ग्रेटर नोएडा की यामाहा फैक्ट्री में वेतन बढ़ोत्तरी की माँग पर हड़ताल कर रहे मज़दूरों पर पुलिस और अर्द्धसैनिक बल ने बरसाई लाठियाँ!
बिगुल संवाददाता
ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर स्थित यामाहा फैक्ट्री के करीब 3000 कॉन्ट्रैक्ट मज़दूर वेतन बढ़ोतरी की माँग को लेकर 9 जून को अचानक हड़ताल पर चले गये। कम्पनी ने वार्षिक वेतन बढ़ोत्तरी के बाद स्थायी कामगारों के वेतन में तो 16,000 की वृद्धि की लेकिन कान्ट्रैक्ट पर काम करने वाले मज़दूरों का मखौल उड़ाते हुए मैनेजमेंट ने वेतन में मात्र 20 रुपए की बढ़ोत्तरी की जिसमें से 6 रुपए कैंटीन शुल्क के रूप में काट लिये जायेंगे! उनकी कोई भी सुनवाई करने के बजाय अगले दिन मैनेजमेंट ने पुलिस और अर्द्धसैनिक बल से फैक्ट्री के बाहर बैठे मज़दूरों पर बुरी तरह लाठीचार्ज करवा दिया।
कम्पनी के नियमित मज़दूरों और कान्ट्रैक्ट मज़दूरों के न तो काम में कोई अन्तर है और न ही काम के घंटों में कोई फर्क है, फिर भी एक ही फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूरों के वेतन में ज़मीन-आसमान का फर्क कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। पूँजीवाद में मज़दूरों की वर्ग एकता को तोड़ने के लिए पूँजीपति बहुत चालाकी से मज़दूरों के बीच भी एक सफ़ेद कालर मज़दूर वर्ग तैयार कर देता है जो अपने ही वर्ग हित के ख़िलाफ़ काम करते हैं। स्थायी मज़दूरों की नुमाइन्दगी करने वाली ट्रेड यूनियनें भी ठेका मज़दूरों पर हो रहे इस शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की ज़हमत नहीं उठातीं। उनके लिए ठेका मज़दूर सिर्फ उनके वार्षिक सम्मेलनों और रैलियों की भीड़ बढ़ाने के काम आते हैं। ख़ुद को मज़दूर वर्ग का अगुआ बताने वाली इन तमाम केन्द्रीय मज़दूर यूनियनों ने कभी भी ठेका मज़दूरों के संघर्ष में उनका साथ नहीं दिया। पिछले कई वर्षों के दौरान मारुति के मज़दूरों के आन्दोलन में भी इनका यह रवैया उजागर हो चुका है। देशभर में हर जगह ऐसा ही है।
आज जब यामाहा के ठेका मज़दूरों के अधिकारों का हनन हो रहा है तब भी एच.एम.एस. से सम्बद्ध स्थायी मज़दूरों की यूनियन चुप्पी साधे बैठे है। ऐसी घटनाएँ बार-बार यही साबित करती हैं कि ऑटोमोबाईल सेक्टर के ठेका मज़दूरों की सेक्टरगत यूनियन ही मज़दूरों की माँगों को लेकर जुझारू और असरदार ढंग से लड़ सकती है।
मज़दूर बिगुल, जून 2016
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