धर्म के बाज़ार में एक और नया पाखण्डी – धीरेन्द्र शास्त्री
आकाश
हम जानते हैं कि फ़ासीवाद एक प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन है और इसने हमारे देश को अपने ख़ूनी पंजे में जकड़ रखा है| बेरोज़गारी, ग़रीबी, भुखमरी और भविष्य की अनिश्चितता से परेशान जनता के सामने नक़ली दुश्मन पेश करके उसे अन्धराष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता के ख़ूनी दलदल में धकेलने का काम किया जा रहा है| संघ परिवार और उसके तमाम अनुषंगी संगठन साम्प्रदायिक फ़ासीवाद का ज़हर बड़े पैमाने पर फ़ैलाने का काम कर रहे हैं। तमाम धार्मिक अन्धविश्वास और प्रतिक्रियावादी मूल्य मान्यताएँ पहले ही जनता की चेतना को अपंग बना रही हैं। इसके साथ ही भारत जैसे ‘बाबा प्रधान देश’ में हर दूसरे ही क्षण किस्म-किस्म के बाबा पैदा होते हैं जो समाज के अन्दर प्रतिक्रिया की ज़मीन तैयार करते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में फ़ासीवादी और जनविरोधी ताक़तों की मदद करते हैं| बुर्जुआ राज्यसत्ता अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए इनका बख़ूबी इस्तेमाल भी करती है| आज के फ़ासीवादी संघी गिरोह इसका इस्तेमाल साम्प्रदायिकता के उत्प्रेरक के तौर पर कर रहे हैं।
वैसे तो हर कुछ समय बाद यहाँ कोई बड़े ब्राण्ड के बाबा जन्म लेते हैं जो किस्म-किस्म के चमत्कारों का दावा करके अपने जीवन के दुख-तकलीफ़ से त्रस्त और थकी हुई जनता को मुक्ति दिलाने के नाम पर अपना गोरखधन्धा चलाते हैं। हर धर्म में धर्म के ठेकेदार यह काम करते हैं। समाज में कुरीति, अतार्किकता, अन्धविश्वास और वेश्यावृति तक फैलाकर आज बाबागीरी अपनी तमाम गलाज़त के साथ पूँजीवादी व्यवस्था और फ़ासीवाद की सेवा में लगी है | बाबाओं द्वारा जहाँ एक तरफ़ तमाम क़िस्म के पाखण्ड रचे जाते हैं वहीं दूसरी तरफ़ जनता की गाढ़ी कमाई के एक हिस्से और संसाधनों पर कब्ज़ा करके महँगी कारों, हेलीकॉप्टरों, महलों और हीरे-जवाहरात के साथ अश्लील किस्म की ऐयाशी की जाती है। इसके अलावा, सारे धार्मिक बाबाओं द्वारा बुर्जुआ सत्ता और विचारधारा के वर्चस्व को स्थापित करने का काम किया जाता है । तमाम बाबाओं का नेताओं, राजनितिक पार्टियों, बाहुबलियों, ठेकेदारों, अपराधियों और पूँजीपतियों के साथ गठजोड़ किसी से छिपा नहीं है |
आजकल ऐसे ही एक नये बाबा की धर्म के बाज़ार में एण्ट्री हुई है| समूचा गोदी मीडिया और सोशल मीडिया पर आजकल उसकी काफ़ी चर्चा है और तमाम पूँजीपतियों द्वारा अरबों रुपये बहाकर इस नये ढोंगी को जनता के बीच स्थापित करने के प्रयास जारी हैं। देश भर में उसके “दिव्य दरबारों” का आयोजन किया जा रहा है। इस बाबा का नाम है धीरेन्द्र शास्त्री। छब्बीस वर्षीय धीरेन्द्र शास्त्री बागेश्वर बाबा के नाम से भी जाना जाता है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के गढ़ा गाँव में इसने बागेश्वर धाम के नाम से अपनी दुकान खोल रखी है। आज यह जगह उसके