इंग्लैण्ड का नया दक्षिणपन्थी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और बेगानी शादी में दीवाने देश-विदेश के भारतीय मूर्ख दक्षिणपन्थी अण्डभक्त
सुहास
दुनिया के सारे खाते-पीते मध्यवर्गों में से यदि सबसे मूर्ख खाते-पीते मध्यवर्ग के ख़िताब के लिए कोई टूर्नामेण्ट हो, तो सम्भवत: भारत का खाता-पीता मध्यवर्ग ही उसमें स्वर्ण पदक प्राप्त करेगा। साथ ही, दुनिया के सबसे प्रतिक्रियावादी खाते-पीते मध्यवर्ग के लिए भी यदि कोई अन्तरराष्ट्रीय मुक़ाबला हो तो उसमें भी भारत का खाता-पीता मध्यवर्ग पहले पायदान पर ही आयेगा। इसके भीतर मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश आबादी के प्रति जो नफ़रत और एक पाशविक हद तक आक्रामक क़िस्म की अधिकार-सम्पन्नता, जनवादी सोच का अभाव, वर्गीय श्रेष्ठताबोध और सामाजिक डार्विनवाद की सोच है, वह अभूतपूर्व है। कई बार उसकी यह प्रतिक्रियवादी सोच ग़रीबों के प्रति रहम और भीख देने के रूप में भी सामने आ सकती है। इससे धोखा मत खाइएगा। वे हमें अपने बराबर नहीं बल्कि हीन समझते हैं और ख़ुद को हमसे श्रेष्ठ, लगभग-लगभग एक अलग प्रजाति का मानते हैं। विशेष तौर पर, आप्रवासी भारतीय खाता-पीता मध्य व उच्च वर्ग तो इसमें एक मिसाल है। चूँकि यह मूर्खता के मामले में भी अव्वल है इसलिए अपने दक्षिणपन्थी प्रतिक्रियावाद का परिचय भी यह आये-दिन देता ही रहता है।
अभी जब इंग्लैण्ड में घोर मज़दूर-विरोधी, धुर-दक्षिणपन्थी कंज़रवेटिव पार्टी का भारतीय मूल का ब्रिटिश कुलीनवादी, धनपशु ऋषि सुनक लिज़ ट्रस नामक एक अन्य दक्षिणपन्थी नेत्री को हटाकर इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री बना तो देश-विदेश में रहने वाले सारे खाते-पीते उच्च व उच्च मध्यवर्गीय भारतीय हर्षोन्माद में ऐसे बौरा गये मानो भारत ने इंग्लैण्ड से दो सौ साल की ग़ुलामी का बदला लेते हुए इंग्लैण्ड को अपना उपनिवेश बना लिया हो!
ऋषि सुनक के बारे में थोड़ा जान लेते हैं। पहली बात तो यह है कि ऋषि सुनक भारतीय नहीं बल्कि ब्रिटिश नागरिक है। न सिर्फ़ वह ख़ुद इंग्लैण्ड में पैदा हुआ था, बल्कि उसके माता-पिता भी भारत में नहीं पैदा हुए थे। उसके दादा पूर्वी अफ़्रीका से 1960 के दशक में इंग्लैण्ड आये थे और मूलत: वह वर्तमान पाकिस्तान के गुजराँवाला से आये थे (वैसे तो अण्डभक्तों को यह भी मानना चाहिए कि सुनक भारतीय नहीं बल्कि पाकिस्तानी है!)। वह केवल भारतीय मूल का है। लेकिन वह हर तरह से एक ब्रिटिश नागरिक है। अब सारे ब्रिटिश नागरिकों से तो हमारा कोई बैर है नहीं! लेकिन ऋषि सुनक कोई आम ब्रिटिश नागरिक भी नहीं है। वह इंग्लैण्ड का सबसे धनी सांसद है। 