मिंडा फ़रूकवा इलेक्ट्रिक कम्पनी में मज़दूरों का जुझारू संघर्ष

Minda Bawal_26.6.14_1रेवाड़ी के बावल औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर-3 में स्थित मिंडा फ़रूकवा इलेक्ट्रिक कम्पनी प्रबंधन ने 23 जून की सुबह अचानक 145 मज़दूरों को बर्खास्त कर दिया जिसमें 14 महिला मज़दूर भी है। इसके बाद से मिंडा मज़दूरों ने गेट पर कम्पनी का चक्का जाम करके अपने संघर्ष की शुरुआत की। असल में मिंडा प्रबंधन पिछले लम्बे समय से कायम मज़दूरों की एकता को तोड़ने के लिए तीन-तिकड़म कर रहा था। ज्ञात हो कि मिंडा मज़दूरों ने अगस्त 2013 में प्रबंधन की तानाशाही के खिलाफ़ अपनी यूनियन बनाने का फ़ैसला किया था। उसके बाद से मज़दूरों ने तीन बार यूनियन पंजीकरण का आवदेन भी किया लेकिन हर बार प्रबंधन ने श्रम-विभाग से मिलीभगत करके मिंडा मज़दूरों की यूनियन फ़ाईल रद्द करा दी। फि़लहाल मज़दूरों ने 22 अप्रैल को नये सिरे से स्वतंत्र यूनियन की फ़ाईल लगाई है जिससे प्रबंधन डरा हुआ है और इस कारण वे यूनियन के नेतृत्वकारी मज़दूरों को नौकरी से बर्खास्त करके मज़दूरों की एकता तोड़ने का प्रयास कर रहा है। लेकिन इस बार प्रबंधन की एकतरफ़ा कार्रवाई के खिलाफ़ सिर्फ़ स्थायी मज़दूर ही संघर्ष नहीं कर रहे बल्कि 400 ठेका मज़दूर और 200 एफ़टीसी मज़दूर भी कन्धो से कन्धा मिलकर संघर्ष में साथ हैं। मिंडा प्रबंधन ने मज़दूरों को डराने के लिए खुलेआम बांउसर गेट पर बैठा रखे हैं।
आज गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति (जीएमएसएस) ने मिंडा मज़दूरों के संघर्ष का समर्थन किया। जीएमएसएस के अजय ने अपनी बात की शुरुआत ‘‘जारी है हड़ताल’’ गीत से की। आगे उन्होनें कहा कि पूरे बावल क्षेत्र में पिछले 2 माह से अलग-अलग फ़ैक्टरियों के मज़दूर यूनियन बनाने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे है चाहे वे एहरेस्टी के मज़दूरों हो या पास्को के। इसलिए ये बात साफ़ है कि आज पूरे गुड़गांव-मानेसर-धारुहेड़ा-बावल में मज़दूरों की कुछ साझा मांग बनाती है जैसे यूनियन बनाने की मांग, ठेका प्रथा खत्म करने की मांग या जबरन ओवरटाईम खत्म करने की मांग। ये सभी हमारी साझा मांगें है इसलिए इनके खिलाफ़ भी हमें साझा संघर्ष करना होगा क्योंकि हम सभी मज़दूर जानते है मालिकों-सरकार-पुलिस-प्रशासन गठजोड़ एकजुट होकर मज़दूरों के खिलाफ़ है और इनके खिलाफ़ सिर्फ़ एक फ़ैक्टरी के आधार पर नहीं जीता जा सकता है बल्कि पूरे आटो सेक्टर या पूरे इलाके के मज़दूरों की फ़ौलादी एकता कायम करके ही मज़दूर विरोधी ताकतों को मुंहतोड़ जबाव दिया जा सकता है। इसलिए हमें अपने फ़ैक्टरी संघर्ष के साथ ही पूरे आटो सेक्टर के मज़दूरों की एकता कायम करने की लम्बी लड़ाई में जुटाना होगा। ऐहरेस्टी कम्पनी के मज़दूरों ने भी मिंडा मज़दूरों के आन्दोलन का समर्थन किया।
मिंडा फ़रूकवा का इतिहास और मज़दूर के हालात!
मिंडा फ़रूकवा इलेकिट्रक प्रा. लि. उत्पादन 2007 से हो रहा है ये मिंडा फ़रूकवा आटो कम्पनियों के लिए वायरिंग बनाने का काम करती है। इसकी मुख्य सप्लाई कम्पनी मारुति सुजुकी, निशान, होण्डा है। इस समय कम्पनी में लगभग 1000 मज़दूर काम रहे है जिसमें 300 स्थायी मज़दूर हैं 400 ठेका मज़दूर तथा अभी दो माह से 200 मज़दूरों को एफ़टीसी (फि़क्स टर्म कॉण्‍ट्रेक्‍ट) के तौर पर भर्ती हुए है। इन मज़दूरों में 100 से ज्यादा महिला मज़दूर भी है। लगभग पांच सालों से काम कर रहे स्थायी मज़दूरों को वेतन के नाम पर 6200 रुपये मिलते है जबकि ठेका मज़दूरों को मात्र 5300 रुपये मिलते हैं। मिंडा प्रबंधन पिछले एक साल से जबरन ओवरटाईम करा रहा है जिसमें मज़दूरों से 10-12 घण्टे काम करना आम बात है।

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एनसीआर की हर फैक्‍टरी की तरह यहां भी मालिक गुण्‍डागर्दी का सहारा लेकर मज़दूरों को तोड़ने की कोशिश में है। फैक्‍टरी के अन्‍दर धीरे धीरे बाउंसर इकट्ठा किये जा रहे हैं। आशंका है कि यहां भी मारूति, होंडा, एहरेस्‍टी, श्रीराम पिस्‍टन एण्‍ड रिंगस वाली कहानी दोहरायी जा सकती है।

एनसीआर की हर फैक्‍टरी की तरह यहां भी मालिक गुण्‍डागर्दी का सहारा लेकर मज़दूरों को तोड़ने की कोशिश में है। फैक्‍टरी के अन्‍दर धीरे धीरे बाउंसर इकट्ठा किये जा रहे हैं। आशंका है कि यहां भी मारूति, होंडा, एहरेस्‍टी, श्रीराम पिस्‍टन एण्‍ड रिंगस वाली कहानी दोहरायी जा सकती है।


 

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