बिजनेस का बहुत बड़ा हब बन चुका है। इसने इस गाँव के कब्रिस्तान, सार्वजानिक तालाब और कई सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर रखा है। इसके साथ ही कई लोगों का आरोप है कि उन्हें धमकाकर जबरन उनकी ज़मीनें भी छिनी गयी हैं। बागेश्वर धाम के सेवाकार हड़पी गयी ज़मीनों पर किराए लगाकर अवैध वसूली भी करते हैं। मीडिया ख़बरों के अनुसार धीरेन्द्र शास्त्री 2014 में गाँव में झाड़ फूँक करता था। उस समय गाँव वालों ने उसे गाँव से बाहर निकल दिया था। इसके बाद वह वहाँ के सरकारी सामुदायिक भवन में रहने लगा और आज भी उस सामुदायिक भवन पर वह अवैध कब्ज़ा जमाकर बैठा है |
धर्म के बाज़ार में जब भी कोई नया बाबा आता है, वह अपनी एक विशिष्टता लेकर आता है। वह पाखण्ड के अपने पैंतरे आज़माता है, हालाँकि पाखण्ड के सारे रूप एकदम हवा-हवाई, और पुराने होते हैं, जिनका कई बार पर्दाफ़ाश हो चुका होता है। किन्तु आम जनमानस के बीच वैज्ञानिक चेतना की कमी और जीवन की आर्थिक-सामाजिक असुरक्षा और कठिनाइयों से पैदा श्रान्ति-क्लान्ति के कारण ये अपनी दुकान चलाते रहते हैं। धीरेन्द्र खुद को अन्तर्यामी कहता है, वह लोगों के मन की बात जान लेने का, और अपने चमत्कार से गम्भीर से गम्भीर रोगों का इलाज़ करने का दावा करता है। बाबा के बड़बोले दावों की पोल तब खुली जब पिछले जनवरी में नागपुर में बाबा अपने प्रवचन के साथ दिव्य दरबार लगाने वाला था| दिव्य दरबार वह दरबार है जहाँ बाबा कुछ ट्रिक्स और अपने सेवादारों की मदद से चमत्कार करने का दावा करके जनता को मूर्ख बनाता है। इसमें वह कैंसर जैसी बीमारियों का अपने जादू-टोना से इलाज करने का दावा और किसी के भी मन की बात जान लेने का दावा करता है। महाराष्ट्र में सालों से अन्धविश्वास और जादू-टोना के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रही संस्था अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष श्याम मानव को जब यह बात पता चली कि कोई बाबा दिव्य दरबार का आयोजन करने वाला है जो किसी के मन की बात, बिना बताये किसी का नाम और उसके घरवालों का नाम बता देता है तो उन्होंने उसे चुनौती दी कि अगर सच में ऐसा है तो नागपुर में बाबा एक कमरे में रहें और दूसरे कमरे में श्याम मानव अपने 10 आदमी और खास परिस्थिति में रहेंगे। अगर बाबा 90 प्रतिशत भी सही अनुमान लगा पाए तो वे खुद उसके चरणों में जायेंगे और तीस लाख रुपये भी देंगे। जैसे ही बाबा को अपना नकाब उतरते हुए दिखा, अन्तर्यामी बाबा लँगोटी लेकर तय समय के दो दिन पहले ही भाग खड़ा हुआ। इसके बाद बाबा के भक्तों ने श्याम मानव को जान से मारने की कई धमकियाँ दी और गोदी मीडिया उसके बचाव में लग गयी। इसकी एक और बानगी तब देखने को मिली जब पिछले महीने बाबा बिहार गए, जहाँ भीषण गर्मी में बाबा के दरबार में गए 100 से ज़्यादा लोग बेहोश हो गए और अन्तर्यामी बाबा कुछ नहीं कर पाये।
