गोरखपुर में तीन कारखानों के मजदूरों के एकजुट संघर्ष की शानदार जीत
‘बिगुल’ से जुड़े मज़दूर कार्यकर्ताओं पर कातिलाना हमला मालिकान को महँगा पड़ा
बिगुल संवाददाता
गोरखपुर के तीन कारखानों के मज़दूरों ने अपने एकजुट संघर्ष से मालिकों को झुकाकर अपनी सभी प्रमुख माँगें मनवाकर एक शानदार जीत हासिल की है। अंकुर उद्योग लि. की धागा मिल, वी.एन. डायर्स एण्ड प्रोसेसर्स की धागा मिल और इसी की कपड़ा मिल के करीब बारह सौ मजदूरों की इस जीत का महत्व इसलिए और भी ज्यादा है क्योंकि यह ऐसे समय में हासिल हुई है, जब मजदूरों को लगातार पीछे धकेला जा रहा है और ज्यादातर जगहों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बेहद पिछड़े इलाके में मजदूरों के इस सफल संघर्ष ने यह दिखा दिया है कि अगर मजदूर एकजुट रहें, भ्रष्ट, धन्धेबाज ट्रेड यूनियन नेताओं के बहकावे में न आयें और मालिक-पुलिस-प्रशासन-नेताशाही की धमकियों और झाँसों के असर में आये बिना अपनी लड़ाई को सुनियोजित ढंग से लड़ें तो अपने बुनियादी अधिकारों की लड़ाई में ऐसी जीतें हासिल कर सकते हैं।
आन्दोलन की शुरुआत मुख्य शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर बरगदवा इलाके में फाइबर का धागा बनाने वाली मिल अंकुर उद्योग लि. से हुई जिसमें करीब 600 मजदूर काम करते हैं। काम के घण्टे कम करने, न्यूनतम मजदूरी और साप्ताहिक छुट्टी देने, पी.एफ., ई.एस.आई. जैसी बुनियादी माँगों को लेकर मजदूरों ने 15 जून से आन्दोलन शुरू किया और उसी दिन उन्होंने आन्दोलन में सहयोग के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ और ‘बिगुल’ से जुड़े कार्यकर्ताओं से सम्पर्क किया। 16 जून से ‘नौभास’ और ‘बिगुल’ के साथियों के शामिल होने के बाद आन्दोलन सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ा। जल्दी ही, बरगदवा में ही स्थित एक और धागा मिल वी.एन. डायर्स एण्ड प्रोसेसर्स के करीब 300 मजदूर भी आन्दोलन में शामिल हो गये। मालिकों की तमाम कोशिशों के बावजूद दोनों मिलों में काम पूरी तरह ठप हो गया। लगातार जुझारू ढंग से धरना-प्रदर्शन और कई दौर की वार्ताओं के बाद 29 जून को दोनों कारखानों के मालिकान ने मजदूरों की सभी मुख्य माँगों को मानने के लिए लिखित समझौता किया। इस बीच मालिकों ने मजदूरों को बाँटने-बरगलाने, डराने-धमकाने के लिए हर किस्म की तिकड़म का इस्तेमाल किया, श्रम विभाग के अधिकारी नंगई से मालिकों की पैरोकारी करते रहे, स्थानीय नेताओं और गुण्डों तक ने आन्दोलन तोड़ने के लिए पूरा जोर लगा लिया लेकिन किसी की एक न चली।
इसी बीच वी.एन. डायर्स एण्ड प्रोसेसर्स की कपड़ा मिल में भी उन्हीं माँगों को लेकर आन्दोलन शुरू हो गया। यहाँ भी लगभग 300 मजदूर काम करते हैं। एक ओर धागा मिलों के मजदूरों की जीत से उत्साहित मजदूर पूरे जोश में थे, दूसरी ओर मालिक अपनी हार से बौखलाया हुआ था और बार-बार वार्ताओं में मामले को लटका रहा था। इसी दौरान 8 जुलाई की सुबह फैक्टरी गेट पर मीटिंग करने के बाद जब मजदूर लौट रहे थे तो अचानक मालिक नारायण अजितसरिया, उसके बेटे और