Category Archives: महान मज़दूर नेता

जॉन रीड : कम्युनिज्‍़म के लक्ष्य को समर्पित बुद्धिजीवी

अक्‍टूबर क्रान्ति ने रीड के जीवन पर अमिट छाप छोड़ी। अमेरिका वापस लौटने पर रीड पूरी तरह से समाजवाद के प्रचार-प्रसार में जुट गये। इसी उद्देश्य से 1919 में बनी ‘कम्युनिस्ट लेबर पार्टी’ की स्थापना में रीड ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। 1919 के बाद लिखे गये तमाम लेखों में रीड ने सर्वहारा अधिनायकत्व की पुरज़ोर वक़ालत और हिफ़ाज़त की। लेकिन रीड अपने इन प्रयासों को और आगे बढ़ाते, इससे पहले ही 17 अक्‍टूबर 1920 को टाइफ़स बुख़ार के कारण उनकी मृत्यु हो गयी। अत्यधिक परिश्रम के कारण पहले ही उनका शरीर काफ़ी कमज़ोर हो चुका था। मृत्यु के बाद रीड को मास्को के लाल चौक में क्रेमलिन की दीवार के साये में दफ़नाया गया। रीड इस सम्मान के सर्वथा योग्य थे। वे केवल एक जनपक्षधर पत्रकार नहीं थे। वे एक कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाजवाद के लक्ष्य को समर्पित किया।

स्त्री मज़दूरों का संघर्ष श्रम की मुक्ति के महान संघर्ष का हिस्सा है

स्त्रियों की इस स्पष्ट महत्वहीनता और उदासीनता का कारण आसानी से समझा जा सकता है। सभी स्त्री संगठनों के ज़्यादातर हिस्से में यह आम है और हम इसे नज़रन्दाज़ नहीं कर सकते। कारण यह है कि आज भी स्त्रियों को दो ज़िम्मेदारियाँ निभानी होती हैं: फ़ैक्टरी में वे सर्वहारा होती हैं और दिहाड़ी कमाती हैं जिस पर काफ़ी हद तक वे और उनके बच्चे निर्भर रहते हैं लेकिन वे घरेलू गुलाम भी हैं, अपने पतियों, पिताओं और भाइयों की बिना मज़दूरी की नौकर। सुबह फ़ैक्टरी जाने से पहले ही स्त्रियाँ इतना काम कर चुकी होती हैं कि अगर वही काम मर्दों को करना पड़े तो वे समझेंगे कि उन्होंने अच्छा-ख़ासा काम कर दिया है। दोपहर के समय मर्दों को कम से कम थोड़ा आराम मिलने की उम्मीद होती है, पर स्त्रियों को तब भी आराम नहीं मिलता। और आख़िरकार शाम का वक़्त बेचारे मर्द को अपने लिए मिल जाता है लेकिन और भी बेचारी स्त्री को तो उस वक़्त भी काम करना होता है। घरेलू काम उसका इन्तज़ार कर रहे होते हैं, बच्चों की देखभाल करनी होती है, कपड़ों की सफ़ाई और मरम्मत करनी पड़ती है। संक्षेप में, अगर किसी कारख़ाना इलाक़े के मर्द दस घण्टे काम करते हैं तो औरतें सोलह घण्‍टे करती हैं। फिर भला वे किसी और चीज़ में सक्रिय रुचि कैसे ले सकती हैं? यह भौतिक रूप से असम्भव लगता है। लेकिन इसके बावजूद इन्हीं कारख़ाना इलाक़ों में कुल मिलाकर औरतों की स्थिति सबसे अच्छी है। वे ‘अच्छी’ मज़दूरी पाती हैं, उनके काम के बिना मर्दों का काम नहीं चल सकता, और इसीलिए वे सापेक्षिक रूप से स्वतन्‍त्र हैं। जब हम उन शहरों या ज़िलों में पहुँचते हैं जहाँ स्त्रियों के काम का मतलब है नीरस और थकाऊ काम, जहाँ आम तौर पर बहुत सारा काम घर पर किया जाने वाला काम (किसी नियोक्ता के लिए घर पर किया गया काम) होता है, वहाँ हम पाते हैं कि स्थितियाँ सबसे बुरी हैं और संगठन की ज़रूरत सबसे अधिक है।

मज़दूर वर्ग के महान नेता और शिक्षक लेनिन

लेनिन ने बताया कि क्रान्ति करने के लिए मज़दूर वर्ग की एक क्रान्तिकारी पार्टी का होना ज़रूरी है। इस पार्टी की रीढ़ ऐसे कार्यकर्ता होने चाहिए जो पूरी तरह से केवल क्रान्ति के लक्ष्य को ही समर्पित हों। उन्हें ऐसे कार्यकर्ताओं को पेशेवर क्रान्तिकारी कहा। इस पार्टी का निर्माण एक क्रान्तिकारी मज़दूर अखबार के माध्यम से शुरू होगा और यह जनता के बीच अपनी जड़ें गहरी जमा लेगी। उन्होंने कहा कि क्रान्तिकारी पार्टी पूरी तरह खुली होकर काम नहीं कर सकती, उसका केन्द्रीय ढाँचा गुप्त रहना चाहिए ताकि पूँजीवादी सरकार उसे ख़त्म नहीं कर सके। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘क्या करें’ में उन्होंने सर्वहारा वर्ग की नये ढंग की क्रान्तिकारी पार्टी के सांगठनिक उसूलों को प्रस्तुत किया, जिसके अलग-अलग पहलुओं को विकसित करने का काम वे आख़िरी समय तक करते रहे।

चार्टिस्टों का गीत / टॉमस कूपर Chartist Song / Thomas Cooper

एक समय वो आयेगा जब धरती पर
होगा आनन्द और उल्लास चहुँओर,
जब हत्यारी तलवारें ज़ंग खायेंगी म्यानों में,
जब भलाई के गीत गूँजेंगे, फ़ैक्ट्री में, खलिहानों में।

मज़दूर वर्ग और समाजवाद को समर्पित एक सच्चा बुद्धिजीवी: जॉर्ज थॉमसन

एक सच्चे कम्युनिस्ट योद्धा की तरह जॉर्ज थॉमसन अपनी आख़िरी साँस तक वर्ग युद्ध के मोर्चे पर डटे रहे। एक सच्चा क्रान्तिकारी बुद्धिजीवी कैसा होना चाहिए, जॉर्ज थॉमसन इसकी मिसाल ताउम्र पेश करते रहे। वे सच्चे मायनों में जनता के आदमी थे। बौद्धिक प्रतिभा के इतने धनी होते हुए भी उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग मज़दूर वर्ग के क्रान्तिकारी संघर्षों को समर्पित कर दिया। उनके हर संघर्ष में उनकी पत्नी एक सच्चे जीवन साथी की तरह उनके साथ क़दम-से-क़दम मिलाकर चलती रहीं। 1987 में 84 वर्ष की उम्र में जॉर्ज थॉमसन ने दुनिया को अलविदा कहा। ऐसे सच्चे क्रान्तिकारी को हमारा क्रान्तिकारी सलाम!

शिकागो के शहीद मज़दूर नेताओं की कहानी

अपने संघर्ष के दौरान मज़दूर वर्ग ने बहुत-से नायक पैदा किये हैं। अल्बर्ट पार्सन्स भी मज़दूरों के एक ऐसे ही नायक हैं। यह कहानी अल्बर्ट पार्सन्स और शिकागो के उन शहीद मज़दूर नेताओं की है, जिन्हें आम मेहनतकश जनता के हक़ों की आवाज़ उठाने और ‘आठ घण्टे के काम के दिन’ की माँग को लेकर मेहनतकशों की अगुवाई करने के कारण 11 नवम्बर, 1887 को शिकागो में फाँसी दे दी गयी। मई दिवस के शहीदों की यह कहानी हावर्ड फास्ट के मशहूर उपन्यास ‘दि अमेरिकन’ का एक हिस्सा है। इसमें शिलिंग नाम का बढ़ई मज़दूर आन्दोलन से सहानुभूति रखने वाले जज पीटर आल्टगेल्ड को अल्बर्ट पार्सन्स की ज़िन्दगी और शिकागो में हुई घटनाओं और मज़दूर नेताओं की कुर्बानी के बारे में बताता है।

एँगेल्स – मार्क्‍स की समाधि पर भाषण

जैसेकि जैव प्रकृति में डार्विन ने विकास के नियम का पता लगाया था, वैसे ही मानव इतिहास में मार्क्‍स ने विकास के नियम का पता लगाया था। उन्होंने इस सीधी-सादी सच्चाई का पता लगाया जो अब तक विचारधारा की अतिवृद्धि से ढकी हुई थी — कि राजनीति, विज्ञान, कला, धर्म, आदि में लगने के पूर्व मनुष्य जाति को खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना और सिर के ऊपर साया चाहिए। इसलिए जीविका के तात्कालिक भौतिक साधनों का उत्पादन और फलत: किसी युग में अथवा किसी जाति द्वारा उपलब्ध आर्थिक विकास की यात्रा ही वह आधार है जिस पर राजकीय संस्थाएँ, क़ानूनी धारणाएँ, कला और यहाँ तक कि धर्म सम्बन्धी धारणाएँ भी विकसित होती हैं। इसलिए इस आधार के ही प्रकाश में इन सबकी व्याख्या की जा सकती है, न कि इससे उल्टा, जैसाकि अब तक होता रहा है।

कम्युनिस्ट जीवनशैली के बारे में माओ त्से-तुङ के कुछ उद्धरण

कोई नौजवान क्रान्तिकारी है अथवा नहीं, यह जानने की कसौटी क्या है? उसे कैसे पहचाना जाये? इसकी कसौटी केवल एक है, यानी यह देखना चाहिए कि वह व्यापक मज़दूर-किसान जनता के साथ एकरूप हो जाना चाहता है अथवा नहीं, तथा इस बात पर अमल करता है अथवा नहीं? क्रान्तिकारी वह है जो मज़दूरों व किसानों के साथ एकरूप हो जाना चाहता हो, और अपने अमल में मज़दूरों व किसानों के साथ एकरूप हो जाता हो, वरना वह क्रान्तिकारी नहीं है या प्रतिक्रान्तिकारी है। अगर कोई आज मज़दूर-किसानों के जन-समुदाय के साथ एकरूप हो जाता है, तो आज वह क्रान्तिकारी है; लेकिन अगर कल वह ऐसा नहीं करता या इसके उल्टे आम जनता का उत्पीड़न करने लगता है, तो वह क्रान्तिकारी नहीं रह जाता अथवा प्रतिक्रान्तिकारी बन जाता है।

जोसेफ स्तालिन : क्रान्ति और प्रतिक्रान्ति के बीच की विभाजक रेखा

स्तालिन शब्द का मतलब होता है इस्पात का इन्सान – और स्तालिन सचमुच एक फौलादी इन्सान थे। मेहनतकशों के पहले राज्य को नेस्तनाबूद कर देने की पूँजीवादी लुटेरों की हर कोशिश को धूल चटाते हुए स्तालिन ने एक फौलादी दीवार की तरह उसकी रक्षा की, उसे विकसित किया और उसे दुनिया के सबसे समृद्ध और ताकतवर समाजों की कतार में ला खड़ा किया। उन्होंने साबित कर दिखाया कि मेहनतकश जनता अपने बलबूते पर एक नया समाज बना सकती है और विकास के ऐसे कीर्तिमान रच सकती है जिन्हें देखकर पूरी दुनिया दाँतों तले उँगली दबा ले। उनके प्रेरक नेतृत्व और कुशल सेनापतित्व में सोवियत जनता ने हिटलर की फासिस्ट फौजों को मटियामेट करके दुनिया को फासीवाद के कहर से बचाया।

अदम्य बोल्शेविक – नताशा – एक संक्षिप्त जीवनी

रूस की अक्टूबर क्रान्ति के लिए मज़दूरों को संगठित, शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए हज़ारों बोल्शेविक कार्यकर्ताओं ने बरसों तक बेहद कठिन हालात में, ज़बर्दस्त कुर्बानियों से भरा जीवन जीते हुए काम किया। उनमें बहुत बड़ी संख्या में महिला बोल्शेविक कार्यकर्ता भी थीं। ऐसी ही एक बोल्शेविक मज़दूर संगठनकर्ता थीं नताशा समोइलोवा जो आख़िरी साँस तक मज़दूरों के बीच काम करती रहीं। हम ‘बिगुल’ के पाठकों के लिए उनकी एक संक्षिप्त जीवनी का धारावाहिक प्रकाशन कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि आम मज़दूरों और मज़दूर कार्यकर्ताओं को इससे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।