2015 में ब्रिटिश संसद में प्रवेश से पहले वह गोल्डमैन सैक्स नामक एक निवेश बैंक के लिए काम करता था और हेज फ़ण्ड नामक वित्तीय उपकरण में उसकी विशेषज्ञता है। हेज फ़ण्ड जनता से लूटे धन को सट्टेबाज़ी के ज़रिए अपनी जेब के हवाले करने का सबसे सुरक्षित और भ्रष्ट तरीक़ा है। ऋषि सुनक इंग्लैण्ड का एक बड़ा पूँजीपति है और कई बड़ी कम्पनियों में उसके हिस्से हैं। उसकी शादी भारत के एक बड़े पूँजीपति नारायण मूर्ति की बेटी से हुई है। मतलब, पूरा परिवार ही पूँजीपति वर्ग के सामाजिक मूल से आता है।
ऋषि सुनक इंग्लैण्ड के सबसे महँगे स्कूल और कॉलेज में पढ़ चुका है, जिसकी फ़ीस सुनकर आपको चक्कर भी आ सकता है। पहले वह इंग्लैण्ड के सबसे अमीर और कुलीन स्कूल विनचेस्टर में पढ़ा और उसके बाद उसने उच्चतर शिक्षा ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त की, जो इंग्लैण्ड का सबसे कुलीन विश्वविद्यालय है। 11 साल की उम्र तक वह ओकमाउण्ट प्रेपरेटरी स्कूल में पढ़ा और फिर स्ट्राउड इण्डिपेण्डेण्ट प्रेप स्कूल में पढ़ा, जिसकी फ़ीस आज 18 लाख रुपये प्रति वर्ष है! उसके बाद वह किंग एडवर्ड VI स्कूल में पढ़ा जिसकी फ़ीस आज क़रीब 17 लाख है। और उसके बाद वह विनचेस्टर कॉलेज में पढ़ा जिसकी फ़ीस आज 42 लाख रुपये प्रति वर्ष है। ज़ाहिर है, उसके राजनीतिक विचार इसी कुलीन माहौल में बने। ऋषि सुनक इंग्लैण्ड की भूतपूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर का अनुयायी और प्रशंसक है, जिसकी विचारधारा थैचरवाद का मूल यह था कि मज़दूरों से सारे श्रम अधिकार छीन लो, पूँजीपतियों को मुनाफ़ा कमाने की पूरी छूट दो, यूनियन बनाने के अधिकार छीन लो और अमीरज़ादों को देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर पूरा नियंत्रण दे दो। आर्थिक नीतियों और कट्टरपन्थ के मामले में मार्गरेट थैचर का कोई सानी नहीं था और आज भी इंग्लैण्ड का मज़दूर उसका नाम सुनकर ही थूक पड़ता है। लेकिन सुनक थैचर का नाम सुनकर आदर की पावन भावनाओं में डूब जाता है क्योंकि उसका भी यही मानना है कि पूँजीपतियों की मुनाफ़े की हवस में कोई रोक-टोक नहीं होनी चाहिए।
सुनक 2015 में इंग्लैण्ड की सबसे मज़दूर-विरोधी और पूँजी-परस्त पार्टी, यानी कंज़रवेटिव पार्टी से ब्रिटिश संसद का सदस्य चुना गया। 2020 में वह इंग्लैण्ड के एक्सचेकर यानी राजकोष का चांसलर चुना गया। अब देखें कि सुनक महोदय ने चांसलर बनने के बाद तत्काल ही क्या कारनामे दिखाये। सबसे पहले तो कोविड के दौर में ही इंग्लैण्ड की ग़रीब आबादी को प्रति सप्ताह 20 पाउण्ड का यूनिवर्सल क्रेडिट मुहैया कराने की योजना को उसने बन्द कर दिया। जोसेफ़ राउनट्री फ़ाउण्डेशन के एक आकलन के अनुसार इसकी वजह से क़रीब 2 लाख ग़रीब अंग्रेज़ मेहनतकश