यूपीए सरकार का सादगी ड्रामा

नमिता

यूपीए सरकार ने इन दिनों जनता की नजरों में धूल झोंकने के लिए एक नया शगूफा छोड़ा है। यूपीए की चेयरमैन सोनिया गांधी, वित्ता मन्त्री प्रणव मुखर्जी और कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी इस बात का जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं कि यूपीए के पदाधिकारी, सरकार के मन्त्री तथा सांसद अपने खर्चों में कटौती करें, सादगी भरा जीवन बितायें ताकि इससे जो पैसा बचे उसका इस्तेमाल सूखाग्रस्त इलाकों की जनता की मदद करने में किया जा सके।

विदेश मन्त्री एस एम कृष्णा तथा विदेश राज्य मन्त्री शशि थरूर पिछले लम्बे समय से दिल्ली के महँगे पाँच सितारा होटलों में रह रहे थे। लेकिन वित्तामन्त्री के अनुरोध पर उन्हें पाँच सितारा होटलों को छोड़कर सरकारी निवासों में डेरा डालना पड़ा। इन दोनों मन्त्रियों ने अपनी रिहाइश के सारे खर्च को सरकारी खजाने से लेने की कोशिश भी की, लेकिन कई कारणों से जब वे इसमें कामयाब नहीं हो सके, तो इन दोनों महानुभावों ने अपने पाँच सितारा होटलों के अद्धयाशीपूर्ण रिहाइश को छोड़ने को, आम जनता के लिए की गयी कुर्बानी के रूप में पेश किया।

उधर सोनिया गांधी ने हवाई जहाज में महँगे बिजनेस क्लास में सफर की बजाय सस्ते इकॉनमी क्लास में सफर करके और राहुल गांधी ने दिल्ली से लुधियाना तक का सफर हवाई की बजाय एअरकण्डीशण्ड शताब्दी ट्रेन में करके ख़ूब वाहवाही लूटी और इसे मीडिया में ख़ूब प्रचारित किया गया।

लुटेरे हुक्मरान हमेशा जनता की ऑंखों में धूल झोंकने में व्यस्त रहते हैं, क्योंकि शोषित- उत्पीड़ित जनता पर सिर्फ डण्डे के दम पर ही हुकूमत नहीं की जा सकती। इसलिए उसे मूर्ख बनाना, उसकी चेतना को कुन्द करना बहुत जरूरी होता है। और इस काम को अंजाम देती हैं – हुक्मरानों की राजनीतिक पार्टियाँ, उनका मीडिया और न्याय पालिका जो आम जनता के लिए दरअसल अन्याय पालिका ही होती है।

जनता को मूर्ख बनाने के लिए हुक्मरान समय-समय पर नये-नये शगूफे छोड़ते रहते हैं। कुछ साल पहले ‘न्यायिक सक्रियता’ की बहुत चर्चा हुई थी। कुछ भ्रष्ट अफसरों को अदालतों से सजा सुनाकर यह भ्रम पैदा करने की कोशिश की गयी थी कि अब देश से भ्रष्टाचार, अन्याय का नामो-निशान मिटा दिया जायेगा। लेकिन चन्द महीनों में ही ‘न्यायिक सक्रियता’ के इस गुब्बारे की हवा निकल गयी।

कुछ साल पहले ही तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने संसदीय चुनाव प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार के समूल नाश का झण्डा उठाया था। मीडिया में देश के ‘प्रबु(‘ मध्‍यवर्ग में इसकी ख़ूब चर्चा हुई। शेषन हमारे ‘प्रबुद्ध’ मध्‍यवर्र्गीय बुद्धिजीवियों के महानायक बन गये। लेकिन कुछ समय बाद ही न तो टी एन शेषन दिखायी दिये और न ही उनका झण्डा। शासक वर्ग इस तरह के और भी ड्रामे करता रहता है – मसलन भ्रष्टाचार मिटाओ ड्रामा, ग़रीबी हटाओ ड्रामा, बेरोजगारी हटाओ ड्रामा आदि। और इन दिनों यह नया ड्रामा यानी सादगी ड्रामा।

