लक्षद्वीप : देश के सबसे शान्त इलाक़ों में से एक को अशान्त और अस्थिर करने में जुटे संघ और भाजपा

– केशव आनन्द

केन्द्र में भाजपा के सत्तासीन होने के बाद आर.एस.एस. हर जगह अपना साम्प्रदायिक एजेण्डा लागू करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रहा है। इसी कड़ी में मोदी सरकार का अगला निशाना लक्षद्वीप है। लक्षद्वीप में विकास और बदलाव के नाम पर तानाशाही का नया फ़रमान गढ़ा जा रहा है। फ़ासीवादी एजेण्डे के तहत वहाँ भेजे संघी प्रशासक प्रफुल्ल पटेल लोगों के पारम्परिक खान-पान में दखल देने से लेकर उनके घर-बार, रोज़गार, राजनीतिक और जनवादी अधिकार सबकुछ छीन लेने का मंसूबा पाले हुए हैं। तरह तरह के प्रस्ताव पेश किये जा रहे हैं, जिसमें विकास के नाम पर आम लोगों की ज़मीन हथियाने की योजना से लेकर स्थानीय चुनाव में उनकी भागीदारी सीमित करने तक शामिल हैं। एक प्रस्ताव के मुताबिक दो से अधिक बच्चों के माता-पिता स्थानीय निकाय चुनाव में हिस्सेदारी नहीं कर सकते। यही वजह है कि लक्षद्वीप के लोगों से लेकर देशभर के इंसाफ़पसन्द बुद्धिजीवी और नागरिक देश के सबसे शान्त इलाक़ों में से एक में मोदी सरकार के इस साम्प्रदायिक खेल का विरोध कर रहे हैं।
इससे पहले कि हम भाजपा सरकार के इन जनविरोधी क़दमों पर बात करें, आइए लक्षद्वीप की भौगोलिक, सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों के बारे में कुछ जान लें। लक्षद्वीप कई द्वीपों का समूह है, जो कि अरब सागर में स्थित है। यहाँ के द्वीप भारत के तटीय शहर कोच्चि से क़रीब 220-440 किमी की दूरी पर हैं। यह 36 अलग-अलग द्वीपों का समूह है जिनका कुल क्षेत्रफल मात्र 32.62 वर्ग किलोमीटर है । 2011 की जनगणना के मुताबिक यहाँ की कुल आबादी 64,473 है। केरल राज्य के निकट होने की वजह से यहाँ की अधिकतम आबादी मलयालम भाषा की ही एक बोली बोलती है। आबादी का बड़ा हिस्सा नारियल की खेती व मछलीपालन पर निर्भर है।
लक्षद्वीप में मुस्लिम आबादी की बहुतायत है। जनगणना 2011 के मुताबिक मुस्लिम आबादी कुल आबादी का 96.58% हिस्सा है। ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं कि भाजपा यहाँ के शान्तिपूर्ण माहौल को बिगाड़ने में क्यों लगी हुई है। दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि लक्षद्वीप की प्राकृतिक सुन्दरता को देशी-विदेशी अमीर सैलानियों को बेचने के लिए यहाँ फ़ाइव स्टार होटल, रिज़ॉर्ट आदि बनवाने के ठेके अपने चहेते पूँजीपतियों को दिये जायें, जिनमें से ज़्यादातर गुजराती हैं। इसके लिए लक्षद्वीप के नाज़ुक पर्यावरण को नुक्सान से बचाने के लिए तमाम क़ानूनों को तोड़ने-मरोड़ने में भी भाजपा को गुरेज़ नहीं है।
लक्षद्वीप एक केन्द्र शासित प्रदेश है। भाजपा के पूर्व नेता तथा आरएसएस के क़रीबी प्रफुल्ल खोदा पटेल पिछले साल दिसम्बर में नये लक्षद्वीप प्रशासक बनाये गये थे। इसके बाद वे लगातार वहाँ पर आरएसएस के अल्पसंख्यक विरोधी एजेण्डे के तहत काम कर रहे हैं; आम जनता तथा स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों से मशविरा किये बिना विधान बदल रहे हैं, क़ानूनों को संशोधित कर रहे हैं। ये तमाम परिवर्तन तथा संशोधन जनविरोधी चरित्र के हैं। लक्षद्वीप को फ़ासीवाद की नयी प्रयोगशाला बनाया जा रहा है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में गृहमंत्री तथा दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव के पूर्व प्रशासक रह चुके प्रफुल्ल खोदा पटेल के नेतृत्व में आरएसएस लक्षद्वीप की मुस्लिम बहुल आबादी को अलग-थलग करने का काम कर रहा है।
