यही मौका है
नवारुण भट्टाचार्य (अनुवाद – लाल्टू)
यही मौका है, हवा का रुख है
ग़रीबों को भगाने का
मज़ा आ गया, भगाओ ग़रीबों को
कनस्तर पीट कर जानवरों को भगाते हैं जैसे
हवा चल पड़ी है
ग़रीब अब सही फँसे हैं
राक्षस की फूँक से उनकी झोपड़ी उड़ जा रही है
पैरों तले सरकती ज़मीन
और तेज़ी से गायब हो रही है
मज़ा ले-लेकर यह मंज़र भोगने का
यही वक्त तय है
इतिहास का सीरियल चल रहा है
वक्त पैसा है और यही वक्त है
ग़रीबों को लूट मारने का
ग़रीब अब गहरे जाल में फँस गए हैं
वे नहीं जानते कि उनके साथ लेनिन है या लोकनाथ
वे नहीं जानते कि गोली चलेगी या नहीं!
वे नहीं जानते कि गाँव-शहर में कोई उन्हें नहीं चाहता
इतना न-जानना बुखार का चढ़ना है
जब इंसान तो क्या, घर-बार, बर्तन-बाटी
सब तितली बन उड़ जाते हैं
यही ग़रीब भगाने का वक्त कहलाता है
कवियों ने ग़रीबों का साथ छोड़ दिया है
उन पर कोई कविता नहीं लिख रहा
उनकी शक्ल देखने पर पैर जल जाते हैं
हवा चल पड़ी है, यही मौका है
ग़रीबों को भगाने का
कनस्तर पीट कर जानवरों को भगाते जैसे
मौका है ग़रीबों को भगाने का
यही मौका है, हवा चल पड़ी है।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2018
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