‘उत्तराखण्ड के मज़दूरों का माँग-पत्रक आन्दोलन’ की शुरुआत
बिगुल संवाददाता
लेनिन के जन्मदिवस (22 अप्रैल) के अवसर पर उत्तराखण्ड के मज़दूरों का माँग-पत्रक आन्दोलन की शुरुआत बिगुल मज़दूर दस्ता व स्त्री मज़दूर संगठन द्वारा की गई| हरिद्वार के रोशनाबाद में माँग-पत्रक से सम्बन्धित प्रचार अभियान चलाते हुए पर्चा वितरण किया गया और मज़दूरों के हक़ों-अधिकारों के बारे में तफ़सील से बातचीत की गयी|
उत्तराखण्ड के मज़दूरों के 24 सूत्रीय माँगों में से एक न्यूनतम वेतन के सवाल पर बात रखते हुए वक्ताओं ने कहा कि, उत्तराखण्ड में न्यूनतम वेतन आस-पास के राज्यों (दिल्ली,हरियाणा,उत्तर प्रदेश) के न्यूनतम वेतन से बहुत ही कम है,जबकि जीवन-जीने की मूलभूत सुविधओं के मूल्यों व मंहगाई आदि में कोई अंतर नहीं है| न्यूनतम वेतन का सवाल व्यक्ति के गरिमामय जीवन और भरण-पोषण से जुड़ा हुआ है| ऐसे में उत्तराखण्ड के मज़दूरों का न्यूनतम वेतन कम से कम दिल्ली राज्य सरकार के न्यूनतम वेतन के बराबर होना चाहिए| हालांकि इस वेतन पर भी दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी कि, ‘’क्या आप 16000/- रुपये में अपने परिवार का गुज़र-बसर कर सकते हैं?’’ और दिल्ली के पूंजीपतियों की वेतन न बढाने की याचिका को खारिज करने के साथ इस तर्क को को भी खारिज किया था कि,’’न्यूनतम वेतन बढ़ जाने से निवेश में कमी आएगी और उत्पादन घटेगा|’’
अभी उत्तराखण्ड में 251/- रूपये दैनिक और मासिक महिला व पुरुष मज़दूरों को अलग-अलग 5500/- से 8000/-रूपये तक देते हैं| एक ही प्रकृति का काम करने वाले स्त्री-पुरुष की मजदूरी में भी काफ़ी अंतर है| माँग-पत्रक में इस असमानता को खत्म कर समान कार्य के लिए समान वेतन देने के कानून को सख्ती से लागू करने की माँग की गयी है|
बीस-सूत्री माँगपत्रक की मुख्य माँगें ये हैं:
1. उत्तराखण्ड के मज़दूरों का न्यूनतम वेतन, दैनिक 512 रुपये और मासिक 16,182 रुपये किया जाये।
2. ठेका प्रथा को ख़त्म किया जाये। नियमित प्रकृति के कामों में लगे सभी ठेका मज़दूरों को नियमित किया जाये।
3. एक ही प्रकृति के काम का स्त्री और पुरुष मज़दूरों को समान वेतन दिया जाये।
4. काम के घण्टे आठ किये जायें और ओवरटाइम का डबल रेट से भुगतान किया जाये।
5. सभी मज़दूरों को पहचान-पत्र, वेतन स्लिप, ई.एस.आई., पी.एफ़. की सुविधा दी जाये।
6. सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में 90 दिन तक काम कर चुके सभी मज़दूरों का सिडकुल की तरफ़ से पहचान-पत्र बनाया जाये।
7. मज़दूरों के लिए आधुनिक सुविधायुक्त अस्पताल, उनके बच्चों के लिए स्कूल और सस्ते राशन की दुकानें खोली जायें।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2018
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन