एक मजदूर से बातचीत
आनन्द, बादली, दिल्ली
मैं बादली औद्योगिक क्षेत्र जी-1 दिल्ली में काम करता हूँ। आज सभी यही कहते हैं कि अगर तरक्की करनी है तो एक ही रास्ता है – कड़ी मेहनत, लगन, त्याग, ईमानदारी, हुनर आदि-आदि। जो लोग इन बातों का प्रचार-प्रसार जोर-शोर से करते हैं वे तो अपना दीन-धर्म बेचकर लगे हैं। लूटने, खसोटने डंडी मारने व दूसरों का हक़ छीनने, घपलों, घोटालों में उनके लिए कड़ी मेहनत और ईमानदारी यही है कि किस तरह एक दुकान से दो दुकान की जाये, एक मकान से दूसरा मकान, एक गाड़ी से दूसरी गाड़ी, एक फैक्ट्री से दूसरी फैक्ट्री व बैंक में लाख का 10 लाख कैसे बढ़ाया जाये इसमें वे दिन-रात, एक-दूसरे का गला काटने में लगे रहते हैं। मगर अफसोस तो तब होता है जब दुनिया को चलानेवाली सबसे बड़ी ताक़त मज़दूर वर्ग भी यही दलीलें पेश करने लगता है। और इस आदर्शवादी सोच के अलावा और कुछ नहीं सोचने की कसम खाकर लगा रहता है। और अपनी पूरी जिन्दगी किसी एक मालिक के हवाले कर देता है।
मेरी फैक्ट्री में कुल 12 लोग काम करते हैं। इसमें बैट्री बनती है। और मेरे दोस्त राकेश (जो इसी कारखाने में काम करते हैं) की भी यही राय है कि जिन्दगी में अगर आगे बढ़ना है तो एक ही रास्ता है कि पूरी लगन और ईमानदारी से काम करे और मालिक को हमेशा खुश रखे। मालिक अगर खुश रहेगा तो कभी निकालेगा नहीं। अब मान लो अपनी फैक्ट्री में बैटरी बनती है तो इसको हम पूरी तरह से सीख लें या कहीं भी किसी लाइन की कारीगरी सीख लें तो जिन्दगी बन जायेगी और मालिक भी आगे-पीछे तेल लगाता घूमेगा। मैंने उससे कहा कि तुम तो ऐसी बात कह रहे हो कि एक तुम ही हो जो मालिक तुम्हें तेल लगाते घूमेगा। और जो डिग्री-डिप्लोमा लिए घूम रहे हैं उनको तो कोई मालिक काम पर रखता ही नहीं क्योंकि उसे ज्यादा तनख्वाह देनी पड़ेगी, रही बात कारीगरी की तो मालिक हेल्पर रखना पसन्द करता है। 16 महीने में मालिक हेल्पर को कारीगर बना देता है और सालोंसाल हेल्परी की तनख्वाह पर ही मशीन चलवाता है। आये दिन मालिक जाने कितने कारीगरों को निकालते रहते हैं। निकालने का कारण पता लगता है कि कहीं प्रोडक्शन सही नहीं, तो कहीं माल खराब हो गया तो कहीं तनख्वाह बढ़ाने की माँग पर। उनके पास बहुत सारे बहाने होते हैं। और कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें मालिक निकाल नहीं पाते हैं। जैसे जिनका फण्ड, बोनस, ई-एस.आई- कार्ड, वेतन स्लिप वगैरह मिलती है जो स्थायी होते हैं तो उनको प्रलोभन देकर निकाल देते हैं। अभी मैं जिस फैक्ट्री में काम कर रहा हूं वहाँ मालिक ने खुले रूप से कह दिया है कि जो जाना चाहे अपना पूरा हिसाब लेकर हमारी तरफ से 20 हजार रुपये और ज़्यादा लेकर जा सकता है। वहाँ के एक सुपरवाइजर शकील ने जिसे अपनी लड़की की शादी करनी थी उन्होंने अपना पूरा हिसाब करके (कुल 90 हजार मिले) नये सिरे से नई भरती हो गये। अभी तक उन्हें 6400 रु. मिल रहे थे अब उसी काम के 4000 रु. पा रहे हैं।
साम-दाम-दण्ड-भेद जो तरीक़ा चले उन्हें चलाकर ये मालिक कारीगरों को निकालकर हेल्पर भरती कर रहा है। कारीगर महोदय अभी तक किसी एक पेशे के कारीगर हुआ करते थे। अब दर-दर की ठोकर खाकर घूम रहे हैं। अभी तक आराम के 7000 रुपये उठा रहे थे। अब हेल्परी के (3500-4000) रु. पा रहे हैं। मालिक तभी तक खुश रहता है जब तक उसको मुनाफा होता रहता है। तुम्हारी जी-हुजूरी से और बाबूजी-बाबूजी कहने से मालिक नहीं खुश होता है। किसी मजदूर को अगर बैठाकर तनख्वाह देनी पड़ जाये तो ज्यादा से ज्यादा कोई भी मालिक एक महीना तक तनख्वाह देगा उसके बाद भी अगर काम न आया तो फैक्ट्री में ताला डाल देगा। तुम चाहे कितने भी पुराने क्यों न हो। आज के दौर में अगर हमें ज़िन्दा रहना है तो मजदूर वर्ग के रूप में एकजुट होना होगा।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर-दिसम्बर 2012
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