हरियाणा के मनरेगा मज़दूरों का संघर्ष जारी!
बिगुल संवाददाता
गत 5 फरवरी को हरियाणा के फतेहाबाद जिला में हुए मनरेगा मज़दूर के प्रदर्शन के बाद तमाम जनसंगठनों ने आगे के संघर्ष के लिए एक साझा मोर्चे का निर्माण किया है जिसमें संघर्ष को चलाने के लिए एक माह की जनकार्रवाई की रूपरेखा तैयार की गई। तय किया गया की मनरेगा में काम के अधिकार के लिए फरवरी माह में फतेहाबाद के गांव-गांव में मोदी-खट्टर सरकार के पुतले दहन किये जाएँगे । साथ ही 27 फरवरी से 2 मार्च तक साझा मोर्चा के बैनर तले क्रमिक अनशन शुरू किया जाएगा।
27 फरवरी को साझा मोर्चा ने फतेहाबाद डीसी कार्यालय पर क्रमिक अनशन की शुरुआत की। जिसमें सभी संगठनों के एक-एक प्रतिनिधि अनशन में बैठे। साझा मोर्चे ने प्रशासन के सामने मांग रखी कि – (1) तत्काल मनरेगा का कम शुरू हो। (2) काम नहीं मिलने की सूरत में सरकार मनरेगा मज़दूरों को तुरंत बेरोज़गारी बता दे। (3) सरकार द्वारा मनरेगा मज़दूरों को भूमि उपभोग का अधिकार दिया जाये। (4) भूमि-अधिग्रहण के तहत मिलने वाले मुआवजे में 10 प्रतिशत हक मज़दूरों का सुनिश्चित हो और गोरखपुर के खेत मज़दूरों को तुरंत मुआवजा मिले। (5) मनरेगा की तर्ज पर शहरों में भी 200 दिनों का रोजगार गारंटी कानून बने। (6) मनरेगा के तहत काम न देने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर एससी/एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज हो। तीन दिवसीय क्रमिक अनशन के बाद 2 मार्च को मनरेगा मज़दूर ने डीसी कार्यालय का घेराव करने की बात कहकर अपना मांगपत्रक डीसी को सौंपा। साझा मोर्चा के संयोजक ने बताया की आज देश में नौ महीने पहले ‘‘अच्छे दिनों’’ के सपने दिखाकर आई मोदी सरकार ने अपने आकाओं यानी पूँजीपतियों के तलवे चाटने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। असल में मोदी सरकार चुनाव से पहले ही पूँजीपतियों से ये वादा कर चुकी थी कि हम सत्ता में आते ही उसके लूट-मुनाफें की चक्की में आ रही सारी अचड़नों को हटा देंगे। तभी तो देशी-विदेशी पूँजीपतियों ने अकेले मोदी के चुनाव प्रचार पर ही 10 हज़ार करोड़ रुपये खर्च किये थे। अब पूँजीपतियों का गिरोह ब्याज समेत वसूलने के लिए जनता के खून की आखिरी बूंद तक निचोड़ने के लिए अमादा है। जिसकी शुरुआत करते हुए मोदी ने मनरेगा मज़दूरों से लेकर तमाम श्रम-कानूनों पर हमला शुरु कर दिया है। यूं तो मोदी संसद में बजट से एक दिन पहले मनरेगा का गाजे-बाजे के साथ ढोल पीटकर निकालने की घोषणा कर रहे है लेकिन दूसरी तरफ मोदी सरकार के कार्यालय में मनरेगा का औसत 54 दिन रोजगार घटकर 34 दिन रह गया। वहीं आंकड़ों के अनुसार मनरेगा का पिछले वर्ष का आवंटन पूरा खर्च नहीं किया गया है और राज्यों द्वारा वर्ष 2013-14 में कराये गये कार्यों का 5 हजार करोड़ रुपयों का भुगतान अभी भी शेष है। इस बजट में पिछली बार की तुलना में केवल 709 करोड़ रुपयों की वृद्धि की गई है। लेकिन बकाया भुगतान और मुद्रास्फ़ीति की 10 प्रतिशत दर को गिनती में ले लिया जाये, तो 34699 करोड़ रुपयों का बजट आबंटन वास्तव में 26729 करोड़ रुपये ही बैठता है। जबकि पिछली स्थिति को बनाये रखने के लिए ही 42389 करोड़ रुपयों का आबंटन जरूरी था। इस प्रकार मनरेगा बजट में वास्तविक कटौती 37 प्रतिशत है। अब घटे हुए मज़दूरी अनुपात से इससे वास्तव में अधिकतम 68 करोड़ रोजगार-दिवसों का ही सृजन किया जा सकेगा, जो मनरेगा के इतिहास में सबसे कम सृजन होगा। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मनरेगा में जिन परिवारों को रोजगार मुहैया कराया गया है, उनकी संख्या 83.7 लाख से घटकर 60.7 लाख रह गई है, याने मोदी राज में 23 लाख परिवार मनरेगा में काम पाने से वंचित किये गये हैं।
संसद में मोदी ने मनरेगा की जिस तरह से खिल्ली उड़ाई है, उससे स्पष्ट है कि संघ संचालित मोदी सरकार मनरेगा के पक्ष में कतई नहीं है। वह इसे ‘ग्रामीण परिवारों के लिए रोजगार सुनिश्चित करने वाले कानून’ से हटाकर एक ऐसी ‘योजना’ में तब्दील कर देने पर आमादा है, जिसमें न्यूनतम मज़दूरी सुनिश्चित करने का भी प्रावधान न हो। एक ऐसी योजना, जिसमें ठेकेदारों और मशीनों का बोलबाला हो। लेकिन मोदी की मजबूरी है कि मनरेगा के कानूनी दर्जे को संसद ही खत्म कर सकती है। लेकिन वे इस कानून को धीरे-धीरे निष्प्रभावी करने का काम अवश्य कर सकते हैं।
डीसी कार्यालय के बाद साझा मोर्चा ने तय किया है कि नये बजट के लागू होने के बाद यदि मनरेगा मज़दूरों को नए सत्र में काम नहीं मिला तो मनरेगा मज़दूरों की इन मांगों को लेकर हरियाणा के दूसरे जिलों तक जाएगा।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2015
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