मज़दूर वर्ग और समाजवाद को समर्पित एक सच्चा बुद्धिजीवी: जॉर्ज थॉमसन
शिवानी
शोषण और लूट पर टिकी कोई भी व्यवस्था कभी नहीं चाहती कि ऐसे विचार जनता के बीच पहुँचें जो जनता के संघर्षों को प्रेरित करें और उन्हें उनकी मुक्ति का रास्ता बताएँ। न ही ऐसी कोई भी व्यवस्था यह चाहती है कि जनता उन विचारकों के बारे में जाने जो उसके संघर्षों के साझीदार हों। यह बात पूँजीवादी व्यवस्था पर भी लागू होती है। मेहनत और कुदरत की लूट पर खड़ी यह व्यवस्था बहुसंख्यक मेहनतकशों को उनके संघर्षमय इतिहास और उसमें संघर्षरत योद्धाओं से काटने की हर चन्द कोशिश करती है। कारण स्पष्ट है। इनके बारे में कोई भी इल्म स्वयं पूँजीवाद के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है। यही कारण है कि पूरा पूँजीवादी प्रचार तन्त्र या तो मज़दूर वर्ग के इतिहास, उसके द्वारा अंजाम दी गयी क्रान्तियों और उसके नेताओं के बारे में कुत्सा-प्रचार करता है, भ्रम फैलाता है, इनसे जुड़े तथ्यों को तोड़ता-मरोड़ता है; या फिर इन सबके विषय में एक सोची-समझी, साज़िशाना चुप्पी का रुख़ अपनाता है। मज़दूर वर्ग का पक्ष चुनने वाले एक ऐसे ही विलक्षण बुद्धिजीवी जॉर्ज थॉमसन का नाम पूँजीवादी मीडिया कभी नहीं लेता है। जॉर्ज थॉमसन न केवल एक प्रखर मार्क्सवादी बुद्धिजीवी थे, बल्कि एक सक्रिय मज़दूर संगठनकर्ता भी थे।
जॉर्ज थॉमसन का जन्म 1903 में ब्रिटेन में हुआ था। 1936 में वे बर्मिंघम विश्वविद्यालय में यूनानी भाषा और साहित्य के प्रोफेसर नियुक्त हुए। उसी वर्ष वे ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी से भी जुड़े। साहित्यिक लेखन के साथ-साथ वे लगातार कम्युनिस्ट अख़बारों और पत्र-पत्रिकाओं के लिए नियमित रूप से लिखते रहे। उन्होंने विशेषकर मज़दूर वर्ग के पाठकों के लिए मार्क्सवाद और मज़दूर आन्दोलन पर कई निबन्ध एवं पर्चे लिखे। यह कहना भी यहाँ ग़लत नहीं होगा कि 1940 के दशक के अन्त तक उन्हें ब्रिटेन में मार्क्सवाद के सबसे प्रख्यात शिक्षक और लेखक के रूप में जाना जाने लगा था। जॉर्ज थॉमसन कोई निष्क्रिय मार्क्सवादी बुद्धिजीवी नहीं थे। उन्होंने जीवन-पर्यन्त एक क्रान्तिकारी बुद्धिजीवी की भूमिका निभायी। अपनी तमाम बौद्धिक, अकादमिक व्यस्तताओं के बावजूद वे आजीवन बर्मिंघम के मज़दूरों के बीच राजनीतिक प्रचार-प्रसार का कार्य करते रहे। मज़दूरों की राजनीतिक शिक्षा-दीक्षा और उनकी सांस्कृतिक टोलियों को संगठित करने के साथ-साथ वे पार्टी का सांगठनिक काम भी देखते थे और कई मज़दूर आन्दोलनों में उन्होंने सक्रिय भागीदारी भी की।
जॉर्ज थॉमसन पश्चिमी दुनिया के उन चन्द बुद्धिजीवियों में एक थे जो अन्तरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आन्दोलन में संशोधनवाद के विरुद्ध चट्टान की तरह डटे रहे। उन्होंने ख्रुश्चेवी संशोधनवाद और चीनी देङपंथियों के संशोधनवाद के ख़िलाफ़ सही मार्क्सवादी-लेनिनवादी अवस्थिति अपनायी। 1951 में उन्होंने ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा जारी एक दस्तावेज़ का विरोध किया क्योंकि उसमें सर्वहारा अधिनायकत्व का कोई उल्लेख नहीं था। पार्टी की कार्यकारी समिति के वे एकमात्र सदस्य थे जिन्होंने ऐसा किया। जॉर्ज थॉमसन चीनी क्रान्ति और माओ के विचारों से काफ़ी प्रभावित थे। यही कारण है कि जब ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी ने संशोधनवाद की राह पकड़ी तो उन्होंने पार्टी से निर्णायक तौर पर विच्छेद कर लिया। पार्टी से अलग होने के बाद भी उन्होंने बर्मिंघम के कारख़ाना मज़दूरों के बीच राजनीतिक-सांस्कृतिक काम जारी रखा। मार्क्सवाद पर उनकी कक्षाओं में मज़दूरों के साथ ही छात्र-युवा भी भारी संख्या में उपस्थित रहते थे। 