दिल्ली के बवाना औद्योगिक क्षेत्र में फ़ैक्ट्री की अाग में मज़दूरों की मौत
पूँजी की रक्तपिपासु राक्षसी के हाथों एक और हत्याकाण्ड

 बिगुल संवाददाता

बीते 21 जनवरी की रात बवाना औद्योगिक क्षेत्र में मौत और मायूसी की रात रही। एक पटाखे के कारख़ाने में, जो बवाना के सेक्टर 5 में स्थित था, भयानक आग लगने से 17 मज़दूरों की मौत हो गयी। 17 वह आँकड़ा है जो सरकार द्वारा दिखाया गया है। असल में जिस समय धमाका हुआ उस वक़्त कारख़ाने में 42 मज़दूर मौजूद थे। एक स्त्री और एक पुरुष मज़दूर छत से कूदे, जिनके घायल होने की ख़बर है, इसके अलावा 40 मज़दूर कारख़ाने में ही फँसे रहे। पर सरकार बताती है कि सिर्फ़ 17 लोग ही मरे। कारख़ाने के गेट पर फ़ैक्टरी के बारे में बुनियादी जानकारी भी नहीं थी। जैसेकि फ़ैक्टरी नम्बर, न्यूनतम वेतन, कर्मचारी संख्या आदि फ़ैक्टरी गेट पर नहीं लगे थे और यह हालात पूरे बवाना औद्योगिक क्षेत्र में ही है।
इसे ‘दुर्घटना’ न कहकर ‘हत्या’ कहना ज़्यादा उचित होगा। कहने के लिए तो बवाना में शनिवार के दिन अवकाश होता है, पर इस दिन भी मालिक कारख़ाने को चला रहा था। मालिक अन्दर और बाहर से फ़ैक्टरी में ताला लगाकर मज़दूरों की जान से खिलवाड़ कर रहा था। वास्तव में देखा भी जाये तो इन फ़ैक्टरी मालिकों के लिए मज़दूरों का मरना कीड़े-मकौड़ों के मरने से कुछ अधिक नहीं है।
कारख़ाना, जहाँ धमाका हुआ, वह पटाखे का गोदाम था। कहने के लिए तो दिल्ली में पटाखा प्रतिबन्धित है, पर इस प्रकार के अवैध कारख़ाने पूरी दिल्ली में चल रहे हैं। बवाना की बात करें तो पूरे बवाना में ही 80% कारख़ाने बिना पंजीकरण के चल रहे हैं। सब अवैध काम दिल्ली सरकार व श्रम विभाग के अधिकारियों की नाक के नीचे होते हैं। इससे ही जुड़ी दूसरी बात है कि आज जहाँ मज़दूर काम करते हैं, वहाँ सुरक्षा के उपकरणों की क्या स्थिति है, इसकी जाँच-पड़ताल का काम श्रम विभाग का है पर श्रम विभाग के इंस्पेक्टर व अधिकारी फ़ैक्टरियों में आते ही नहीं, वहीं कभी-कभी आते भी हैं तो सीधा मालिक के मुनाफ़े का एक हिस्सा अपनी जेब में डालकर चले जाते हैं। मज़दूरों की मौत का एक प्रमुख कारण यह भी था कि कम्पनी में सुरक्षा के इन्तज़ाम नहीं थे। आग लगने में प्रशासन की लापरवाही भी साफ़ नज़र आती है। कुछ रिपोर्ट के अनुसार पूरे बवाना में सिर्फ़ एक कारख़ाना निरीक्षक मौजूद है। बीसीआई (बवाना चैम्बर ऑफ़ इण्डस्ट्रीज़) की रिपोर्ट बताती है कि एक इंस्पेक्टर 1 साल में सिर्फ़ तीन-चार कारख़ानों का निरीक्षण करता है। अगर सुरक्षा मानकों पर आधारित डीएफ़एस (दिल्ली अग्निशमन सेवा) के रिकॉर्ड देखें तो यह साफ़ पता चलता है कि 16,000 कारख़ानों में से सिर्फ़ 636 कारख़ाने सुरक्षा मानकों पर खरे उतर पाये। पूरे बवाना औद्योगिक क्षेत्र जो 1,865 एकड़ में बसा है वहाँ सिर्फ़ 2 दमकल केन्द्र हैं, जहाँ सिर्फ़ 48000 लीटर पानी है। जिस दिन यह घटना हुई उसी दिन बवाना में दो और जगह पर आग लगी थी। दमकल की गाड़ियाँ भी 1-2 घण्टे बाद घटनास्थल पर पहुँची जब आग ने भयंकर रूप ले लिया था।
