बिहार के पंचायत चुनाव में ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ की भागीदारी
कोरोना महामारी के दौरान लगाये गये लॉकडाउन के कारण बिहार पंचायत चुनाव विलम्ब से करवाये गये। यह चुनाव कुल 11 चरणों में हो रहे हैं, इनमें कुछ चरण सम्पन्न हो चुके हैं, बचे हुए शेष चरण जारी हैं। बिहार पंचायत चुनाव अधिनियम 2006 के अनुसार दलगत आधार पर चुनाव नहीं होते। इसलिए बिहार पंचायत चुनाव में ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ की खुले रूप में भागीदारी नहीं थी बल्कि ‘भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी’ के सदस्य ने इस चुनाव में अपनी व्यक्तिगत पहचान के तहत भागीदारी की। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा बिहार राज्य के जहानाबाद ज़िले के हुलासगंज प्रखण्ड स्थित कोकरसा पंचायत के वार्ड संख्या 5 से ग्राम पंचायत सदस्य पद के लिए चुनाव लड़ा गया। वार्ड संख्या 5 के अन्तर्गत रुस्तमपुर गाँव के कुछ हिस्से तथा भत्तूविगहा गाँव के कुछ हिस्से हैं। इस क्षेत्र में रहने वाली ज़्यादातर आबादी खेतिहर मज़दूर एवं ग़रीब किसानों की आबादी है। इन ग़रीब किसानों के पास अपना कोई बड़ा खेत नहीं है। अधिकतर लोगों के पास मुश्किल से 4-6 कट्ठे हैं। इतनी ज़मीन से इनका जीवनयापन सम्भव नहीं है इसलिए ज़्यादातर लोग बग़ल के गाँव के धनी किसानों (ज़्यादा भूमिहार जाति या कुर्मी जाति) से बटाई या पट्टे पर ज़मीन लेते हैं। परन्तु पट्टे की ज़मीन पर भी खेती में पूँजी लगाने के लिए इनके पास पैसे नहीं होते और अक्सर ये धनी किसानों से ही ऋण लेते हैं। इन सबके बावजूद हाथ में नगद पैसा मुश्किल से बच पाता है, इसलिए आजीविका चलाने के लिए लोग बग़ल के शहरों में या राज्य के बाहर मज़दूरी करने जाते हैं। उनके घर की अर्थव्यवस्था चलाने में मज़दूरी करने का प्रमुख योगदान होता है और उनकी स्थिति अधिकांशत: अर्द्धसर्वहारा जैसी बन चुकी है। खेती के अलावा गाँव में ही कुछ सीज़नल काम मिल जाते हैं। इसके अलावा लोगों के पास इक्के-दुक्के मवेशी भी हैं। गाँव की बड़ी आबादी खेतिहर मज़दूर एवं ग़रीब किसानों की आबादी है। इस इलाक़े में लम्बे समय से भाकपा (माले) लिबरेशन का काम भी मौजूद रहा है। एक समय में ज़मीन्दारों के विरुद्ध किसानों के हथियारबन्द संघर्ष में इनकी भागीदारी रही थी। अपने जन्मकाल से ही विचारधारात्मक तौर पर अवसरवाद और संशोधनवाद की लाइन की पैरोकार भाकपा (माले) लिबरेशन का असली वर्ग चरित्र अब सबके सामने उजागर हो चुका है। गाँव के स्तर पर भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की चुनावों में भागीदारी के दौरान इसी बात की पुष्टि हुई। लोग एक नयी पार्टी की ज़रूरत को समझ रहे थे जो सही मायने में ग़रीब किसानों व खेतिहर मज़दूरों के हितों की नुमाइन्दगी करे।
ज्ञात हो, इस इलाक़े में पहले से भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का कोई आधार या काम नहीं था और कुछ ही माह पहले यहाँ उसका काम शुरू किया गया है। इसके बावजूद भी पार्टी ने पंचायत चुनाव में शिरकत की तथा बुर्जुआ तथा संशोधनवादी राजनीति के विकल्प के रूप में सर्वहारा-वर्गीय राजनीति को स्थापित करने का प्रयास किया। गाँव में मौजूद जातिवाद, परिवारवाद व धनबल-बाहुबल की राजनीति के समक्ष पार्टी ने सदस्य राधो विन्द (राहुल) को खड़ा करते हुए जनता से अपने वर्गीय हितों के आधार पर एकजुट होने का आह्वान किया। गाँव के लोगों के समक्ष पार्टी द्वारा किये जाने वाले संघर्ष के निम्नलिखित मुद्दे उठाये गये –