कुछ गुण्डों ने पीछे से मजदूरों पर हमला किया। ख़ुद मालिक ने ‘नौजवान भारत सभा’ के कार्यकर्ता उदयभान के सिर पर पिस्तौल के कुन्दे से कई वार किये जिससे उनका सिर बुरी तरह फट गया। ‘नौजवान भारत सभा’ की गोरखपुर इकाई के संयोजक प्रमोद को मालिक और उसके गुण्डे घसीटकर फैक्टरी के अन्दर ले गये और गेट बन्द कर लिया। भीतर प्रमोद के हाथ-पैर बाँधकर लाठी और लोहे के सरियों से बुरी तरह पीटा गया। एक बार तो उन्हें डराने के लिए ब्वायलर में झोंकने की भी कोशिश की गयी। इस बीच बाहर मजदूरों ने सड़क पर चक्का जाम कर दिया, तब जाकर पुलिस पहुँची, लेकिन थानेदार गेट के भीतर गया तो काफी देर तक लौटा ही नहीं। आखिर मजदूर जबरन फाटक खुलवाकर फैक्टरी के भीतर घुसे और प्रमोद को लेकर बाहर आये। हमले में कई मजदूरों को भी चोटें लगीं।
इस हमले से डरने के बजाय मजदूर और भी मजबूती से एकजुट हो गये। दोनों धागा मिलों के मजदूर भी अपने भाइयों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए साथ आ गये। अगले दिन तीनों कारखानों के मजदूरों ने मिलकर विशाल जुलूस निकाला और जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन करके मालिक और उसके गुण्डों को फौरन गिरफ्तार करने की माँग की। प्रशासन के दबाव में 9 जुलाई से मालिक को फिर वार्ता शुरू करनी पड़ी और तमाम दाँव-पेंच के बावजूद आखिरकार 13 जुलाई को लगभग आठ घण्टे चली वार्ता के बाद उसे मजदूरों की सारी माँगें मानने के लिए बाध्य होना पड़ा।
तीनों कारखानों के मजदूरों ने अपनी एकजुटता से काम के घण्टे आठ करने, न्यूनतम मजदूरी, साप्ताहिक व अर्जित अवकाश देने, 24 घण्टे पहले वेतन-स्लिप देने, जरूरी सुरक्षा उपकरण देने, तथा नियमानुसार महँगाई भत्ता और बोनस देने जैसी माँगें मनवाने के लिए मालिकान को बाध्य कर दिया। यह जीत पूरे गोरखपुर क्षेत्र के मजदूरों के लिए उम्मीद की किरण की तरह आयी है, जो बरसों से अपनी हड्डियाँ निचुड़वाते हुए जुल्म और शोषण के अंधेरे रसातल में जी रहे हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में दो औद्योगिक इलाके हैं। शहर की दक्षिणी सीमा पर स्थित बरगदवा तथा पूरब में शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर सहजनवा का गीडा औद्योगिक क्षेत्र। बरगदवा में इस समय करीब 20 कारखाने हैं जिनमें तीन धागा मिलें, एक कपड़ा मिल, एक सरिया मिल, साइकिल के रिम, बर्तन, प्लास्टिक के बोरे, मुर्गी का चारा, आइसक्रीम, बिस्कुट आदि के कारखाने शामिल हैं। इनमें 80-100 से लेकर 1000 तक मजदूर काम करते हैं। किसी भी मिल में कोई श्रम कानून लागू नहीं होता। मजदूरों को मुश्किल से जीने लायक वेतन देकर 12-12, 14-14 घण्टे काम कराया जाता है। अक्सर दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। मजदूरों को किसी तरह की कोई सुविधा नहीं मिलती। बात-बात पर गालियाँ और मार-पीट तक सहनी पड़ती है। विरोध करने पर काम से निकाल दिया जाता है। किसी भी कारखाने में यूनियन नहीं है जिससे मालिकों को मनमानी करने की खुली छूट मिली हुई है। यहाँ काम करने वाले करीब आधे मजदूर आसपास के इलाके से हैं तो करीब आधे बिहार से आकर यहाँ काम कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश बरगदवा के आसपास ही कमरे किराये पर लेकर रहते हैं।
