पूँजीपतियों से यारी है मज़दूरों से ग़द्दारी है!
मौजूदा बजट में मनरेगा के लिए आवण्टन से मनरेगा मज़दूरों को सिर्फ 40 दिन ही काम मिलेगा।
100 दिन के रोजगार की गारण्टी का वादा कहाँ गया?
क्रान्तिकारी मनरेगा यूनियन, हरियाणा
25 जुलाई। ज्ञात हो कि 23 जुलाई को केन्द्रीय वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट पेश किया। इस बजट ने एक बार फिर मोदी सरकार के मजदूर-विरोधी चेहरे को उजागर कर दिया। गोदी मीडिया इस बजट को भी पूरा बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है ताकि सरकार की सभी कमियों को छुपाया जा सके। लेकिन सरकार चाहे कितना भी ज़ोर क्यों न लगा ले हक़ीक़त सामने आ ही जाती है। ध्यान रहे कि मनरेगा एक्ट की स्थापना के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है कि केन्द्र सरकार के बजट भाषण में मनरेगा का एक भी उल्लेख नहीं मिला है।
वहीं मनरेगा राशि की बात करें तो मनरेगा बजट के लिए 86000 हजार करोड़ आबण्टित किये गये हैं जो वित्तीय वर्ष 2023-24 के मद 1,05,299 करोड़ रुपये के वास्तविक व्यय से 19,298 करोड़ रुपये कम है। वहीं कुल जीडीपी के प्रतिशत के रूप में वित्त वर्ष 24-25 के लिए आबण्टन केवल 0.26 प्रतिशत के आसपास है। इस बजट कटौती का सीधा अर्थ है मजदूरों के कार्यदिवस की कटौती।
पिछले 5 वर्षों के आँकड़े देखे जाए तो मनरेगा योजना में प्रति परिवार प्रदान किये गये रोजगार के दिनों की औसत संख्या केवल 45 से 55 दिनों के बीच रही है, कायदे से अगर सरकार को 100 दिन रोजगार देने का वादा पूरा करना है तो उसको 2.70 लाख करोड़ से ज्यादा के बजट का प्रावधान करना चाहिए। साफ तौर पर रोज़गार गारण्टी के तहत काम ना देना व बेरोज़गारी भत्ता ना देना मनरेगा क़ानून का उल्लंघन है। आज हर जगह श्रम क़ानूनों की धजियाँ उड़ाते हुए मज़दूरों से हाड़-तोड़ मेहनत करवाई जा रही है। लम्बे-चौड़े दावे करने वाली मोदी सरकार मनरेगा मज़दूरों को किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं दे पा रही। यूँ तो सरकार मनरेगा में 100 दिन के काम की गारण्टी देती है लेकिन वह अपने वायदे पर कहीं भी खरी नहीं उतरती।
क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के साथी अजय ने बताया कि यूँ तो भारतीय संविधान में भी अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार की बात की गई है। जीवन के अधिकार का सीधा मतलब रोजगार की गारण्टी है, लेकिन मनरेगा एक्ट में गारण्टी के बावजूद बड़ी ग्रामीण आबादी बेरोजगारी की मार झेल रही है। मनरेगा में पहले से ही बजट की कमी के साथ धाँधली होने का आरोप लगता रहा है। वैसे भी गाँव में मनरेगा मज़दूरों की संख्या बढ़ने से मनरेगा पर भार बढ़ना लाज़िमी है। ऐसे में सरकार को कायदे से मनरेगा के बजट, कार्यदिवस व दिहाड़ी में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए थी। लेकिन मोदी सरकार ने उल्टा मनरेगा बजट में कटौती कर मज़दूरों के हालातों को और बदतर बनाने योजना बना रखी है। इस बजट में एक तरफ तो मोदी सरकार कॉरपोरेट टैक्स में भारी छूट दे रही है वहीं दूसरी तरफ जनता पर करों का बोझ बढ़ाकर महॅंगाई का बोझ लाद रही है। क्रान्तिकारी मनरेगा मजदूर यूनियन, मोदी सरकार के मज़दूर विरोधी बजट के ख़िलाफ़ अपना रोष प्रदर्शन करेगी।
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