Category Archives: मज़दूरों की क़लम से

मुनाफ़ा और महँगाई मिलकर दो ज़िन्दगियाँ खा गये

छट्टू भी साढ़े चार हज़ार तन्ख्वाह पाता था जिसमें पति-पत्नी और दो बच्चों का निर्वाह बड़ी मुश्किल से होता था। उसकी बीवी को सात महीने का गर्भ था। इतनी कम तन्ख्वाह में परिवार का गुज़ारा ही बड़ी मुश्किल से हो पाता था। अच्छी ख़ुराक कहाँ से मिले। सारा पैसा कमरे का किराया और राशन का बिल देने में ख़त्म हो जाता था। पत्नी के शरीर में खून की कमी होने की वजह से हालत ख़राब हो गयी। उसे पास के एक निजी अस्पताल में लेकर गये। हालत बहुत गम्भीर थी उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करने की ज़रूरत थी मगर वहाँ भी मुनाफ़े का दानव मुँह खोले बैठा था। उससे दस हज़ार रुपया कैश तुरन्त जमा करने को कहा गया। पहले पैसा जमा करवाओ तब भरती होगी। वह उनके सामने रोया-गिड़गिड़ाया। मिन्नतें कीं कि अभी भरती कर लीजिये मैं दो घण्टे में इन्तज़ाम करके जमा करा दूँगा। मगर डॉक्टरी के पेशे की आड़ में डाका डालने वाले उन लुटेरों को थोड़ी भी दया नहीं आयी। उसे अस्पताल से वापस लौटा दिया गया। असहाय होकर पत्नी को कमरे पर वापस लेकर आ गया। मोहल्ले की किसी दाई को बुलाकर डिलिवरी करवायी। खून की कमी तो पहले से ही थी। डिलिवरी के समय ज़्यादा खून रिसाव की वजह से रात को साढे़ आठ बजे पत्नी की मौत हो गयी। सुबह तड़के पाँच बजे शिशु की भी मौत हो गयी। जिस मालिक के पास वह काम करता था उसने उसकी सहायता तो क्या करनी थी हाल-चाल भी पूछने नहीं आया।

कविता – क्रान्ति की अलख जलाएँ

चलो मिलकर क्रान्ति की मशाल जलाए,
हर टूटे हुए, बुझे हुए दिल में रोशनी जगाऐं
वो जो डरे हुए हैं, सहमें हुए हैं
इस जालिम समाज, खूनी महफिल से, किन्तु
जिनकी आंखों में नक्शा है, दुनिया बदलने का
दिल में जज्बा है बुराई से लड़ने का
उन बिखरे हुए मोतियों को धागे में पिरोएं

मजदूर भाइयो-बहनो अब और इन्तज़ार मत करो

‘कल करे सो आज कर, आज करे सो अब’ – कबीर दास के इस दोहे को चरितार्थ करने का समय अब आ गया है। मजदूर भाइयो, अब वह समय अब आ गया है जब हमें पूंजी की सत्ता का खुलकर विरोध करना चाहिए और इसके लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए। हमें अब अपने ऊपर हा रहे जुल्मों को और बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। समाज के ऊपर हावी हो रही पूंजी तथा इसके चाटुकारों, दलालों, कमीशनखोरों को सबक सिखाना ही होगा। वरना हमारी हालत दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती चली जाएगी।

बादली औद्योगिक क्षेत्र में मज़दूरों की नारकीय ज़िन्दगी की तीन तस्वीरें

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के बादली गाँव में एक जूता फ़ैक्ट्री में काम करने वाले अशोक कुमार की फ़ैक्ट्री में काम के दौरान 4 जनवरी 2011 को मौत हो गयी। वह रोज़ की तरह सुबह 9 बजे काम पर गया था। दोपहर में कम्पनी से पत्नी के पास फोन करके पूछा गया कि अशोक के पिता कहाँ हैं, मगर उसे कुछ बताया नहीं गया। बाद में पत्नी को पता लगा कि अशोक रोहिणी के अम्बेडकर अस्पताल में भरती है। उसी दिन शाम को अशोक की मौत हो गयी। मुंगेर, बिहार का रहने वाला अशोक पिछले 5 साल से इस फ़ैक्ट्री में काम कर रहा था। उसकी मौत के बाद मालिक अमित ने अशोक की पत्नी से कहा कि तुम्हारे बच्चों को स्कूल में दाखिल दिलाउंगा और तुम्हें उचित मुआवज़ा भी दिया जायेगा। तुम्हें कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है, अशोक का क्रिया-कर्म कर दो। घरवाले मालिक की बातों में आ गये और किसी को कुछ नहीं बताया। बाद में जब अशोक की पत्नी मुआवज़ा लेने गयी तो मालिक ने उसे दुत्कारते हुए भगा दिया और कहा कि कोई भी ज़हर खाकर मर जाये तो क्या मैं सबको मुआवज़ा देते हुए घूमूँगा? उसने धमकी भी दी कि आज के बाद इधर फिर नज़र नहीं आना।

कौन लेगा गरीबों की सुध?