आन्दोलन की शुरुआत जिस अंकुर उद्योग लि. नाम की धागा मिल से हुई थी। वह 1998 में जब लगी तो वहाँ एक प्लाण्ट था, मजदूरों को निचोड़कर की गयी कमाई से आज उसमें तीन प्लाण्ट लग चुके हैं। इसका काफी माल विदेशी खरीदारों को भी सप्लाई होता है। यहाँ मजदूरों से 12 घण्टे काम लिया जाता था पर उन्हें न्यूनतम मजदूरी, ओवरटाइम, पी.एफ., ई.एस.आई., साप्ताहिक छुट्टी जैसे बुनियादी अधिकार भी नहीं दिये जाते थे। फैक्टरी के अन्दर का तापमान 90 से 100 डिग्री सेण्टीग्रेड तक पहुँच जाता था लेकिन बिजली बचाने के लिए एसी तो दूर पंखे तक नहीं चलाये जाते थे। मालिक और सुपरवाइजरों की गाली-गलौच और पैसे काट लेना रोज की बात थी।
ऐसा नहीं था कि मजदूर इस जुल्म को 11 वर्ष से चुपचाप सहन कर रहे थे। उन्होंने कई बार इसके खिलाफ आवाज उठायी, लेकिन हर बार उन्हें दबा दिया गया। पिछले साल मजदूरों ने हड़ताल कर दी और यूनियन बनाने की प्रक्रिया भी शुरू की। लेकिन मालिक ने कुछ मजदूर नेताओं को खरीदकर हड़ताल तुड़वा दी। अपने ही साथियों की गद्दारी से मजदूरों में गहरी निराशा और आक्रोश था। पिछले वर्ष दीवाली के समय मजदूरों का ग़ुस्सा फिर फूट पड़ा। बोनस के नाम पर इस कम्पनी में मजदूरों को आधा किलो लड्डू और एक पतला-सा कम्बल पकड़ा दिया जाता है। इस बार मजदूर लड्डू का डिब्बा लेकर मिल गेट से बाहर आते गये और एक-एक करके सारे लड्डू अन्दर फेंकते गये। उसी समय से मजदूरों ने गद्दार नेताओं को किनारे लगाकर फिर से आपसी एकता बनाना शुरू कर दिया। अन्दर-अन्दर आग सुलगती रही। फिर 15 जून को सभी मजदूरों ने बुनियादी सुविधाएँ दिये जाने की माँग करते हुए काम बन्द कर दिया। इसी दौरान कुछ मजदूरों ने एक जुझारू नेतृत्व की तलाश करते हुए ‘नौजवान भारत सभा’ और ‘बिगुल’ से जुड़े साथियों से सम्पर्क किया। ‘नौजवान भारत सभा’ और ‘बिगुल’ के साथियों ने फौरन उनके इस जुझारू संघर्ष का स्वागत किया और उनके कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ने के लिए उनके साथ खड़े हो गये। 15 जून को ही मजदूरों का 17 सूत्री माँगपत्र तैयार करके उसे सभी सम्बन्धित अधिकारियों तक पहुँचा दिया गया। 16 जून को 500 से ज्यादा की संख्या में मजदूरों का जुलूस बरगदवा से 10-11 किमी. की दूरी तय करके शहर में पहुँचा और उपश्रमायुक्त कार्यालय पर जोरदार प्रदर्शन किया।
डी.एल.सी. महोदय सूचना होते हुए भी उस समय दफ्तर से ग़ायब थे। फिर मजदूरों का जुलूस जिलाधिकारी कार्यालय पर पहुँचा लेकिन उनके नारे सुनकर प्रशासनिक अधिकारी पिछले दरवाजे से खिसक लिये। अगले दिन मजदूरों ने फिर बरगदवा से चलकर कमिश्नर कार्यालय पर प्रदर्शन किया। कमिश्नर के निर्देश पर मिल प्रबन्धन, मजदूर प्रतिनिधि तथा जिला प्रशासन के बीच 19 जून को वार्ता तय हुई। 