जेल में मज़दूर नेता आमरण अनशन पर, बाहर समर्थकों ने मोर्चा संभाला शहर में जगह-जगह पोस्टर-पर्चों के जरिये किया मालिक-प्रशासन के झूठ का पर्दाफाश
देश-विदेश से कानूनविदों-एक्टिविस्टों-पत्रकारों ने मायावती के नाम अपील पर हस्ताक्षर करके दमन की निंदा की
नई दिल्ली, 23 मई। 3 मई को मज़दूरों पर चली गोलियों और उसके विरोध में 9 तारीख के शांतिपूर्ण मजदूर सत्याग्रह के बर्बर दमन के बाद और 20 मई को लाठीचार्ज के बाद फर्जी आरोपों में दो महिला साथियों समेत 14 मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी का मामला तूल पकड़ रहा है। जेल में बंद मजदूर नेताओं ने आज भी आमरण अनशन जारी रखा। दूसरी तरफ,उनके समर्थकों ने गोरखपुर शहर के विभिन्न इलाकों में प्रचार अभियान चलाकर प्रशासन के झूठ का भंडाफोड़ किया। इसके अलावा देश-विदेश के ट्रेडयूनियन कर्मियों, एक्टिविस्टों, जनवादी अधिकार और मानवाधिकार कर्मियों ने मुंबई की सीनियर एडवोकेट कामायनी बाली महाबल द्वारा मायावती के नाम जारी की गई ऑनलाइन अपील पर हस्ताक्षर करके पुलिस-प्रशासन द्वारा मजदूर आंदोलन के दमन की निंदा की और फर्जी आरोपों में गिरफ्तार नेताओं की रिहाई की मांग की।
गोरखपुर मजदूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा ने बताया कि आज सुबह से ही गोरखपुर में अलग-अलग कारखानों के मजदूर और आंदोलन समर्थक छात्रों-युवाओं ने भगवानपुर मोहल्ला, बरगदवां गांव, बरगदवा चौराहा, मोहरीपुर, गीडा,विकासनगर के इलाकों में घर-घर जाकर लोगों को प्रशासन के झूठ और पक्षपातपूर्ण रवैये के बारे में बताया। उन्होंने इन इलाकों में पोस्टर चिपकाकर और पर्चे बांटकर भी मालिक-प्रशासन-नेता-गुंडा गठजोड़ का भंडाफोड़ किया। उधर, संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा ने कहा कि 3 मई के गोलीकांड के दोषी फैक्ट्री मालिक, माफिया सरगना प्रदीप सिंह को गिरफ्तार नहीं किया गया, फर्जी मुकदमों में बंद किए मजदूर नेताओं को छोड़ा नहीं गया और शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे मजदूरों के बर्बर दमन के जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो वे अपना अभियान तेज़ कर देंगे। उन्होंने बताया कि मजदूरों ने फैसला किया है कि जब तक वी.एन. डायर्स से निकाले गए 18 मजदूरों को काम पर वापस नहीं लिया जाएगा तब तक एक भी मजदूर काम पर नहीं जाएगा।
दूसरी तरफ, आज जारी की गई ऑनलाइन अपील पर सुबह तक 130 हस्ताक्षर किए जा चुके थे। हस्ताक्षर करने वाले नामों में एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता कामायनी बाली महाबल, ट्रेडयूनियन और मानवाधिकार कर्मी सुधा उपाध्याय एवं रोमा, एन.ए.पी.एम. के मधुरेश, हल्द्वानी से लेखक एवं संस्कृतिकर्मी अशोक कुमार पाण्डेय, मुंबई से फोटो जर्नलिस्ट जावेद इक़बाल, यू.के. से स्टीफन कार्डवेल, हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रो. बी.आर. बापूजी, अमेरिका से फ्रेडरिक डिसूज़ा, पत्रकार मेहताब आलम, प्रियरंजन, अमलेंदु उपाध्याय, संदीप शर्मा, दीपांकर चक्रवर्ती, कमेटी फॉर कम्युनल एमेटी, मुंबई के शुक्ल सेन, कोलकाता से गौतम गांगुली, सायन भट्टाचार्य, मेदिनीपुर अनिर्बान प्रधान, जगदलपुर से अली सैयद, चेन्नई से रंजनी कमल मूर्ति एवं अन्य छात्रों-सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं-पत्रकारों के नाम शामिल हैं। ऑनलाइन पिटीशन पर हस्ताक्षर करने यह सिलसिला जारी है। इसके अतिरिक्त देशभर से जागरूक नागरिक उत्तर प्रदेश और विशेषतौर पर गोरखपुर प्रशासन को फोन-फैक्स-ईमेल करके भी पुलिस-प्रशासन द्वारा शांतिपूर्ण मजदूर आंदोलन के दमन और मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी पर विरोध जता रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि गोरखपुर में 3 मई के गोलीकांड के दोषियों की गिरफ्तारी और अन्य मांगों को लेकर 16 मई से भूख हड़ताल पर बैठे मजदूर 20 मई को जिलाधिकारी कार्यालय ज्ञापन देने जा रहे थे तो पुलिस ने उन पर बर्बर लाठीचार्ज करके 73 मजदूरों को हिरासत में लिया था जिनमें से अधिकांश मजदूर देर रात छोड़ दिए गए थे लेकिन बीएचयू की छात्रा श्वेता, स्त्री मजदूर सुशीला देवी और अन्य 12 को गिरफ्तार कर लिया गया था। पुलिस 20 तारीख को दिन में ही मजदूर नेता तपीश मैंदोला को किसी अन्य स्थान से उठा ले गई थी और अगले दिन कोर्ट में उनकी पेशी से पहले तक तपिश की गिरफ्तारी से इंकार करती रही। बाद में दोपहर को अचानक तपिश को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दिया गया। सभी मजदूर नेताओं पर पुलिस ने तीन-तीन फर्जी मुकदमे दायर किए हैं। जेल भेजे गए सभी 14 मजदूर नेताओं ने जेल में आमरण-अनशन शुरू कर दिया है। इनमें से श्वेता और सुशीला देवी पिछले 6 दिन से आमरण अनशन पर हैं जिसके कारण उनकी हालत लगातार बिगड़ रही है। इसके बावजूद उन्होंने जेल में भी आमरण अनशन शुरू कर दिया है। दो मुकदमों में दोनों को जमानत मिलने के बावजूद पुलिस द्वारा दायर किए गए तीसरे मुकदमे में उन्हें जमानत नहीं मिली थी।
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