• हादसे में जिनकी मृत्यु हुई उनमें से एक गर्भवती महिला भी थी जो दूसरे दिन ही वहाँ काम करने गयी थी, उसे भी इस मुनाफ़े की हवस ने बच्चे समेत लील लिया। 17 मज़दूरों की मौत की पुष्टि हुई है, जिसमें 10 महिला मज़दूर और 7 पुरुष मज़दूर हैं और बाक़ी मज़दूर अब तक नहीं मिल पाये हैं। इन्हीं में से एक रीता भी थी जिसकी उम्र 18 वर्ष थी। रीता के माता-पिता दोनों अलग-अलग कारख़ानों में काम करते हैं, पर दोनों का काम करना भी परिवार के लिए आर्थिक रुप से अपर्याप्त था। दोनों मिलकर भी 10-12 हज़ार ही कमा पाते थे, जिसके कारण रीता को भी काम पर जाना पड़ा। रीता पहले दिन ही उस कारख़ाने में काम पर गयी थी और वापस ना आ सकी। इसी घटना में एक पति-पत्नी की भी मौत हुई है, जो उसी गोदाम में ही रहते थे। उनका बस अब 7 साल का बच्चा बचा है। बवाना औद्योगिक क्षेत्र में ऐसे बहुत प्रवासी मज़दूर मिल जायेंगे जो कारख़ाने में ही रहते हैं। दिनभर कारख़ाने में काम करने के बाद रात में उन्हें कारख़ानों में मौजूद सीलन भरे दड़बेनुमा कमरों में सोना पड़ता है। इन्हीं मज़दूरों में से एक बेबी भी थी जिसकी वजह से ही पूरे घर की आर्थिकी चल रही थी। बेबी के पति भी मज़दूर हैं, पर शारीरिक दिक़्क़तों के कारण वह काम नहीं कर पाते। बेबी के तीन बच्चे भी हैं जो अभी तक यह विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि उनकी माँ इन मुनाफ़ाखोरों के कारण मारी गयी। सोनम भी इसी हादसे में मारी गयी। सोनम जिसकी उम्र 23 वर्ष थी। उसकी माता ने बताया कि सोनम ही सारे घर का ख़र्चा उठाती थी। उसने कई कारख़ानों में काम किया है। दो-तीन महीने बाद सोनम की शादी होने वाली थी। सोनम की बहन ने बताया कि उस फ़ैक्टरी में सोनम का पहला दिन था, उसे बताया गया था कि वहाँ गुलाल या प्लास्टिक का काम होता है। कई महिलाएँ जो आग लगने से 1 घण्टे पहले कारख़ाने से निकल गयी थीं, उन्होंने बताया कि गुलाल का रंग पूरे हाथों और पाँव में बैठ जाता है और कई बार सांस लेने में भी ऐसे माहौल में तकलीफ़ होती थी। उन्होंने मालिक से कई बार पूछा कि गुलाल के अलावा यहाँ क्या काम होता है पर मालिक ने उन्हें डरा-धमकाकर चुप करा दिया। मरने वालों में एक गर्भवती महिला भी शामिल थी, जो सीतापुर की रहने वाली थी, जिसको अभी सीतापुर ही ले जाया गया है।