19 जून को फिर सैकड़ों मजदूर नारे लगाते हुए कलक्ट्रेट पहुँचे। इस बीच 16 से 19 जून के दरम्यान मजदूरों ने शहर में जमकर पर्चे बाँटे और पोस्टर लगाये। तीन दिनों तक रोज शहर में गगनभेदी नारों के साथ सैकड़ों मजदूरों के जुलूस की ख़बरों को दबा पाना मीडिया के लिए भी नामुमकिन था। 19 जून की वार्ता में डी.एल.सी. आया ही नहीं। ये वही डी.एल.सी. है जिसने कुछ महीने पहले अपनी रिपोर्ट में मालिक को क्लीनचिट देते हुए कहा था कि फैक्टरी में श्रम कानूनों का कोई उल्लंघन नहीं हो रहा है। वार्ता में मैनेजमेण्ट मुख्य माँगों को मानने पर तैयार तो हुआ लेकिन आन्दोलन के अगुआ मजदूरों को निकालने पर अड़ गया जिससे वार्ता अधूरी रह गयी। शुरू में उसने ‘नौभास’ और ‘बिगुल’ के प्रतिनिधियों के वार्ता में शामिल होने पर भी आपत्ति उठायी लेकिन मजदूर प्रतिनिधि उनके बिना वार्ता करने को तैयार ही नहीं हुए। आखिर उसे ‘नौभास’ के प्रमोद व प्रशान्त और श्रम मामलों के वकील सुरेन्द्रपति त्रिपाठी को वार्ता में शामिल करने पर राजी होना पड़ा।
अंकुर उद्योग लि. के ही बगल में वी.एन. डायर्स एण्ड प्रोसेसर्स की धागा मिल है जो 2000 में स्थापित हुई है। यहाँ भी 300 मजदूर उन्हीं हालात में काम करते रहे हैं। यहाँ अंकुर उद्योग से थोड़ी बेहतर मजदूरी मिलती थी लेकिन काम की परिस्थितियाँ उससे भी खराब थीं। मशीनों की रफ्तार तेज करके मजदूरों से इस कदर काम लिया जाता था कि 12 घण्टे की डयूटी के बाद वे बिल्कुल बेदम हो जाते थे। इस कारखाने के मालिक दो अजितसरिया बन्धु हैं जिनके नाम तो हैं विष्णु और नारायण लेकिन मजदूर उन्हें राक्षस कहते हैं।
अंकुर उद्योग लि. के मजदूरों के साथ 23 जून की वार्ता के ठीक पहले वी.एन. डायर्स के मजदूर भी ”मजदूर-मजदूर भाई-भाई, लड़कर लेंगे पाई-पाई!” का नारा लगाते हुए आन्दोलन में शामिल हो गये। 23 जून को एक बार फिर जिलाधिकारी कार्यालय सैकड़ों मजदूरों के नारों से गूँज उठा। उस दिन हुई वार्ता में मालिकान ने झुकते हुए कहा कि अगुआ मजदूरों को बर्खास्त नहीं करेंगे, सिर्फ निलम्बित करेंगे, फिर वापस ले लेंगे। लेकिन यही बात लिखकर देने को तैयार नहीं हुआ तो दिनभर चली वार्ता फिर टूट गयी। दरअसल मालिक की चाल यह थी कि आन्दोलन की अगली कतार के मजदूरों को बाहर करके बाकी माँगें मान लेगा तो कारखाना खुल जायेगा और जब मजदूर नेतृत्वविहीन हो जायेंगे तो वह फिर से पुराने ढर्रे पर लौट जायेगा। लेकिन मजदूरों ने आपस में फूट डालने की किसी कोशिश को कामयाब नहीं होने दिया। वे अपने एक भी साथी के खिलाफ कार्रवाई के लिए तैयार नहीं थे।
इसके बाद 25 जुलाई की वार्ता से पहले 24 जुलाई की रात को मजदूरों ने पूरे बरगदवा क्षेत्र में सभाएँ कीं, पर्चे बाँटे और विशाल मशाल जुलूस निकाला। साथ ही आन्दोलन के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए शहर के नागरिकों और दूसरे मजदूरों-कर्मचारियों से भी सम्पर्क करना शुरू कर दिया। इससे प्रशासन पर समझौता कराने का दबाव बढ़ गया। आखिरकार 29 जून को हुई वार्ता में दोनों कारखानों के मैनेजमेण्ट मजदूरों की सभी प्रमुख माँगें मानने पर तैयार हो गया।
इस बीच वी.एन. डायर्स की कपड़ा मिल में भी मजदूरों के बीच सुगबुगाहट शुरू हो गयी थी। 27 जून को मिल मालिक ने कपड़ा मिल के मजदूरों की मीटिंग बुलाकर कहा कि दोनों मिलें उसकी दो ऑंखों की तरह हैं – धागा मिल के मजदूरों के साथ जो भी समझौता होगा, उसे यहाँ भी लागू किया जायेगा। लेकिन मजदूरों ने समझ लिया था कि अगर वे एक होकर नहीं लड़ेंगे तो दोनों मिलों के मजदूरों को कुछ नहीं मिलेगा। इसलिए 28 जून को कपड़ा मिल मजदूरों ने भी काम ठप कर दिया। 29 जून की वार्ता में मालिक ने धागा मिल मजदूरों की माँगें तो मान लीं लेकिन कपड़ा मिल मजदूरों को लटका दिया। उसने माँगें मानने के लिए यह शर्त लगा दी कि मजदूरों को उत्पादन बढ़ाने के उसके प्रस्ताव को मानना पड़ेगा। टालमटोल करने के बाद 4 जुलाई को फैक्टरी के अन्दर वार्ता हुई जिसमें शहर के कुछ छुटभैया गुण्डे किस्म के नेता भी मौजूद थे। मजदूरों ने उसके कार्य प्रस्ताव के जवाब में लिखकर दे दिया कि वह 18 घण्टे के काम को 8 घण्टे में कराना चाहता है जो असम्भव है। 5 जुलाई की शाम को बरसात में भीगते हुए तीनों कारखानों के मजदूरों ने पूरे बरगदवा इलाके में जबरदस्त एकता जुलूस निकाला। 6 जुलाई को डीएलसी कार्यालय में तय वार्ता में मालिक नहीं आया। फिर 9 जुलाई को वार्ता तय हुई लेकिन इसी बीच 8 जुलाई को बौखलाये मालिक ने मजदूर नेताओं पर कातिलाना हमला कर दिया। इस घटना ने मजदूरों के सामने एक बार फिर साफ कर दिया कि पुलिस-प्रशासन, सब किस तरह से उनके खिलाफ पैसेवालों का साथ देते हैं। मजदूरों पर जानलेवा हमला करने वाले मालिक के खिलाफ एफआईआर को कमजोर बनाने के लिए चिलुआताल थाने की पुलिस ने 307 (हत्या का प्रयास) की धारा ही हटा दी जबकि मालिक की ओर से 8 मजदूरों के खिलाफ धारा 307 के तहत फर्जी मुकदमा दर्ज कर लिया। बुरी तरह घायल मजदूरों का मेडिकल करते समय जिला अस्पताल का डॉक्टर बार-बार कह रहा था कि तुम लोग नाटक कर रहे हो, जबकि मालिक के आदमियों को चोट का फर्जी सर्टिफिकेट बना दिया गया।
बहरहाल, ऐसी किसी भी कोशिश से मजदूर न डरे, न हताश हुए बल्कि उनकी एकजुटता और ठोस हो गयी। मजदूरों ने कमिश्नर और डीआईजी से मिलकर अजित सरिया की गिरफ्तारी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। लेकिन कमिश्नर द्वारा जिलाधिकारी को निर्देश देने के बावजूद उसे गिरफ्तार नहीं किया गया, क्योंकि गोरखपुर के भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ सहित स्थानीय नेताओं का उस पर वरदहस्त था। इस बीच मजदूर नेताओं पर हमले के विरोधा में गोरखपुर शहर के कई संगठनों और बुद्धिजीवियों ने बयान दिये तथा अधिकारियों को फोन करके भी आक्रोश जताया। दिल्ली से मेट्रो कामगार संघर्ष समिति, बादाम मजदूर यूनियन, जागरूक नागरिक मंच, बिगुल मजदूर दस्ता आदि संगठनों ने हमले के विरोध में उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री तथा जिला प्रशासन के अधिकारियों को फैक्स भेजकर मिलमालिक को तत्काल गिरफ्तार करने की माँग की।