अमित शाह के जेल जाने के दौरान प्रफुल्ल ही मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिपहसालार थे। ग़ौरतलब है कि प्रफुल्ल पटेल का विवादों के साथ चोली-दामन का साथ रहा है। फिलहाल उन पर महाराष्ट्र के स्वतंत्र सांसद मोहन डेलकर की आत्महत्या के सिलसिले में जाँच भी चल रही है।
लक्षद्वीप में कोरोना के फ़ैलने के ज़िम्मेदार भी यहाँ के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल ही थे। देशभर में कोरोना के संक्रमण फ़ैलने के बावजूद लक्षद्वीप इससे बचा हुआ था, क्योंकि यहाँ आने वाले सभी यात्रियों की कोविड जाँच और एक हफ़्ते का क्वारण्टाइन अनिवार्य था। लेकिन प्रफुल्ल ने इस अनिवार्यता को ख़त्म कर यहाँ कोविड को खुला निमंत्रण दे दिया। यहाँ पहला मामला 18 जनवरी 2021 को सामने आया था; और आज कुल आबादी का दस फ़ीसदी हिस्सा इसकी चपेट में आ चुका है। यह संघी प्रशासक की लापरवाही का नतीजा है। लक्षद्वीप में मई 2021 में कोरोना जाँच में पॉज़िटिव आने की दर 68 प्रतिशत पहुँच गयी थी। जनविरोधी क़ानून सीएए-एनआरसी के विरोध के दौरान भी यहाँ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर कार्रवाई की गयी थी।
लक्षद्वीप में आम लोग प्रफुल्ल पटेल के प्रशासन द्वारा लाये गये जनविरोधी प्रस्तावों, मसौदों का कड़ा विरोध कर रहे हैं। लोगों के विरोध के केन्द्र में “गुण्डा अधिनियम”, “तटरक्षक अधिनियम”, “पशु संरक्षण अधिनियम” तथा “मसौदा लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन, 2021 (एलडीएआर 2021)” है। आइए, हम एक-एक कर समझते हैं कि किस प्रकार भाजपा इन क़ानूनों के ज़रिए अपने फ़ासीवादी एजेण्डे को लागू करने का काम कर रही है।
प्रफुल्ल ने प्रशासक के तौर पर पदभार सँभालते ही सबसे पहले गुण्डा अधिनियम को लागू करने का काम किया। इस क़ानून के तहत प्रशासक किसी को भी शक की बिना पर पुलिस से पकड़वाकर रख सकता है और उस व्यक्ति को किसी भी तरह की क़ानूनी मदद से वंचित रखा जायेगा। इस नज़रबन्दी की अवधि 12 महीने या उससे अधिक भी हो सकती है। ग़ौरतलब है कि पूरे भारत में लक्षद्वीप सबसे कम आपराधिक मामले वाले प्रदेशों में आता है। 31 दिसम्बर 2019 की आधिकारिक जानकारी के मुताबिक लक्षद्वीप की जेलों में केवल 4 लोग ही क़ैद हैं। आम लोगों का कहना है कि ऐसे प्रदेश में यह क़ानून गैर-जनवादी है, जहाँ अपराध नहीं के बराबर होते हैं और कारागार आम तौर पर ख़ाली रहते हैं। इस क़ानून का प्रयोग लोगों के जनवादी दायरे को सीमित करने के लिए किया जायेगा। इसका असल मकसद प्रशासन के ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ों को दबाना है।
जिस तरीक़े से पूरे देशभर में सीएए-एनआरसी और मोदी सरकार की तमाम जनविरोधी नीतियों के विरोध में प्रदर्शन हुए, ऐसे में यह सरकार अलग-अलग हथकण्डों से जनता के प्रतिरोध की आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रही है। यूएपीए से लेकर रासुका तक, ये सभी क़ानून जनता के जनवादी अधिकारों की हनन के लिए लाये गये हैं। इसी कड़ी में सरकार लक्षद्वीप में गुण्डा अधिनियम लाकर वहाँ अपने ख़िलाफ़ उठने वाले आवाज़ों को दबाने की तैयारी कर रही है।
मसौदा लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन, 2021(एलडीएआर 2021) के प्रस्तावित कार्यान्वयन के ख़िलाफ़ भी आन्दोलन जारी है। लोग इस मसौदे के जनवाद विरोधी चरित्र की आलोचना कर रहे हैं और उसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। एलडीएआर 2021 के प्रावधानों के तहत सरकार, योजना और विकास प्राधिकरण या उसके किसी अधिकारी या उसके द्वारा नियुक्त या अधिकृत व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। इसके मुताबिक प्रशासन कभी भी किसी भी घर की तलाशी बिना वारण्ट के ले सकता है। इसमें कड़े प्रावधान हैं जो प्रशासक को किसी भी ज़मीन को विकास गतिविधियों के नाम पर चिह्नित करने का अधिकार देता है। एक बार विकास के लिए चिह्नित हो जाने के बाद उस ज़मीन का विकास और उपयोग पूरी तरह से सरकार की इच्छा और महत्वाकांक्षा के हिसाब से किया जायेगा।