• जिन मज़दूरों की मृत्यु हुई है उनमें से ज़्यादातर मेट्रो विहार में रहते थे। बवाना औद्योगिक क्षेत्र में बवाना जेजे कॉलोनी, मेट्रो विहार, सनोठ के ज़्यादातर मज़दूर काम करते हैं। बवाना औद्योगिक क्षेत्र के हर तरफ़़ मज़दूर बस्तियाँ स्थित हैं, जिनमें बवाना जेजे कॉलोनी सबसे बड़ी है। जहाँ डेढ़ से दो लाख प्रवासी मज़दूर आबादी रहती है। मेट्रो विहार, सनोठ में भी मुख्यता मज़दूर आबादी ही रहती है जो बवाना औद्योगिक क्षेत्र में ही कार्यरत है। वैसे तो दिल्ली सरकार ने काग़ज़ों में 13,584 न्यूनतम वेतन किया हुआ है, पर पूरे बवाना में कहीं भी 6-7 हज़ार से ज़्यादा मज़दूरों को नहीं मिलते हैं। पीएफ़, ईएसआई, बोनस वग़ैरह तो अपवाद स्वरूप ही किसी कारख़ाने में मिलता है। 12 घण्टे से कम कहीं भी शिफ़्ट नहीं लगती। ओवरटाइम भी डबल के बजाय सिंगल रेट पर ही मिलता है। महिला मज़दूरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। बहुत ऐसे छोटे-छोटे बच्चे भी काम करते मिलेंगे, जिनकी उम्र 12-13 वर्ष है। पूरे क्षेत्र में 3 लाख मज़दूर काम करते हैं। जिनके काम करने के हालात नारकीय हैं। हालत यह है कि यहाँ कारख़ाने 150-250 स्क्वायर फ़ीट में है जहाँ न तो शौचालय की व्यवस्था होती है न पीने के पानी की, जोकि कारख़ाना एक्ट के सेक्शन-19 का उल्लंघन है। स्थिति यह है कि मज़दूरों को दस्ताने या मास्क जैसे बुनियादी सुरक्षा उपकरण भी नहीं मिलते। जिसकी शिकायत करने के लिए न तो श्रम कार्यालय मौजूद है न ही कोई यूनियन। श्रम विभाग का कहना है कि बवाना औद्योगिक क्षेत्र में ज़्यादातर लघु उद्योग हैं, और लघु उद्योग कारख़ाना एक्ट के तहत नहीं आते। मज़दूरों की मौत पर ये साफ़-साफ़ बेशर्मी नहीं तो और क्या है।
• 1996 में बवाना के औद्योगिक क्षेत्र के बसने की शुरुआत हुई। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार दिल्ली के मध्य में बसे कारख़ानों को दिल्ली के उत्तर पश्चिमी छोर पर स्थापित करना था। डीएसआईआईडीसी (दिल्ली स्टेट इन्फ़्रास्ट्रक्चर एण्ड इण्डस्ट्रियल डेवलपमेण्ट कॉरपोरेशन) के पास तब 51,214 छोटे कारख़ानों के आवण्टन की अर्जी आयी थी, जिसमें से 24,000 आवेदन स्वीकार किये गये। वर्तमान समय में काग़ज़ों पर 12,000 छोटे कारख़ाने मौजूद हैं और वास्तविक आँकड़ा 16,000 के आसपास है जिसमें 25,000 उद्यमियों की पूँजी लगी है। बवाना औद्योगिक क्षेत्र को 17 हिस्सों में बाँटा गया है, जिसमें ऑटो पार्ट्स के उद्योग का सबसे अधिक प्रतिशत है, (22.96%)। प्लास्टिक की क़रीब 4,144 इकाइयाँ हैं। टेक्सटाइल और परिधान बुनाई की 4,716। 3000 कारख़ानों में पेट्रोलियम आधारित उत्पाद बनाये जाते हैं, वहीं 586 कारख़ाने रसायनों के हैं और 1134 कारख़ाने फ़र्नीचर उद्योग से सम्बन्धित हैं। डीएसआईआईडीसी का मौजूदा चैयरमेन ‘आप’ का स्वास्थ्य मन्त्री सत्येन्द्र जैन है।
