Category Archives: मज़दूरों की क़लम से

कविता – अब तो देसवा में फैल गईल बिमारी

अब तो देसवा में फैल गईल बिमारी,
तो सुनो भइया देश के जनता दुखियारी।
मज़दूर ग़रीब रात दिन कमाये,
फुटपाथ पर सो-सो के अपना जीवन बिताये।
तो ओकरे जीवन में दुख भारी,
तो सुनो भइया देश के जनता दुखियारी

मज़दूर वर्ग के हक में

हमारे आज के वर्ग विभाजित समाज में पूँजीपति वर्ग का बोलबाला है। राजतन्त्र उसी के हाथ में है और जो भी सरकार बनती है यह बाहरी तौर पर लोकतन्त्र का दिखावा करते हुए असल में इसी वर्ग के हितों को पूरा करती है। पूँजीपति वर्ग के लिए ही नीतियाँ बनती हैं और उन्हीं पर अमल किया जाता है। ज्यों-ज्यों पूँजीपति वर्ग और शक्तिशाली हो रहा है, त्यों-त्यों मेहनतकश वर्ग का शोषण और बढ़ता जा रहा है। उनके हकों और सहूलियतों को नजरअन्दाज किया जा रहा है। अगर मेहनतकश वर्ग को अपने हकों की रक्षा करनी है तो पूँजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ एक लड़ाई लड़नी होगी। विभिन्न मोर्चों पर लामबन्दी कर, शासक वर्ग को यह चेताना होगा कि हम कमज़ोर नहीं हैं।

एक मज़दूर की अन्तरात्मा की आवाज़

मेरे प्यारे गरीब मजदूर-किसान भाइयो एवं साथियो। आज की पूँजीवादी व्यवस्था में आला अफसरों, अधिकारियों, नेताओं, फैक्टरी मालिकों, साहूकारों, पुलिस अफसरों में मजदूरों का दमन करने की होड़ लगी हुई है। कोई भी साधारण से साधारण व्यक्ति जब ऊंचे ओहदे वाला अधिकारी बन जाता है तो वह अपनी नैतिक जिम्मेवारी छोड़कर धनाढ्य बनने का सपना देखने लगता है। उसके पास बंगला-गाड़ी हो, चल-अचल सम्पत्ति की भरमार हो इसलिए जनता को लूटना-खसोटना शुरू कर देता है। नेता लोग गरीबों-दलितों को अपने समर्थन में लेने के लिए बड़े-बड़े वायदे करते हैं। गरीबों के उत्थान, रोजी-रोटी, कपड़ा और मकान का वादा करते हैं। गरीबों और दलितों के समर्थन से जब नेता कुर्सी पा जाते हैं तो गरीबों के ख्वाब ख्वाब ही रह जाते हैं। दलित उत्थान का ख्वाब अधर में ही लटक जाता है। सभी नेताओं का यही हाल है चाहे लालू प्रसाद यादव हो, रामविलास पासवान या यूपी की मुख्यमन्त्री बहन मायावती। यह सभी पूँजीपति का साथ पाकर ही सरकार चलाते हैं। इसलिए शोषित मजदूर साथियो, किसान भाइयो, इनके राजनीतिक खेल को समझो और इनके झूठे वायदों में न आओ। जिस तरह नदी के दो किनारे होते हैं और एक किनारे को पकड़कर ही हमारा जीवन बच सकता है, उसी तरह देश में दो अलग-अलग वर्ग हैं। एक पूँजीपति वर्ग है जो ज़ुल्म, अत्याचार, लूट-खसोट करता है। दूसरी तरफ मजदूर वर्ग है जो समाज की हर चीज पैदा करता है। लेकिन जिसे समाज में कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। हर एक मजदूर सारे मजदूर वर्ग के साथ खड़े होकर ही इन्साफ पा सकता है।

कविता – सरकारी अस्पताल

यहाँ मरीजों की भरमार है मगर दवाओं का अकाल है
पर्चियाँ लेकर घूमते लोग हैं यह शहर का सरकारी अस्पताल है
यहाँ मरीजों को मुफ्त इलाज के लिए बुलाया जाता है
फिर टेस्ट के बहाने दौड़ाया जाता है
बाद में दवाओं के अभाव का रोना रोते हैं
उचित इलाज करने के लिए अपने क्लिनिक का पता देते हैं
एक तो सरकार की उँची तनख़्वाह है दूसरे डॉक्टरी का बिजनेस भी बहाल है

कविता – शहीद भगत सिंह के इहे एक सपना रहे

शहीद भगत सिंह के एही एक सपना रहे
सब बराबर रहे कोई न भूखा मरे
उनके बतिया पर कर हम धियान भईया।
मिल-जुल कर…

