लेनिन मज़दूरों के और पास खिसक आये और समझाने लगे कि यह सही है कि मज़दूरों को जानकारी, अनुभव के बग़ैर जन-कमिसारियतों में कठिनाई हो रही है मगर सर्वहारा के पास एक तरह की जन्मजात समझ-बूझ है। जन-कमिसारियतों में हमारी अपनी, पार्टी की, सोवियतों की नीति पर अमल करवाने की ज़रूरत है। यह काम अगर मज़दूर नहीं करेंगे, तो और कौन करेगा? सब जगह मज़दूरों के नेतृत्व, मज़दूरों के नियन्त्रण की ज़रूरत है।
“और अगर ग़लती हो गयी तो?”
“ग़लती होगी, तो सुधारेंगे। नहीं जानते तो सीखेंगे। इस तरह साथियो,” खड़े होते हुए व्लादीमिर इल्यीच ने दृढ़तापूर्वक कहा, “कि पार्टी ने अगर आपको भेजा है, तो अपना कर्त्तव्य निभाइये।” और फिर अपनी उत्साहवर्धक मुस्कान के साथ दोहराया, “नहीं जानते तो सीखेंगे।”