1950 के दशक में उन्होंने कुछ लेखकों, कलाकारों और नाटककारों के साथ मिलकर ‘समाजवादी नाटक कम्पनी’ की शुरुआत की। उन्होंने ‘बर्मिंघम व मिडलैण्ड लोक केन्द्र’ की स्थापना भी की। बर्मिंघम के मज़दूरों के प्रसिद्ध गायन दल ‘क्लैरियन सिंगर्स’ की स्थापना भी जॉर्ज थॉमसन की ही पहल पर हुई थी।
1963 में माओ के नेतृत्व में चीनी पार्टी ने सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के संशोधनवाद के ख़िलाफ़ ‘महान बहस’ की शुरुआत की। उस समय तक ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी समेत यूरोप की सभी कम्युनिस्ट पार्टियों ने संशोधनवाद का रास्ता अपना लिया था। यूरोप में उस समय चीनी पार्टी और माओ त्से-तुङ के ख़िलाफ़ घृणित कुत्सा-प्रचार की मुहिम ज़ोरों पर थी। इसका विरोध करने के लिए और साथ ही पश्चिमी देशों के मज़दूर वर्ग, वाम बुद्धिजीवियों और कम्युनिस्ट कतारों को चीन के समाजवादी प्रयोग से अवगत कराने के लिए 1963 में जॉर्ज थॉमसन ने कई अन्य मार्क्सवादी-लेनिनवादी बुद्धिजीवियों के साथ मिलकर ‘चाइना पॉलिसी स्टडी ग्रुप’ का गठन किया। इसी अध्ययन मण्डल के तहत ‘ब्रॉडशीट’ नामक एक मासिक बुलेटिन का भी प्रकाशन शुरू किया गया जो जल्दी ही बड़ी संख्या में लगभग 40 देशों में वितरित होने लगा। सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की पूरी अवधि के दौरान इस बुलेटिन का प्रकाशन लगातार जारी रहा। ब्रिटेन, अमेरिका और पूरे यूरोप के वाम बुद्धिजीवियों और कम्युनिस्ट कतारों को चीन की सांस्कृतिक क्रान्ति और समाजवादी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से अवगत कराने में ‘चाइना पॉलिसी स्टडी ग्रुप’ और ‘ब्रॉडशीट’ ने विशेष भूमिका निभायी। इसी उद्देश्य से जॉर्ज थॉमसन की तीन पुस्तकों का भी प्रकाशन किया गया — ‘मार्क्स से माओ तक : क्रान्तिकारी द्वन्द्ववाद में एक अध्ययन’, ‘पूँजीवाद और उसके उपरान्त : माल उत्पादन का उदय और अस्त’, और ‘मानवीय सारतत्व : विज्ञान और कला के स्रोत’।
माओ त्से-तुङ की मृत्यु के बाद चीन में देङपंथी संशोधनवादी अपने षड़यन्त्र में कामयाब हुए और सत्ता पर काबिज़ होते ही पूँजीवादी पुनर्स्थापना की शुरुआत की। इस पूरे दौर में जॉर्ज थॉमसन देङ सियाओ-पिघ के ‘बाज़ार समाजवाद’ की असलियत को बेनक़ाब करते रहे और उन्होंने माओवाद तथा सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की शिक्षाओं का परचम ऊँचा उठाये रखा। एक सच्चे कम्युनिस्ट योद्धा की तरह जॉर्ज थॉमसन अपनी आख़िरी साँस तक वर्ग युद्ध के मोर्चे पर डटे रहे। एक सच्चा क्रान्तिकारी बुद्धिजीवी कैसा होना चाहिए, जॉर्ज थॉमसन इसकी मिसाल ताउम्र पेश करते रहे। वे सच्चे मायनों में जनता के आदमी थे। बौद्धिक प्रतिभा के इतने धनी होते हुए भी उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग मज़दूर वर्ग के क्रान्तिकारी संघर्षों को समर्पित कर दिया। उनके हर संघर्ष में उनकी पत्नी एक सच्चे जीवन साथी की तरह उनके साथ क़दम-से-क़दम मिलाकर चलती रहीं। 1987 में 84 वर्ष की उम्र में जॉर्ज थॉमसन ने दुनिया को अलविदा कहा। ऐसे सच्चे क्रान्तिकारी को हमारा क्रान्तिकारी सलाम!
मज़दूर बिगुल, मार्च 2012
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन