पंजाब सरकार ने बनाये दो ख़तरनाक काले कानून
पूँजीवादी हुक्मरानों को सता रहा है जनान्दोलनों का डर
लखविन्दर
देश की पूँजीवादी व्यवस्था के लिए अब जनतन्त्र-जनतन्त्र का खेल खेलना कितना कठिन होता जा रहा है इसका अन्दाज़ा पंजाब विधानसभा में अक्तूबर में पास किये गये दो बेहद ख़तरनाक कानूनों से लगाया जा सकता है। ये कानून जनता की अन्याय के ख़िलाफ आवाज़ बुलन्द करने की रही सही आज़ादी पर भी प्रतिबन्ध लगाने की एक कोशिश है। साफ दिखायी देता है कि देश के पूँजीवादी हुक्मरान अब जनता को कुछ भी बेहतर देने के काबिल नहीं रह गये हैं। जनान्दोलनों का भूत उनका हर वक्त पीछा कर रहा है। आइये, ज़रा ख़ुद ही अन्दाज़ा लगाइये कि देश के हुक्मरान आने वाले दिनों से कितने भयाक्रान्त हैं।
पंजाब सरकार ने जो ये दो काले कानून पास किये हैं, उनमें से पहला है – ‘पंजाब सार्वजनिक और निजी जायदाद नुकसान (रोकथाम) कानून 2010’, ज़ो यह कहता है कि अब किसी भी जनसंगठन या जनसभा, किसी शान्तिपूर्ण प्रदर्शन, मार्च या जुलूस आयोजित करने से पहले ज़िला मजिस्ट्रेट या कमिश्नर से अनुमति लेनी ज़रूरी है। बिना अनुमति ऐसा करना ग़ैरकानूनी होगा और आयोजकों को 5 वर्ष की सज़ा और 30,000 रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है। इस तरह अब पंजाब में यह कानून जुलूसों-प्रदर्शनों को ज़िला मजिस्ट्रेट या पुलिस कमिश्नर की इच्छा पर छोड़ देता है। वे अनुमति दें या न दें यह उनकी मर्ज़ी होगी। अगर वे अनुमति दे भी देते हैं तो भी सम्बन्धित पुलिस अफसर प्रदर्शन का रूट व अन्य शर्तें तय करेगा। ये शर्तें क्या होंगी? कानून में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है। स्पष्ट ही है कि ये शर्तें प्रदर्शन में शामिल होने वालों की संख्या, तारीख़, समय, स्थान, झण्डों, नारों, बैनरों, भाषणों आदि से सम्बन्धित होंगी। प्रदर्शन के दौरान होने वाली किसी भी तरह की गड़बड़ी का ज़िम्मा आयोजकों पर डाल दिया गया है। उन्हें लिखित गारण्टी देनी होगी कि प्रदर्शन शान्तिपूर्ण होगा। आयोजकों को अपने वालण्टियर तैनात करने होंगे। अगर किसी सार्वजनिक या निजी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचता है तो आयोजकों, वालण्टियरों, और अन्य प्रदर्शनकारियों को तीन वर्ष की कैद और 20,000 रुपये जुर्माना हो सकता है। साथ ही, पहले पुलिस को रैलियों, प्रदर्शनों, जुलूसों आदि की वीडियोग्राफी करने की कानूनी मनाही थी लेकिन अब उन्हें यह अधिकार भी दे दिया गया है।
इस विशेष हथियारबन्द ग्रुप का डायरेक्टर किसी भी अन्य महकमे के अफसर या कर्मचारी से सहायता ले सकता है। अगर वह अफसर या कर्मचारी मदद देने से इनकार करता है तो वह सिविल सर्विसेज़ रुल्स के तहत सज़ा का भागीदार होगा।
