छँटनी के ख़िलाफ कोरिया के मजदूरों का बहादुराना संघर्ष
कपिल स्वामी
मन्दी के दौर में दुनिया भर में छँटनी-तालाबन्दी का दौर जारी है। लेकिन मज़दूर भी चुपचाप इसे झेल नहीं रहे हैं। जगह-जगह वे इसके ख़िलाफ जुझारू तरीके से लड़ रहे हैं। कई देशों में मज़दूरों ने छँटनी के विरोध में फैक्ट्री पर ही कब्ज़ा कर लिया और पुलिस तथा सशस्त्र बलों से जमकर टक्कर ली।
इसी कड़ी में पिछले दिनों कोरिया की एक ऑटोमोबाइल कंपनी द्वारा नौकरी से निकाले जाने पर उसके मजदूरों ने फैक्ट्री पर कब्जा कर लिया और 77 दिनों तक सशस्त्र बलों का डटकर सामना किया। 6 अगस्त 2009 को दक्षिणी कोरिया की स्यांगयोंग मोटर कम्पनी में 77 दिनों तक चले संघर्ष के बाद मजदूर एक समझौते के तहत बाहर आये। सरकार की पूरी ताकत का उन्होंने मुकाबला किया और उसे समझौते के लिए बाध्य किया।
दरअसल इस कंपनी ने पुनर्गठन करने का बहाना बनाकर इस संयंत्र के 970 मजदूरों को नौकरी से निकालने का आदेश तीन महीने पहले दिया था। इसके विरोध में मजदूरों ने 22 मई 2009 को कंपनी पर कब्जा जमा लिया। इन 77 दिनों के दौरान मजदूरों ने स्थानीय पुलिस और फौज का बहादुरी के साथ जमकर मुकाबला किया। आखिर में पुलिस ने चारों ओर से घेरेबन्दी करके हेलीकॉप्टर से गोलियाँ बरसायीं। लेकिन इससे भी डरे बिना मज़दूरों ने खुद बनाये हुए पेट्रोल बमों से उसका जवाब दिया। हमले में कई मज़दूर घायल भी हुए। आखिरकार सरकार को झुकते हुए आखिर तक डटे रहे मज़दूरों को काम पर वापस रखने का समझौता करना पड़ा। बाहर आये एक बूढ़े मज़दूर ने कहा कि हालाँकि हम कोई अच्छा समझौता तो नहीं कर पाये लेकिन मुझे गर्व इस बात का है कि हम बहादुरी से लड़े…।
दक्षिण कोरिया को पूँजीवाद समर्थक एक मॉडल के रूप में पेश करते रहे हैं। खासकर अमेरिका दक्षिण कोरिया को एक ऐसे उदाहरण के रूप में दिखाता है कि पूँजीवादी नीतियों का समर्थक होने के चलते उसने कितनी जल्दी तरक्की की है। लेकिन दक्षिण कोरिया की तरक्की का झूठ बहुत पहले ही सामने आ चुका है। आज वहाँ की कई बड़ी-बड़ी कम्पनियां बर्बादी की कगार पर हैं। कई बड़ी कम्पनियों के शीर्ष अधिकारी और सरकार के मंत्री भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में फँसे हुए हैं। अनेक दक्षिण कोरियाई कंपनियों को विदेशी पूँजीपतियों द्वारा अधिगृहित किया जा रहा है या खरीदा जा रहा हैं। वहाँ चन्द मुट्ठी भर ऊपर के तबके की तरक्की हुई है। आम मेहनतकश आबादी में भयंकर असन्तोष व्याप्त है। वर्तमान मन्दी की वजह से नौकरी से निकाले जाने से यह असन्तोष लगातार बढ़ता जा रहा है।
दक्षिण कोरिया में जुझारू मजदूर आन्दोलनों का लम्बा इतिहास रहा है। कोरियाई मजदूर खासतौर पर अपने जुझारूपन के लिए जाने जाते रहे हैं। वहां दिसम्बर ’96 से लेकर जनवरी ’97 तक हुई व्यापक पैमाने की आम हड़ताल ने सरकार को झुका दिया था और तब उसे मजदूरों की कई माँगों को मानना पड़ा था। इस देश के मजदूर आन्दोलन को हमेशा छात्रों-नौजवानों का समर्थन और सक्रिय सहयोग मिलता रहा है। इसी तरह छात्रों-नौजवानों के आन्दोलनों में मजदूर कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ते रहे हैं।