ग़रीबी में धकेल दिये गये। और उसी सप्ताह ऋषि सुनक ने अपने और अपनी पत्नी अक्षता मूर्ति के यॉर्कशायर स्थित निजी महल के लिए निजी स्विमिंग पूल, जिम और टेनिस कोर्ट बनाने के लिए योजना को स्वीकृत कराने की पहल शुरू की। ज्ञात हो कि इस महल को सुनक और उसकी पत्नी ने लगभग 15 करोड़ रुपये में 2015 में ख़रीदा था। यानी, अपने लिए निजी सुविधाएँ और महल और ग़रीबों को मिलने वाली सहायता रद्द! इस महल के अलावा सुनक के पास पश्चिमी लन्दन के केंसिंगटन में भी एक 7 करोड़ रुपये का पाँच बेडरूम का फ़्लैट है। इंग्लैण्ड में ग़रीबों को लूटकर सम्पत्ति संचित करने से ऋषि सुनक जब थक गये तो उन्होंने अमेरिका के कैलीफ़ोर्निया प्रान्त के सैण्टा मॉनिका में भी एक फ़्लैट ख़रीद लिया।
इसके अलावा ऋषि सुनक वित्तीय बाज़ार का एक क़ाबिल जुएबाज़ और सटोरिया भी है। अमेरिका में गोल्डमैन सैक्स में लाखों डॉलर कमाने के बाद वह इंग्लैण्ड में ‘चिल्ड्रेन इन्वेस्टमेण्ट फ़ण्ड’ नामक एक हेज फ़ण्ड में पार्टनर बन गया और वहाँ सुनक ने सट्टेबाज़ी का जो खेल खेला था, 2008 में वित्तीय बाज़ार के धराशायी होने और आर्थिक संकट के शुरू होने में उस सट्टेबाज़ी की एक अहम भूमिका थी। और यह सब बच्चों की भलाई और कल्याण के नाम पर किया गया था! इस लूट-खसोट और जुएबाज़ी से एकत्र धन से ऋषि सुनक ने अपनी कम्पनी थेलीम खोली जिसकी शुरुआती सम्पदा 52 अरब रुपये थी! थोड़ा पानी पी लीजिए, फिर आगे बढ़ते हैं!
इसके अलावा, ऋषि सुनक ने अपने ज़्यादातर मुनाफ़ाख़ोरी के काम केमैन आईलैण्ड में किये जो कि कर चोरी और भ्रष्टचार से जमा पैसे को छिपाने के दुनिया के सबसे बड़े अड्डों में से एक है। इसके बारे में टैक्स जस्टिस नेटवर्क के एलेक्स कोभाम कहते हैं कि जब केमैन आईलैण्ड में हेज फ़ण्ड के द्वारा कोई निवेश होता है “तो कोई नहीं जान सकता है कि वह पैसा कहाँ से आया है।” ऋषि सुनक चाहता तो अपने इस प्रकार के निवेश के विवरणों को साझा कर सकता था। लेकिन उसने केवल अपने ट्रस्ट के नाम के बारे में खुलासा किया लेकिन उसके बाक़ी विवरणों के बारे में नहीं। और तो और, सुनक की पत्नी सुनक के प्रधानमंत्री बनने तक इंग्लैण्ड में कोई कर भी नहीं दे रही थी। यानी भारत के हमारे अपने मोईजी के चवन्नियों-अठन्नियों की तरह ही सुनक भी अव्वल दर्जे का भ्रष्टाचारी है! इसके अलावा, सुनक ने अपनी अरबपति पत्नी अक्षता मूर्ति के साथ 2013 में एक वेंचर कैपिटल कम्पनी काटामारान वेंचर्स की भी शुरुआत की थी। इंग्लैण्ड में नियमत: हर मंत्री को अपने और अपने परिवार वालों की समस्त सम्पत्ति के बारे में पूरी जानकारी देनी होती है। लेकिन सुनक ने अपनी पत्नी के मालिकाने वाली सारी सम्पत्तियों की जानकारी को साझा