जानवरों जैसा सलूक किया जाता है मज़दूरों के साथ

मुझे 2200 महीने की पगार मिलती है और 12-14 घण्टे तक काम करना पड़ता है। ओवरटाइम सिंगल रेट से देता है और एक भी छुट्टी नहीं मिलती। मैं काम से नहीं घबराता, लेकिन इतनी मेहनत से काम करने के बाद भी सुपरवाइजर माँ-बहन की गाली देता रहता है, ज़रा सी ग़लती पर गाली-गलौज करने लगता है, और अक्सर हाथ भी उठा देता है। मज़दूर लोग दूर गाँव से अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए आये हैं, इसलिए नौकरी से निकाले जाने के डर से वे लोग कुछ नहीं बोलते। शुरू-शुरू में एक-दो फैक्टरी में मैंने पलटकर जवाब दिया तो मुझे काम से निकाल दिया गया। यहाँ मेरा कोई जानने वाला नहीं है, इसलिए मेरे लिए काम करना बहुत ही ज़रूरी है। इसी बात पर मैं भी अब कुछ नहीं बोलता। लेकिन बुरा बहुत लगता है कि सुपरवाइज़र ही नहीं, मैनेजर, चौकीदार और ख़ुद मालिक लोग भी हमें जानवर से ज्यादा कुछ नहीं समझते। कारख़ाने में घुसने के समय और काम खत्म करने के बाद बाहर लौटते समय गेट पर बैठे चौकीदार हम लोगों की तलाशी ऐसे लेते हैं, जैसे हम चोर हों। यही नहीं, हम लोगों को चाय पीने, बीड़ी पीने और यहाँ तक कि पेशाब करने के लिए नहीं जाने दिया जाता। बस लंच में ही समय मिलता है। उसके अलावा यदि ज़रूरत हो तो सुपरवाइज़र के आगे नाक रगड़नी पड़ती है। औरत मज़दूरों के साथ तो और भी बुरा बर्ताव होता है। गाली-गलौज, छेड़छाड़ तो आम बात है, जैसे वे औरत नहीं, उस फैक्टरी का प्रोडक्ट हों। एक-दो औरत मज़दूरों ने विरोध किया और पलटकर गाली भी दी, तो उन्हें काम से निकाल दिया गया और बड़ा बेइज्ज़त किया।

कविता – मई दिवस

निर्दोष ग़रीबों के ख़ून से जब शहर शिकागो लाल हुआ,
जब गूँजा नारा अधिकारों का जब फटे कान सरकारों के
मौत से लड़ते जोश के आगे अमरीका बेहाल हुआ।
सारी दुनिया दहल गयी जब तूफ़ान उठा मज़दूरों का,
एक मई इतिहास बना है दुनिया के मज़दूरों का।

जीवन में बदलाव लाने के लिए ज़रूरी है कि संघर्ष करना सीखो

लेकिन दोस्तो, उस बैल को लोग इतना चारा तो डालते हैं कि उसे खाकर वह मस्त हो जाये और काम पर लग सके। लेकिन दोस्तो, आपको इस बदलते युग (पूँजीवादी) में कोई पूछने भी नहीं आयेगा। आप सब क्यों जानते हुए भी जानवरों की तरह जीना चाहते हैं? यह भी कोई ज़िन्दगी है? आज अपनी मजबूरी दूर करने के लिए 8 घण्टे काम करो, 12 घण्टे खटो, 16 घण्टे लगाओ या साथी तुम पूरा वक्त लगाओ, चाहे मालिकों के पीछे पूरी ज़िन्दगी लगाओ, तुम मर जाओगे लेकिन तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा और तुम ज़िन्दगी में कभी सुख का अनुभव नहीं कर पाओगे। कुछ गिने-चुने लोग कम्पनी में यह कहते हुए भी सुने होंगे – “हमारी कम्पनी में आठ घण्टे काम चलता है। तो क्या पैसा बनेगा? ओवर टाइम तो लगता नहीं तो क्या बचेगा?” “हम तो उस कम्पनी में टाइम ज़्यादा लगाते थे तो पैसा अच्छा बचता था और सुख से रहते थे”। लेकिन साथियो, यह सुख वाली बात नहीं है बल्कि उसी से तुम दुखी हो। 8 घण्टे में पैसा पूरा नहीं मिला। अब मनोरंजन के समय को काम में लगाकर ओवर टाइम करते हो और परिवार का ख़र्च चलाते हो। यह सुख की बात है? यह बिल्कुल मूर्खता है। अगर आप ऐसा सोचोगे तो आपके बच्चे भी ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़े जायेंगे – जैसेकि कुछ जगहों पर बँधुआ मज़दूर दिखते हैं।

आपस की बात

सूली चढ़कर शहीद भगत ने दुनिया को ललकारा है,
नींद से जागो ऐ मज़लूमो सारा देश तुम्हारा है।
जीवनभर जो वस्त्र बनाया फटी बहन की साड़ी है,
सारी उम्र जो बैठ के खाया उसकी बंगला गाड़ी है।
जो काम करे वो रोटी खाये यही हमारा नारा है,
नींद से जागो ऐ मज़लूमो सारा देश तुम्हारा है।

भोरगढ़, नरेला के कारख़ानों में मज़दूरों का बर्बर शोषण बेरोकटोक जारी है

मैं जिस कम्पनी में काम करता हूँ उसमें केबल की रबर बनाने में पाउडर (मिट्टी) का इस्तेमाल होता है। मिट्टी इतनी सूखी और हल्की होती है कि हमेशा उड़ती रहती है। आँखों से उतना दिखाई तो नहीं देता किन्तु शाम को जब अपने शरीर की हालत देखते हैं तो पूरा शरीर और सिर मिट्टी से भरा होता है। ये मिट्टी नाक, मुँह के जरिये फ़ेफ़ड़ों तक जाती है। इस कारण मज़दूरों को हमेशा टी.वी., कैंसर, पथरी जैसी गम्भीर बीमारियाँ होने का खतरा बना रहता है। जो पाउडर केबल के रबर के ऊपर लगाया जाता है उससे तो हाथ फ़ट कर काला-काला हो जाता है। जलन एवँ खुजली होती रहती है। इन सबसे सुरक्षा के लिए सरकार ने जो नियम (दिखावटी) बना रखे हैं जैसे कि नाक, मुँह ढँकने के लिए कपड़े देना, हाथों के लिए दस्ताने, शाम को छुट्टी के समय गुड़ देना आदि। इनमें से किसी भी नियम का पालन मालिक या ठेकेदार नहीं करता है। वह सभी नियम-कानून को अपनी जेब में रख कर चलता है।