,
जनता करे चीख पुकार
हमारी रक्षक है सरकार,
गरीबी सदा…हम हैं स्विस बैंक के खातेदार
है दौलत सात समन्दर पार,
गरीबी सदा…

 

बिगुल, मार्च-अप्रैल 2010


 

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