भारतीय मीडिया हमेशा से ही कई कूपमण्डूक विचारों और उसे फैलाने वाले बाबाओं के प्रचार का अड्डा रही है। किन्तु धीरेन्द्र शास्त्री पर उसकी अलग ही कृपा बरस रही है। गोदी मीडिया भोपू लेकर उसकी ब्राण्डिंग करने में लगी है। यह अनायास नहीं है, इसका कारण यह है कि बाबा भाजपा और संघ के प्रोपेगेण्डा को अपने हर भाषण में पेश कर रहा है। वह देशभर के कई हिस्सों में घूमकर अपने दरबार में खुलेआम भड़काऊ व साम्प्रदायिक भाषण दे रहा है और “हिन्दू राष्ट्र” यानी फ़ासीवादियों के मॉडल देश के सपने को बेच रहा है जिसमें आम मेहनतकशों और मज़दूरों का काम होगा मुँह पर ताला लगाकर धन्नासेठों के मुनाफ़े के लिए खटना, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। यही कारण है की तमाम भाजपाई और हाफपैन्टिये संघी गिरोह उसके दरबार में अपनी हाज़िरी दर्ज़ करवा रहे हैं। साफ़ है अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं और हालिया समय में साम्प्रदायिक फ़ासीवादी गिरोह के चाल, चेहरा और चरित्र जनता के सामने बेनकाब हो रहे हैं। इसका प्रमाण हालिया विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मोदी समेत तमाम भाजपा नेताओं द्वारा बजरंगबली का जाप और हिन्दुत्व का उन्माद काम न आया। आज़ाद भारत के इतिहास में यह सबसे भयानक दौर है जहाँ 32 करोड़ लोग बेरोज़गार हैं। महँगाई 2014 के बाद मोदी सरकार के काल में लगातार बढ़ी है जिसकी वजह अप्रत्यक्ष करों का भारी बोझ जनता पर थोपा जाना है ताकि मोदी-मित्रों यानी अडानी-अम्बानी जैसे धन्नासेठों को कर्ज़ से मुक्ति, जनता का धन व प्राकृतिक संसाधन लूटने तथा सारे सरकारी उपक्रम हड़प लेने की पूरी आज़ादी दी जा सके। जी.एस.टी के नाम पर जनता पर कर का बोझ लगातार बढ़ाया गया है। रसोई गैस के 1200 रुपये, पेट्रोल 100 रुपये के करीब, डीजल के 96 रूपये के करीब और जीवन के लिए आवश्यक तमाम आवश्यक वस्तुओं के बढ़ते दाम और सरकार की पूँजीपरस्त नीतियों से जनता त्रस्त हो चुकी है। साथ ही अलग-अलग तरीक़ों से जनता की जेबों पर डाका डालने वाली नीतियाँ आज नंगी हो चुकी है। ऐसे में, भाजपा और संघ परिवार उस थोड़ी भी सम्भावना को कुचलने की कोशिश कर रही है जो 2024 के लोकसभा चुनाव में उसे पूर्ण बहुमत में आने से रोकती हो। इसीलिए फिर से साम्प्रदायिकता, दंगे आदि फैलाने की साज़िश को बड़े पैमाने पर खेलने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं। इसमें धीरेन्द्र शास्त्री एक उत्प्रेरक की भूमिका निभा रहा है| ऐसा करने वाला यह कोई पहला बाबा नहीं है। पहले भी कई बाबा भाजपा के लिए वोट बटोरने का काम कर चुके हैं। उनमें से ज़्यादातर बाबा बलात्कारी, माफिया और धन्धेबाज़ रहे हैं। आसाराम, रामरहीम, चिन्मयानन्द, नारायण साईं, जयेन्द्र सरस्वती, चन्द्रास्वामी, प्रेमानन्द, रामपाल आदि ये ऐसे नाम हैं जिनकी काली करतूतें जगजाहिर हो चुकी हैं। इस प्रकार के कई पाखण्डी हैं जो सत्ता के साथ साँठगाँठ करके अपनी दुकानें चला रहे हैं। धीरेन्द्र शास्त्री जैसा ढोंगी भी भाजपा के नये साम्प्रदायिक खेल में एक प्यादा बनने का काम कर रहा है।