नहीं किया है और स्वयं उसकी सम्पत्ति के बारे में भी जानकारी अधूरी ही है। ज़ाहिर है, मेहनतकशों के ख़ून-पसीने को निचोड़कर लूटी गयी सारी सम्पत्ति पूँजीवादी लूट के नियमों के मातहत नहीं आती, बल्कि उन नियमों का उल्लंघन करके भी आती है। इसलिए अपनी इस सारी सम्पत्ति का खुलासा कोई भी बड़ा पूँजीपति या धन्नासेठ नहीं करता है और ऋषि सुनक कोई अपवाद नहीं है।
ऋषि सुनक एक कट्टर हिन्दू भी है! इसी बात को सुनकर तो समूची भक्त मण्डली नाच उठी है। देखो ज़रा इस बन्दे को! इंग्लैण्ड में अरबपति बनकर भी यह अपनी महान संस्कृति और धर्म के मूल को नहीं भूला है! ऋषि सुनक ने अपनी महान सनातन संस्कृति और धर्म के बूते ही तो ऊपर बताये गये सारे कारनामे किये हैं! इस भक्त मण्डली में आप्रवासी भारतीय पूँजीपतियों, उच्च मध्यवर्ग और धन्नासेठों की आवाज़ भारत में मौजूद अण्डभक्तों से कम स्वर में नहीं सुनायी देती। वे तो ऋषि सुनक के इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री बनते ही उन्माद में लोट-पोट ही हो गये हैं। एक ओर भारत के अण्डभक्त ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने से हर्षातिरेक के शिकार हैं, तो वहीं आप्रवासी भारतीय पूँजीपति और उच्च मध्यवर्ग भी आनन्दोन्माद में विह्वल है! वजह समझी जा सकती है। ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनते ही भारत के प्रधानमंत्री मोईजी की उससे फोन पर बात हुई और जो सबसे पहला मुद्दा था, वह यह नहीं था कि “तू भी कट्टर हिन्दू, मैं कट्टर हिन्दू हृदय-सम्राट! अपन दोनों की तो ख़ूब छनेगी!” पहला मुद्दा यह था कि भारत के पूँजीपतियों और इंग्लैण्ड के पूँजीपतियों को हर जगह सस्ते श्रम और कच्चे माल को निचोड़ने और कम-से-कम शुल्कों का भुगतान कर एक-दूसरे के बाज़ार में माल बेचने की पूरी आज़ादी मिले! यानी पहला मुद्दा था भारत और इंग्लैण्ड के बीच का मुक्त व्यापार क़रारनामा! लेकिन यह भी है कि ऋषि सुनक एक कट्टर हिन्दू है। इसलिए उसने अपना जनेऊ दिखाने से लेकर गाय माता की पूजा करने तक के हर मौक़े को मीडिया में सुर्ख़ियाँ बनाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा। यहाँ के मूर्ख अण्डभक्त और विदेशों के आप्रवासी अण्डभक्त यह सब देखकर और भी भावुक हो गये! हालाँकि इसी बीच ऋषि सुनक जी ने गौमांस से बने पकवानों से सजी पार्टियाँ भी अपने पूँजीपति मित्रों के साथ की! असल में अण्डभक्त भक्ति भी सुविधा के अनुसार करते हैं! कहीं मुनाफ़ा पीटने के लिए गौमांस खाना पड़े तो वह भी खा लेते हैं! अजी, गौमांस तो छोड़िए मुनाफ़े की ख़ातिर ये मानवमांस भी खा सकते हैं! इनका मज़हब ही मुनाफ़ा है! हिन्दू-मुसलमान का टण्टा तो हमें फँसाने के लिए है!