एलडीएआर 2021 की धारा 92 और धारा 93 में द्वीपवासियों से क्षेत्र परिवर्तन तथा विकास के लिए शुल्क लगाने का प्रावधान है। यानी द्वीपवासियों को विकास योजना के अनुसार क्षेत्र परिवर्तन के लिए अनुमति प्राप्त करने के लिए भुगतान करना होगा साथ ही उन्हें अपनी ज़मीन विकसित करने की अनुमति के लिए भी भुगतान करना होगा। इस मसौदे के तहत सरकार “विकास” के नाम पर हाइवे, म्यूज़ियम, पार्क इत्यादि बनाने की बात कर रही है। यह हास्यास्पद इसलिए है क्योंकि लक्षद्वीप के सबसे बड़े द्वीप का क्षेत्रफल सिर्फ़ 4.9 वर्ग किमी है, जिस पर जनसंख्या घनत्व 2312 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। ऐसे में व्यावहारिक तौर पर यह कितना सम्भव है, इसका फ़ैसला हम पाठकों पर छोड़ते हैं।
प्रशासक महोदय आम लोगों के खानपान में दखल देने का भी काम कर रहे हैं। इसकी शुरुआत लक्षद्वीप में, जहाँ लोग आम तौर पर समुद्री भोजन पर निर्भर करते हैं, स्कूल में परोसे जाने वाले भोजन से मांसाहारी खाद्य पदार्थों को हटाकर की गयी। लक्षद्वीप में परम्परागत तरीक़े से बीफ़ का उपभोग किया जाता है। यही नहीं, केरल, गोवा, उत्तरपूर्व के राज्यों समेत कई जगहों में ऐसा किया जाता है, और भाजपा इस मसले पर मौक़े मुताबिक़ अपनी राजनीति करती रही है। लेकिन अब “पशु संरक्षण अधिनियम” लाकर द्वीपों पर गोमांस के लिए वध तथा प्रसंस्करण को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। दूसरी तरफ़, सैलानियों को लुभाने के लिए यहाँ शराब से प्रतिबन्ध हटा दिया गया है, जो मुस्लिम बहुल द्वीपवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं के ख़िलाफ़ जाता है।
“तटरक्षक अधिनियम” के उल्लंघन का हवाला देते हुए प्रशासन ने आम मछुआरों के जाल और अन्य उपकरण रखने के शेड को ध्वस्त कर दिया है। आजीविका के लिए मुख्य रूप से मछली पकड़ने का व्यवसाय करने वाली अधिकांश द्वीपवासी आबादी के लिए यह अधिनियम किसी पीड़ा से कम नहीं है। सरकार के निशाने पर पूरा मछली व्यवसाय है। महामारी के कारण लोगों के रोज़गार की स्थिति ख़ासा ख़राब हो चुकी है। पर्यटन और कृषि जैसे सरकारी कार्यालयों में काम करने वाली आबादी का रोज़गार छिन गया है, 38 आँगनवाड़ी केन्द्रों को बन्द कर दिया गया है। प्रशासन लोगों की ख़राब होती दशा की तरफ़ आँख मूँद कर बैठा है।
इन सारे प्रस्तावों को आरएसएस का खुला समर्थन प्राप्त है। आरएसएस ने अपने अंग्रेज़ी मुख्यपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ में दावा किया है कि 96 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाले इस छोटे से द्वीप में इस्लामिक कट्टरपन्थी लोगों को प्रशासन के ख़िलाफ़ भड़का रहे हैं। विरोधियों को इस्लामिक कट्टरपन्थी बताते हुए प्रफुल्ल पटेल के समर्थन में कसीदे पढ़े गये हैं। आज आरएसएस एक फ़ासीवादी संगठन के रूप में अपना काम कर रहा है। इसका काम सिर्फ़ ज़हर बोना और नफ़रत की खेती करना है जिसकी फ़सल काटकर भाजपा सत्ता में बनी रहे और अपने पूँजीपति आक़ाओं की सेवा करती रहे। देशभर में प्रगतिशील ताक़तों को फ़ासीवादी एजेण्डे के ख़िलाफ़ संघर्षरत जनता के समर्थन में खड़े होना होगा, और इनके मंसूबों को हर हाल में नाकाम करना होगा।

मज़दूर बिगुल, जून 2021


 

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