हम एक कमरे में 6-10 लोग रहते है जिससे हम पर किराये का बोझ कम पड़ता हैं क्योंकि हम पाई-पाई जोड़कर साल-छह महीने में कुछ हजार रुपये इकट्ठा कर लेते हैं और उसे गांव में परिवार-जन के लिए भेजते हैं। हम लोग कुछ ज्यादा कमाने के लिए कोल्हू के बैल की तरह काम करते है फ़ि‍र भी बचत के नाम पर कुछ नहीं होता। क्योंकि हमें हमारी मेहनत के अनुसार पैसा भी नहीं मिलता है। आज दिल्ली में हैल्पर के आठ घण्टे काम का वेतन 5278 रु है लेकिन मिलता कितना को है। कहीं पर 2500 या ज्यादा से ज्यादा 3500 रु तक। ऊपर से महंगाई कमर तोड़े रहती है। रोज काम भी नहीं मिलता और कभी शरीर दगा दे देता है। इस हालात में भला हम लोग अपने बच्चों का पेट कैसे भरते होंगे ये तो खुद ही समझने वाली बात है।

कविता – तुम्हारी चुप्पी को क्या समझा जाए!

जब जिंदा रहने की शर्त
कमरतोड़ मेहनत के बराबर हो जाए
तब तुम्हारी उपस्थिति को किस तरह
आँका जाये?
तुम्हारी चुप्पी का क्या अर्थ
निकाला जाये
क्योंकि चुप रहने का भी मतलब
होता है
तटस्थ होता कुछ भी नहीं!

शहीदों के सपनों को साकार करना होगा

‘कल करे सो आज कर, आज करे सो अब’ – कबीर दास के इस दोहे को चरितार्थ करने का समय अब आ गया है। मजदूर भाइयो, अब वह समय अब आ गया है जब हमें पूँजी की सत्ता का खुलकर विरोध करना चाहिए और इसके लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए। हमें अब अपने ऊपर हो रहे जुल्मों को और बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। समाज के ऊपर हावी हो रही पूँजी तथा इसके चाटुकारों, दलालों, कमीशनखोरों को सबक सिखाना ही होगा। वरना हमारी हालत दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती चली जाएगी।

मालिकों के लिए हम सिर्फ मुनाफा पैदा करने की मशीन के पुर्जे हैं

एक दिन वह पावर प्रेस की मशीन चला रहा था। मशीन पुरानी थी, मिस्त्री उसे ठीक तो कर गया था, लेकिन चलने में उसमें कुछ दिक्कत आ रही थी। तो उस नौजवान ने सोचा चलो मालिक को बता दे कि यह मशीन अब ठीक होने लायक नहीं रह गयी है। जैसे ही वह उठा, खुली हुई मशीन की गरारी में उसका स्वेटर फँस गया और मशीन ने उसकी बाँह को खींच लिया। स्वेटर को फाड़ती हुई, माँस को नोचती हुई मशीन से उसकी हड्डी तक में काफी गहरी चोट आयी। अगर उसके बगल वाले कारीगर ने तुरन्त उठकर मशीन बन्द नहीं कर दी होती तो वह उसकी हड्डी को भी पीस देती! उसके ख़ून की धार बहने लगी, पूरी फैक्ट्ररी में निराशा छा गयी। चूँकि उसका ई.एस.आई. कार्ड नहीं बना था। इसलिए मालिक ने एक प्राइवेट अस्पताल में उसे चार-पाँच दिन के लिए भर्ती कराया और कोई भी पुलिस कार्रवाई नहीं हुई। कोई हाल-चाल पूछने जाये तो किसी को कुछ भी बताने से मना कर देता और कहता, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो!! शायद वह इसलिए नहीं बता रहा था कि कहीं मालिक को पता न लग जाये और वह जो कर रहा है, कहीं वह भी करना बन्द न कर दे।

कविता – मुनाफ़ाखोर व्यापारी की प्रार्थना

भाइयो इस महँगाई के दौर में एक तरफ जब लोग कुपोषण से बीमार पड़ रहे हैं, भूख से मर रहे हैं, लोगों का जीना दुश्वार हो गया है वहीं दूसरी तरफ सरकारी गोदामों में सैकड़ों टन अनाज़ सड़ाया जा रहा है। एक तो सरकार हम गरीबों के दिये टैक्स के पैसों से अमीर किसानों से महँगा अनाज खरीदती है,दूसरी ओर उस अनाज को गोदामों में सड़ा कर जमाखोरों को फायदा पहुँचाती है। ऐसे में एक जमाखोर क्या सोच रखता है, मुनाफा कमाने का क्या-क्या तरीका सोचता है, मैं अपनी कविता के जरिए बिगुल के पाठकों को बताना चाहता हूँ

गोरखपुर के संगठित मज़दूरों के नाम

ओ मज़दूर साथी निकलो बनके संघर्ष के सिपाही,
लोग देखेंगे अरमान से अपनी शक्ति ऊँची आसमान से।
पैसे वालों से न डरना ख़ूब मेहनत से लड़ना,
जीत होगी अपनी शान से अपनी शक्ति ऊँची आसमान से।