बहरहाल, जिन संघियों ने आज़ादी की लड़ाई में कोई भूमिका नहीं निभायी, उल्टे अंग्रेज़ों के तलवे चाटे और माफ़ीनामे लिखे और जिन्होंने उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ कभी आवाज़ नहीं उठायी, वे आज ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने पर राष्ट्रभक्ति की पावन लहर में बहकर ऐसे मदमत्त हुए हैं कि भारत द्वारा इंग्लैण्ड को उपनिवेश बनाकर बदला लेने की बात कर रहे हैं! ऐसे ही एक आप्रवासी अण्डभक्त ने लिखा, “नेटफ़्लिक्स ने अगर अब तक न किया हो तो इस पर एक मिनी सीरीज़ बनानी चाहिए कि किस तरह कुछ भारतीयों ने अंग्रेज़ों पर अपना शासन स्थापित करके उनसे बदला लेने की योजना बनायी – ब्रिटिश लोगों को पता चल गया तो उन्होंने उन्हें अफ़्रीका भगा दिया (ऋषि सुनक के दादा अफ़्रीका से ही 1960 के दशक में इंग्लैण्ड गये थे) – लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और तीन पीढ़ियों बाद ऋषि सुनक के ज़रिए वे कामयाब हुए।” ऐसे अण्डभक्तों के दिमाग़ का आकार आपको पता चल गया होगा! शायद मूँगफली या चुनौटी के बराबर! सारे दक्षिणपन्थियों की यही ख़ासियत होती है। बाक़ी, “गर्व है, सुनक को बधाई हो!”, “दीवाली का तोहफ़ा है सुनक का प्रधानमंत्री बनना!” आदि जैसे सोशल मीडिया के मैसेज तो देश-विदेश दोनों ही जगह मौजूद अण्डभक्तों ने थोकभाव से डाले।
कोई वजह है कि दक्षिणपन्थी हर जगह एक-दूसरे को पहचान लेते हैं। उधर ऋषि सुनक ठहरा कट्टर हिन्दू, पूँजीपरस्त, मज़दूर-विरोधी दक्षिणपन्थी, इधर हमारे मोईजी ठहरे अदानी-अम्बानी के चौकीदार, मज़दूर-विरोधी फ़ासीवादी। उधर ऋषि सुनक ठहरा मार्गरेट थैचर जैसी धुर-प्रतिक्रियावादी मेहतनकश-विरोधी का विचारधारात्मक दत्तक-पुत्र, इधर मोईजी ठहरे हिटलर-मुसोलिनी, सावरकर-हेडगेवार-गोलवलकर के विचारधारात्मक-राजनीतिक वंशज! उधर ऋषि सुनक ठहरा इंग्लैण्ड की सबसे प्रतिक्रियावादी, जनविरोधी कंज़रवेटिव पार्टी का प्रधानमंत्री और इधर मोईजी ठहरे भारत की फ़ासीवादी पार्टी के सरगना! जब दिल मिले-मिले-मिले दिल मिले, तब गुल खिले-खिले-खिले गुल खिले! वहाँ के सुनक के प्रशंसक मोदी के प्रशस्ति-गान गाते हैं और यहाँ मोदी के अण्डभक्त सुनक की फ़ोटो पर अगरबत्ती जलाते हैं, माला चढ़ाते हैं! प्रतिक्रियावादी और दक्षिणपन्थी एक-दूसरे को पहचान ही लेते हैं। इसी प्रकार, अण्डभक्तों ने (भारत और विदेश दोनों जगह मौजूद!) ट्रम्प, कमला हैरिस, पुतिन आदि के लिए भी अपने आदरभाव समय-समय पर अभिव्यक्त किये हैं।
वजह यह है कि सारे प्रकार का कट्टरपन्थ और शावनवाद मज़दूरों और मेहनतकशों के प्रति नफ़रत के अपने साझा गुण से एक-दूसरे को पहचान लेते हैं। इनके विचारधारात्मक व राजनीतिक वजूद से एक ख़ास क़िस्म की बदबू आती है और एक-दूसरे की बदबू सूँघते-सूँघते ये एक दूसरे को ढूँढ़ ही लेते हैं।
हम मज़दूरों को इस प्रकरण से क्या सीखने को मिला? यह कि हमें दक्षिणपन्थियों (अचेत और सचेत!) की पहचान करने का एक और पैमाना मिल गया। जिस प्रकार हमने ट्रम्प और पुतिन जैसों के देश-विदेश में भारतीय प्रशंसकों से अपने दुश्मन दक्षिणपन्थियों की पहचान करना सीखा था, वैसे ही हम ऋषि सुनक नामक धुर दक्षिणपन्थी, प्रतिक्रियावादी, हिन्दू कट्टरपन्थी और मज़दूरों-मेहनतकशों के दुश्मन के प्रशंसकों और अण्डभक्तों की पहचान करके भी जान सकते हैं हमारे दुश्मन कौन हैं।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2022
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