1) सभी को पक्का रोज़गार दिया जाये और रोज़गार नहीं मिलने की सूरत में 10,000 रुपये बेरोज़गारी भत्ता दिया जाये।
2) खेतिहर मज़दूरों के लिए भी न्यूनतम मज़दूरी, आठ घण्टे के कार्यदिवस, समूचे कार्य-अनुबन्ध के दौरान साप्ताहिक छुट्टी, सामाजिक सुरक्षा, आदि के प्रावधान लागू किये जायें।
3) ग़रीब से ग़रीब किसानों की संस्थागत ऋण (जो सस्ती ब्याज़ दर पर हो) तक पहुँच हो ताकि खेती में लगने वाली पूँजी के लिए वे धनी किसान से ऊँचे सूद पर क़र्ज़ लेने को मजबूर न रहें।
4) धनी वर्गों पर प्रगतिशील कर लगाकर ग़रीब किसानों को सरकारी माध्यम से उचित दर पर बीज, खाद, तकनीकी सहायता आदि प्रदान की जाये।
5) ग़रीब किसानों के अनाज पैक्स में ख़रीदे जायें! कई ग़रीब किसानों के खेत के काग़ज़ नहीं होने के कारण पैक्स के तहत सरकारी मदद उन्हें नहीं मिलती; यदि इसके लिए सरकार द्वारा ज़मीन के काग़ज़ बनवाना ज़रूरी है, तो वह किया जाये।
6) सरकारी योजना (वृद्धा/विधवा पेंशन, इन्दिरा आवास, मनरेगा आदि) में धाँधली न हो सके, इसके लिए पंचायत को मिलने वाले एक-एक पैसे का हिसाब जनता के सामने खोल कर रखा जाये।
7) वार्ड में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, विद्यालय, पुस्तकालय की व्यवस्था हो! हर जगह नल-जल तथा 24 घण्टे बिजली की व्यवस्था हो! गाँव की टूटी सड़कें बनवायी जायें और स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था की जाये!
इन मुद्दों के आधार पर जनता से अपील की गयी कि जाति-धर्म-परिवारवाद की राजनीति से ऊपर उठकर और चन्द तात्कालिक फ़ायदों के लोभ-लालच से ऊपर उठकर आज वोट किया जाये। चुनाव में पार्टी द्वारा उठाये गये मुद्दों पर लोग सहमत थे। इसके साथ जनता के बीच व्यापक राजनीतिक प्रचार करते हुए उन्हें बताया गया कि व्यापक मेहनतकश आबादी को बेरोज़गारी, महँगाई, ग़रीबी व सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा व अनिश्चितता से स्थायी रूप से मुक्ति एक मज़दूर इन्क़लाब तथा समाजवादी व्यवस्था की स्थापना से ही मिल सकती है। इसलिए लम्बी लड़ाई मज़दूरों की क्रान्तिकारी पार्टी को देशव्यापी पैमाने पर मज़बूती से खड़ा करने और नयी समाजवादी क्रान्ति की तैयारी करने की है। उसके बिना उपरोक्त मसलों पर जनता को कुछ राहत मिल भी जाये, तो पूँजीपति वर्ग अन्य रास्तों से उन राहतों को छीन लेने का रास्ता भी निकाल लेता है। जब तक उत्पादन, राज-काज और समाज के पूरे ढाँचे पर उत्पादन करने वाले वर्गों का हक़ नहीं होगा और फ़ैसला लेने की ताक़त वाक़ई उनके हाथों में नहीं होगी, तब तक आम मेहनतकश जनता के जीवन की समस्याओं का स्थायी समाधान सम्भव नहीं है। मौजूदा चुनावों में भागीदारी के पीछे भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का एक लक्ष्य यदि तात्कालिक सुधारों व राहतों के लिए संघर्ष करना है, तो दूरगामी और बुनियादी लक्ष्य मेहनतकश जनता को एक क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिए तैयार करना भी है।