राजधानी सोल से 40 मील दूर दक्षिण में स्थित स्यांगयोंग मोटर कंपनी दक्षिण कोरिया की पाँचवीं सबसे बड़ी वाहन निर्माता कंपनी है। 2004 में इस कंपनी के काफी शेयर चीनी कंपनी शंघाई ऑटोमोटिव इंडस्ट्रीज़ द्वारा खरीद लिये गये थे। मंदी के चलते कम्पनी काफी लंबे समय से बिक्री कम होने और कर्ज बढ़ते जाने का बहाना बनाकर मजदूरों को निकालने की कोशिश कर रही थी। जनवरी में कंपनी ने दिवालिया होने से सुरक्षा देने के लिए सरकार के पास अर्जी दी थी और तब से 2000 मजदूर स्वैच्छिक रूप से नौकरी छोड़कर चले गये थे।
मई में शेष बचे लगभग 970 मजदूरों को भी नौकरी से निकालने का आदेश देते ही मजदूर भड़क उठे। मजदूरों ने 22 मई को कंपनी पर कब्जा करना शुरू कर दिया था। शुरुआत में कंपनी और सरकार ने बातचीत के जरिये मजदूरों को बहलाने की कोशिश की। लेकिन उचित समाधान न होने तक कब्जा न छोड़ने की मजदूरों की बात पर सरकार ने भयंकर दमन का सहारा लेना शुरू किया। सरकार ने कंपनी की पानी की आपूर्ति काट दी। कंपनी परिसर को घेरकर खाने-पीने का सामान अंदर पहुँचाने पर रोक लगा दी। लेकिन मज़दूरों के समर्थकों ने उन्हें खाना-पानी पहुँचाने के रास्ते निकाल लिये। कंपनी ने किराए के गुण्डों और कंपनी समर्थक मजदूरों के जरिये कब्ज़ा खत्म कराने की कई कोशिशें कीं जो नाकाम रहीं।
इसके बाद सरकार ने बर्बर दमन का सहारा लिया। कंपनी परिसर को युद्ध-क्षेत्र में तब्दील कर दिया गया। चारदीवारी से और हेलीकॉप्टर के जरिए सशस्त्र हमला किया गया जिसका मजदूरों ने मुँहतोड़ जवाब दिया। मजदूरों ने बम फेंककर पुलिस कमाण्डो को अंदर आने से रोके रखा। इस दमन ने उल्टे मजदूरों की एकजुटता को और मजबूत कर दिया। हमला झेल रहे मजदूरों की एकता फौलादी और मजबूत इरादों से लैस होती गयी। आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा और उसने लड़ रहे मजदूरों को काम पर रखने का आश्वासन दिया। कब्ज़ा समाप्त होने पर बाहर निकले मजदूरों का इस संघर्ष के समर्थकों और उनके परिवार के लोगों ने हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया। इस फौरी जीत पर मजदूरों की जीत के नारे लगाये गये और क्रान्तिकारी गीत गाये गये।
दुनियाभर में आज मजदूर आंदोलन निराशा के भंवर में डूब-उतरा रहा है। इतिहास के इस छोटे से कालखण्ड को ही कुछ लोग हमेशा बना रहने वाला सच मान लेते हैं। स्यांगयोंग कंपनी की घटना यह बताती है कि आज की पस्तहिम्मती के माहौल में भी मज़दूर जुझारू ढंग से लड़ सकते हैं और एकजुटता के दम पर पुलिस-फौज का भी मुकाबला कर सकते हैं।
अगर बिना किसी नेतृत्व के मज़दूर स्वत:स्फूर्त ढंग से इस तरह लड़ सकते हैं तो सोचा जा सकता है कि अगर क्रान्तिकारी विचारधारा से लैस क्रान्तिकारी पार्टी का नेतृत्व हो तो मज़दूर वर्ग कितनी सफल और लम्बी लड़ाइयाँ लड़ सकता है।
बिगुल, अगस्त 2009
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