पूँजीवादी समाज में धर्म एक धन्धा और व्यापार ही होता है। जब यह बुर्जुआ राजनीति के साथ मिलता है तो प्रतिक्रियावाद के सबसे घिनौने रूपों को जन्म देता है। आज पूँजीवादी राज्यसत्ता अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए धार्मिक कुरीति, अन्धविश्वास और “चमत्कारी बाबाओं” को बढ़ावा दे रही है ताकि पूँजीवादी व्यवस्था के तमाम “तोहफ़ों” जैसे सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा, बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी, ग़रीबी को ‘किस्मत का लेखा’, ‘रेखाओं का खेल’, ‘पूर्वजन्म के पाप’ आदि के रूप में प्रस्तुत किया जा सके और जनता को ‘जाहि बिधी रखे राम ताहि बिधी रहना’ पर भरोसा रखकर हर अन्याय और शोषण-उत्पीड़न को स्वीकार करने और ‘सन्तोषम् परम सुखम’ की नसीहत मानने के लिए राज़ी किया जा सके। वैज्ञानिक चेतना के अभाव और अपने भौतिक जीवन की कठिनाइयों, असुरक्षा और अनिश्चितता से त्रस्त लोग अपनी असुरक्षा और बर्बादी के असली कारणों को नहीं समझ पाते और किसी चमत्कार की उम्मीद में धर्म का सहारा लेते हैं और धीरेन्द्र शास्त्री धर्म के तमाम ढोंगी-पाखण्डी ठेकेदार इसका फ़ायदा उठाते हैं । जब लोगों की आवश्यक भौतिक ज़रूरतें पूरी नहीं होती, पक्का रोज़गार नहीं मिलता, बीमारी का इलाज़ नहीं हो पाता और वे ज़िन्दगी की दुःख-तक़लीफ़ों से परेशान होते हैं और उन्हें मौजूदा अन्यायपूर्ण व्यवस्था में कोई विकल्प नज़र नहीं आता तो वे धर्म की शरण में जाते हैं। यहाँ धर्मगुरु कुछ जादू के ट्रिक्स और हथकण्डों का इस्तेमाल कर चमत्कार में भरोसा पैदा करते हैं और उन्हें मूर्ख बनाते हैं। इससे वे जनता के बीच एक मिथ्या चेतना का निर्माण करते हैं। इसके बाद बाबा चाहे कितनी भी घिनौनी हरक़त करें, भक्त उनका साथ नहीं छोड़ते। वो जो भी बोलते हैं उनके लिए वो सत्य होता है । आज धीरेन्द्र शास्त्री जैसा पाखण्डी लोगों को यह बताता है कि उसके धर्म को मुसलमानों से ख़तरा है, मुसलमान ही उनकी सारी समस्याओं की जड़ हैं और इससे बचने के लिए “हिन्दू राष्ट्र” बनाना है! तमाम मीडिया चैनल, भाजपा आई.टी. सेल और कई फ़ासिस्ट संघी जनसंगठनों द्वारा फैलायी जा रही नफ़रत में यह आग में घी का काम करता है। इस प्रकार यह दिन की उजाले की तरह साफ़ है कि राजनीति और धर्म का मिश्रण एक भयानक दानव को पैदा करता है जो आज हमारे समाज में खतरनाक विष फैला रहा है।
आज तमाम प्रगतिशील लोगों और संगठनों को यह माँग करनी चाहिए कि धर्म का राजनीति से पूर्ण अलगाव हो और धर्म सभी का निजी मसला हो। यही एक धर्म-निरपेक्ष राज्य की पहचान होती है। इसके साथ ही भारत में सर्वहारा पुनर्जागरण और प्रबोधन के कार्यभार को पूरा करना होगा। कूपमण्डूकता, अन्धविश्वास आदि के खिलाफ़ वैज्ञानिक तर्कपद्धति का लगातार प्रचार प्रसार करना होगा।
मज़दूर बिगुल, जून 2023
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