एक स्तर तक जनता के बीच क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का प्रचार व मज़दूर-वर्गीय राजनीति की अलग पहचान बनी लेकिन यह वोटों में तब्दील नहीं हो सकी। 600 की संख्या वाले वार्ड में कुल 506 वोट डाले गये। इसमें सबसे पहला स्थान भाकपा (माले) लिबरेशन समर्थित उम्मीदवार प्रमोद विन्द (103 वोट) को मिला। वार्ड में कुल 8 उम्मीदवार खड़े थे जिसमें से भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के उम्मीदवार राधो विन्द को कुल 53 वोट मिले। ये कुल वोटों के 10 प्रतिशत से अधिक था। यह वोट सिर्फ़ अपनी राजनीति के बल पर पार्टी के उम्मीदवार को प्राप्त हुए। इसके अलावा सभी उम्मीदवारों ने जाति-धर्म, धनबल-बाहुबल की राजनीति के आधार पर वोट प्राप्त किये। भाकपा (माले) लिबरेशन समर्थित उम्मीदवार भी इसका अपवाद नहीं था। हालाँकि तमाम तिकड़मों के बावजूद भाकपा (माले) लिबरेशन समर्थित उम्मीदवार के जीतने का एक बड़ा कारण यह भी था कि पार्टी के सारे वोट उसे मिले थे। बेशक आज गाँव में लोग भाकपा (माले) पार्टी के वर्ग चरित्र की सच्चाई को समझ चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी पार्टी को लोगों ने वोट किया। भाकपा (माले) लिबरेशन का इस क्षेत्र में लम्बे समय से आधार रहा है और अतीत के सशस्त्र व जुझारू संघर्षो की छाप अब भी जनमानस में जीवित है। गाँव स्तर पर भाकपा (माले) लिबरेशन के सदस्यों को दलाली व ठेकेदारी आदि के काम में संलग्न देखते हुए भी और इस संशोधनवादी पार्टी के वर्ग चरित्र को लाक्षणिक तौर पर समझते हुए भी लोगों ने इसके उम्मीदवार को जिताया। यह बताता है कि व्यापक जनसमुदायों के दीर्घकालिक, व्यापक और सघन क्रान्तिकारी राजनीतिक प्रचार की आवश्यकता है। इस पूरी प्रक्रिया में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने भाकपा (माले) पार्टी के संशोधनवादी चरित्र को भी बेनक़ाब किया लेकिन लोगों के बीच एक विकल्प के रूप में नहीं खड़ी हो सकी। गाँव की खेतिहर मज़दूर और ग़रीब किसानों की आबादी जनता की उस पिछड़ी चेतना वाली आबादी का हिस्सा है जो आम तौर पर शुरुआत में व्यवहार में ही समझ पाती है कि कौन-सी पार्टी किस वर्ग के हित में खड़ी है। गाँव में पहले से कोई लम्बा काम और आधार न होने के कारण ही भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी बुर्जुआ व संशोधनवादी पार्टियों के उम्मीदवार के समक्ष एक विकल्प के तौर पर नहीं उभर सकी।
लोगों के बीच भाकपा (माले) लिबरेशन की असलियत भले ही स्पष्ट हो चुकी है, किन्तु संशोधनवादियों की जड़ें उखाड़ फेंकने के लिए क्रान्तिकारी शक्तियों को ज़मीन पर अपना आधार खड़ा करना होगा। गाँव के स्तर पर ग़रीब किसानों व खेतिहर मज़दूरों को उनकी ठोस वर्गीय माँगों पर एकजुट करना होगा और साथ ही क्रान्तिकारी राजनीतिक प्रचार कर उनकी वर्ग चेतना को राजनीतिक तौर पर उन्नत करना होगा। धनी किसान और कुलकों यानी ग्रामीण पूँजीपति वर्ग की नुमाइन्दगी करने वाली तमाम शक्तियाँ आज मज़बूती के साथ मैदान में खड़ी हैं किन्तु खेतिहर मज़दूरों एवं ग़रीब किसानों की नुमाइन्दगी करने वाली कोई क्रान्तिकारी ताक़त फ़िलहाल गाँवों में मौजूद नहीं है। इस चुनाव के अनुभव से यह साफ़ हुआ कि तमाम बुर्जुआ चुनावबाज़ पार्टियों तथा संशोधनवादी पार्टियों के बरक्स एक मज़बूत विकल्प के लिए पार्टी को ज़मीन पर काम खड़ा करना होगा। तभी गाँव के ग़रीबों के बीच भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी एक विकल्प बन सकती है।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2021
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