दूसरा कानून ‘पंजाब विशेष सुरक्षा कानून 2010’ है। यह कानून ”राष्ट्र-विरोधी” ताकतों से निपटने के लिए बनाया गया है। राष्ट्र-विरोधी होने की परिभाषा में यह कानून कहता है कि ग़ैरकानूनी कार्रवाई या ग़ैरकानूनी कार्रवाई को प्रोत्साहित करने वाली कार्रवाई राष्ट्र-विरोधी कार्रवाई है! यानी जिसने कानून तोड़ा या कानून तोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया वह देशद्रोही हो जायेगा! इस कानून के तहत पंजाब में एक विशेष हथियारबन्द ग्रुप (फोर्स) खड़ी की जायेगी, जो इन ”राष्ट्र विरोधियों” को काबू करेगी। ये विशेष हथियारबन्द ग्रुप कभी भी किसी भी नागरिक को झूठा केस बनाकर या संगठनों पर झूठे केस बनाकर राष्ट्र-विरोधी करार दे सकता है और मुकदमे में फँसा सकता है। इस कानून के तहत वह व्यक्ति जिसके जीवन को बहुत ख़तरा है, उसे और उसके नजदीकी परिवार को सुरक्षा मुहैया करवायी जायेगी। सुरक्षा के नाम पर अगर उपरोक्त विशेष ग्रुप के किसी आदमी द्वारा किसी को गोली भी मार दी जाती है तो उस पर किसी प्रकार का कोई मुकदमा नहीं चलाया जायेगा।
अब आप अन्दाज़ा लगाइये कि पंजाब में क्या होने जा रहा है। क्या यह अब बहस का मुद्दा रह गया है कि ऐसे कानून शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिए नहीं, सुशासन या साधारण जनता के जानमाल की रक्षा के लिए नहीं बल्कि लुटेरी अमीरशाही के हित में बनाए जाते हैं। क्या पहले ही पुलिस के घोर जनविरोधी चरित्र के बारे में किसी को कोई शक था?पहले ही कानूनी और उससे भी अधिक ग़ैरकानूनी ढंग से जनता पर पुलिस जो ज़ोर-ज़ुल्म बरपा कर रही है क्या वही अपनेआप में कम था? ये कानून ज़ोर-ज़ुल्म को कानूनी रूप देने के सिवा और कुछ नहीं करते। इन कानूनों के ज़रिये पुलिस को जनता का दमन करने के लिए बर्बर फौजी ताकत प्रदान की जा रही है। इस कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति अन्याय के ख़िलाफ आवाज़ उठाना चाहता है तो उसे अन्याय करने वालों से ही अनुमति लेनी होगी! अगर अनुमति नहीं ली जाती तो उसे देश-विरोधी, देशद्रोही करार दिया जा सकता है!!
उदाहरण के तौर पर अगर पुलिस किसी को नाजायज़ तौर पर हिरासत में लेती है तो इसके ख़िलाफ प्रदर्शन के लिए लोगों को पुलिस से ही आज्ञा लेनी होगी। अगर आप बिना आज्ञा पुलिस के इस अन्याय के ख़िलाफ प्रदर्शन करते हैं तो आप देश विरोधी हैं। साफ है कि ग़रीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, महँगाई की शिकार मेहनतकश जनता को अपनी लूट, शोषण, दमन,अन्याय के ख़िलाफ एकजुट होकर अपने आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने से रोकने के लिए ही ये काले कानून बनाये गये हैं। इस मुनाफाख़ोर व्यवस्था के संकट इतने बढ़ चुके हैं कि वह जनतन्त्र का मुखौटा भी उतार फेंकने के लिए विवश हो गयी है।
यह व्यवस्था उत्पीड़ित जनता को अपनी असन्तुष्टि, आक्रोश व्यक्त करने के जनतान्त्रिक तरीके भी नहीं देना चाहती। लेकिन इतिहास बताता है कि काले कानूनों के द्वारा जनता की संगठित इच्छाशक्ति को कभी दबाया नहीं जा सका है। लाठी, गोली,जेल से कभी भी मेहनतकश लोगों की आवाज़ दबाई नहीं जा सकती। पर इतिहास से हुक्मरानों ने शायद आज तक कोई सबक नहीं सीखा है!
इन घोर जनविरोधी कानूनों के ख़िलाफ हर इन्साफपसन्द आदमी को आवाज़ बुलन्द करनी होगी।
मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2010
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