आखिरकार 13 जून को काफी हीलाहवाली के बाद मालिक वार्ता में आया और काम के घण्टे आठ करने, सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी देने, वेतन सहित साप्ताहिक और अर्जित अवकाश देने, 24 घण्टे पहले वेतन-स्लिप देने, जरूरी सुरक्षा उपकरण मुहैया कराने तथा महँगाई भत्ता व बोनस का नियम से भुगतान करने पर राजी हुआ।
पिछले कई वर्षों से गोरखपुर ही नहीं, नोएडा और दिल्ली सहित देश भर में मजदूर अधिकांश लड़ाइयाँ हारते रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है उनका बिखराव। जो पुरानी यूनियनें हैं वे ज्यादातर बड़े कारखानों के सफेदपोश मजदूरों तक सिमट चुकी हैं। लाखों छोटे-छोटे कारखानों में बेहद कम मजदूरी पर खट रहे नियमित, दिहाड़ी, ठेका, तरह-तरह के टेम्परेरी और कैजुअल मजदूरों के हितों की ये नुमाइन्दगी ही नहीं करतीं – जबकि ये मजदूर देश की कुल मजदूर आबादी के 95 प्रतिशत से भी ज्यादा हैं। सबसे बर्बर शोषण और उत्पीड़न के शिकार इन करोड़ों मजदूरों को किस्म-किस्म के दल्ले, भ्रष्ट यूनियन नेता और चुनावी पार्टियों के स्थानीय नेता भरमाते-बरगलाते रहते हैं। सरकारी नीतियाँ मिल-मालिकों को लूट की खुली छूट देती हैं। लेबर कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट-सुप्रीम कोर्ट तक में ज्यादातर फैसले मालिकों के पक्ष में और मजदूरों के खिलाफ होते हैं। पुलिस-प्रशासन, नेता-अफसर सब मालिकों के पक्ष में एक हो जाते हैं। अखबार और टीवी भी उन्हीं की भाषा बोलते हैं।
ऐसे में ज्यादातर मजदूर भी मान बैठे हैं कि हमें तो इन्हीं हालात में नर्क के ग़ुलामों की जिन्दगी बसर करते हुए अपनी हड्डियाँ निचोड़कर मालिक की तिजोरी भरते रहना है। सच तो यह है कि कुछ महीने पहले तक इन तीन कारखानों के मजदूर भी बहुत पस्ती के शिकार थे – लेकिन मालिकान ने पीछे धकेलते-धकेलते उन्हें इस कदर कोने में पहुँचा दिया कि अब और पीछे नहीं हटा जा सकता था। तब उन्होंने संगठित होकर लड़ने का फैसला किया। उनके पास संगठित संघर्ष का ज्यादा अनुभव भी नहीं था लेकिन वे अपनी एकजुटता की ताकत के बूते पर लड़े और जीते।
अब मजदूरों को अपने संगठित होने के इस सिलसिले को अगली मंजिल में ले जाना होगा। वे यहीं पर रुक नहीं सकते। बरगदवा से लेकर गीडा, सहजनवा ही नहीं पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश के मेहनतकशों को अपने-अपने कारखानों-इलाकों में एकजुट और संगठित होने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। दलाल, मक्कार, नकली, भूजाछोर मजदूर नेताओं को किनारे लगाकर अपने जुझारू संगठन बनाने होंगे और एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा। अगर मजदूर एक रहेंगे तो मालिक-मैनेजमेंट और उनके पिट्ठू अफसरान उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे। अपने हक की लड़ाई वे शानदार तरीके से जीतेंगे। गोरखपुर के इस सफल मजदूर संघर्ष का यही सबसे बड़ा सबक है।
बिगुल, जुलाई 2009
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एका ही श्रमजीवियों का सब से बड़ा हथियार है भारत और राज्यों की सरकारों के लिए सब से शर्मनाक बात यह है कि श्रमिकों को कानूनी अधिकार लागू कराने के लिए संघर्षों में उतरना पड़ रहा है।