• घटना के बाद सारे नेता मन्त्री अपने घड़ियाली आँसू भी लेकर पहुँचे और ‘तू नंगा-तू नंगा’ का खेल शुरू कर दिया। देखा जाये तो यह सभी नेता मन्त्री इन्हीं मालिकों/पूँजीपतियों के पैसों के दम पर चुनाव लड़ते हैं और फिर इन्हीं जोंकों के लिए काम करते हैं। ‘आम आदमी पार्टी’ के गिरीश सोनी से लेकर राजेश गुप्ता जैसे नेता स्वयं कारख़ाने के मालिक हैं, जो ख़ुद अपनी फ़ैक्टरी में श्रम क़ानून लागू नहीं करते, मज़दूरों को सुरक्षा के उपकरण नहीं देते। यही हाल भाजपा और कांग्रेस के नेता मन्त्रियों का भी है। ऐसे अवैध काम करने के लिए लाइसेंस ये नेता-मन्त्री ही मुहैया कराते हैं। प्रीति अग्रवाल जो उत्तर-पश्चिमी दिल्ली की महापौर है, उसका एक वीडियो भी सामने आया जिसमें वह अवैध कारख़ानों को लाइसेंस देने की बात क़बूल रही है। अभी इन सभी पार्टियों के नेता कुत्ता-घसीटी कर रहे हैं और एक-दूसरे को घटना का जि़म्मेदार बता रहे हैं। इनके लिए यह आम घटना है जिसमें इनको नौटंकी से ज़्यादा कुछ नहीं करना होगा। श्रम विभाग की बात करें तो कैग की रिपोर्ट इनकी हक़ीक़त सामने ला देती है। इस रिपोर्ट के अनुसार कारख़ाना अधिनियम, 1948 (Factories Act, 1948) का भी पालन दिल्ली सरकार के विभागों द्वारा नहीं किया जा रहा है – वर्ष 2011 से लेकर 2015 के बीच केवल 11-25% पंजीकृत कारख़ानों का निरीक्षण किया गया।
• मुंबई के अमीरजादों के होटल में जब आग लगी और कुछ अमीर जलकर मरे तो सरकार ने तुरन्त ग़ैरक़ानूनी होटलों को सील कर दिया और मालिकों को गिरफ़्तार कर लिया। अब आग बवाना में भी लगी है, लेकिन आगे ऐसी घटना ना हो इसके लिए श्रम विभाग, एमसीडी, दिल्ली सरकार, केन्द्र सरकार ने कोई क़दम नहीं उठाया। उठाये भी क्यों क्योंकि इस आग में मज़दूर मरे हैं और मज़दूर इनके लिए एक आधुनिक गुलाम से ज़्यादा कुछ नहीं हैं। केजरीवाल ने 500000 रुपये देकर इस पूरे मामले में ख़ुद को पाक-साफ़ दिखाने की कोशिश है, पर केजरीवाल, श्रम विभाग अब भी बात नहीं कर रहे कि अभी भी बहुत सारी फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के हालात नारकीय हैं, न्यूनतम वेतन अब भी कहीं नहीं मिल रहा। इन सब मुद्दों पर ख़ामोशी केजरीवाल का पक्ष बयाँ कर रही है।
• इसी घटनाक्रम में एक और घटना जुड़ गयी, जब 25 जनवरी को मुण्डका के औद्योगिक क्षेत्र में आग लगी। आग इतनी भीषण थी कि इसका अन्दाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि आग गोदाम से फ़ैक्टरी में फैल गयी और 30 दमकल गाड़ियों को बुलाना पड़ा। इस घटना में किसी की मृत्यु नहीं हुई पर मालिक का जो नुक़सान हुआ उसके लिए सान्त्वना देने दिल्ली के डीएसआईआईडीसी के चेयरमैन सत्येन्द्र जैन तुरन्त पहुँच गये, पर सुरक्षा के सवाल पर अब तक सभी चुप्पी साधे बैठे हैं। बवाना की घटना कोई पहली घटना नहीं है, इससे पहले पीरागढ़ी में भी 2011 में 11 मज़दूर जलकर मरे थे और 2008 में पीरागढ़ी में ही चप्पल की फ़ैक्टरी में भी मज़दूर मरे थे पर सवाल अब भी ज्यों का त्यों ही बना हुआ है कि फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के उपाय कब लागू किये जायेंगे, कब तक यूँ ही श्रम क़ानूनों का सरेआम उल्लंघन होता रहेगा और कब तक यूँ ही पूँजीवादी व्यवस्था मुनाफ़े के लिए मज़दूरों की जि़न्दगी लीलती रहेगी।
इस हादसे के बाद से लोगों में काफ़ी गुस्सा है। बिगुल मज़दूर दस्ता ने घटना के अगले दिन से ही मेट्रो विहार, बवाना जेजे कॉलोनी में पर्चा वितरण किया। गलियों में मीटिंगें करके लोगों को मज़दूरों की इस जघन्य हत्या के विरुद्ध एकजुट किया गया। 29 जनवरी को दिल्ली सचिवालय पर पूरे दिल्ली के मज़दूर इस घटना के खि़लाफ़ एकत्रित हुए। प्रदर्शन में सोनीपत, नोएडा, गुड़गाँव, वज़ीरपुर, शाहबाद डेरी के मज़दूर शामिल हुए तथा अन्य सहयोगी संगठन नौजवान भारत सभा, दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन, मोसरबियर मज़दूर यूनियन, जन अधिकार संगठन, दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन ने शिरकत की। बिगुल मज़दूर दस्ता के सनी ने बात रखते हुए कहा कि – ”इस हत्याकाण्ड के लिए फ़ैक्टरी मालिक से लेकर श्रम विभाग, एमसीडी विभाग व दिल्ली सरकार बराबर के ज़िम्मेदार हैं। पूरे बवाना में 80% फ़ैक्टरियाँ बिना पंजीकरण के चल रही हैं, जिनमें सुरक्षा के इन्तज़ाम तक नहीं होते। इन मौतों के लिए समुचित मुनाफ़ाखोर व्यवस्था जि़म्मेदार है।” प्रदर्शन का अन्त श्रम मन्त्री व मुख्यमन्त्री को एक प्रतिनिधिमण्डल द्वारा तीन सूत्रीय माँगों का ज्ञापन देने के साथ किया गया। जिसमे माँग की गयी कि 1)मृतकों के परिवार को 50 लाख मुआवजा या परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाये। 2) हत्यारे मालिक और इसके लिए ज़िम्मेदार एमसीडी व श्रम विभाग के अधिकारियों को सज़ा दी जाये। अन्तिम माँग यह थी कि दिल्ली सरकार द्वारा औद्योगिक क्षेत्रों में सुरक्षा के पुख्ता इन्तज़ाम किये जायें और श्रम क़ानूनों को लागू किया जाये। इसी के लिए ज्ञापन देने केजरीवाल के ऑफि़स में पहुँचे तो पता चला कि केजरीवाल व्यापारियों के समर्थन में गये हुए हैं। अन्त में सभा में तय किया गया कि अगर हालात यही रहे तो अगली बार हज़ारों मज़दूर दिल्ली सचिवालय को घेरेंगे। रिपोर्ट लिखे जाने तक बवाना में सुरक्षा के पुख्ता इन्तज़ाम और श्रम क़ानूनों को लागू किये जाने को लेकर ‘बवाना औद्योगिक क्षेत्र मज़दूर संघर्ष समिति’ का गठन किया जा चुका है, और आगे का संघर्ष जारी है।

मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2018


 

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