और यूपीए सरकार के इस सादगी ड्रामे की पोल खुलने भी लगी है। कांग्रेस के युवा लेफ्टीनेण्ट राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्प्रफेंस में जोर-शोर से इस बात की वकालत की थी कि ‘जनता के’ नेताओं को सादा जीवन बिताना चाहिए और इसे निजी उदाहरण से साबित करने के लिए उन्होंने दिल्ली से लुधियाना तक का सफर भी हवाई जहाज की बजाय ट्रेन में किया। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही उन्होंने अपने तमिलनाडु दौरे पर 1 करोड़ से भी ज्यादा रुपये उड़ा दिये।

उधर विदेश राज्य मन्त्री शशि थरूर ने हवाई जहाज की इकॉनमी क्लास में सफर करने का मजाक उड़ाते हुए इकॉनमी क्लास को मवेशी क्लास कहा। हालाँकि देश की आम ग़रीब और यहाँ तक कि मध्‍यवर्गीय जनता भी हवाई जहाज में सफर करने की सोच भी नहीं सकती। हवाई जहाज की इकॉनमी क्लास में भी अमीरजादे ही सफर कर सकते हैं।

अगर मन्त्री जी को उनके साथ सफर करना भी मवेशियों के साथ सफर करना लगता है तो देश की आम जनता से वह किस कदर नफरत करते होंगे, इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।

और वैसे भी अभी तक जिन इकॉनमी क्लासों में राहुल गांधी ने सफर किया है, उनमें उनके लिए अगल-बगल की सीटें खाली करवा दी गयी थीं। इस तरह उनका इकॉनमी क्लास का सफर बिजनेस क्लास के सफर से भी ज्यादा महँगा पड़ा। जाहिर है कि इन नेताओं का उद्देश्य जनता के पैसे की किफायत नहीं बल्कि इकॉनमी क्लास में सफर के बहाने मीडिया में प्रचार के जरिये वाहवाही लूटना है।

इस सादगी ड्रामा के सभी किरदार दरअसल भारतीय पूँजीपति वर्ग के सेवक हैं। पूँजीपति वर्ग देश की 80 फीसदी जनता के ख़ून पसीने की कमाई लूटकर ऐशो-आराम की जिन्दगी बिताता है और जनता की इस लूट का एक हिस्सा रिश्वत के रूप में अपने सेवकों को भी देता है।

जनता की लूट में से हिस्सा लेकर इन सेवकों की जमात भी इस कदर अय्याशी भरा जीवन बिताती है कि पुराने समय के राजा-महाराजा भी शरमा जायें। सांसदों-विधायकों को मिलने वाली तनख्वाहें भले हजारों में हों, लेकिन इन्हें लाखों रुपये तरह-तरह के भत्तो के रूप में मिलते हैं। करोड़ों रुपये सालाना अपने चुनाव क्षेत्रों के ‘विकास’ के लिए मिलते हैं, जिसे ये नेता डकार जाते हैं। इनके बंगलों के रखरखाव तथा नौकरों की फौज पर ही हर महीने लाखों रुपये खर्च होते हैं।

दरअसल हमारे यहाँ पूँजीवादी राजनीति एक बहुत ही मुनाफादायी धन्धा है। इसमें निवेशित पूँजी पर मुनाफे की दर बहुत ज्यादा होती है, इसलिए नेताओं की दिलचस्पी सिर्फ और सिर्फ धन इकट्ठा करने में ही रहती है।

देश के संसद और विधानसभाओं में पहुँचने वाले सभी करोड़पति, अरबपति हैं, तो ऐसे में इन नेताओं से सादगी की उम्मीर कैसे की जा सकती है।

पूँजीपतियों द्वारा की जा रही जनता की लूट पर पर्दा डालने के लिए ये नेता लोगों को मूर्ख बनाने की फिराक में रहते हैं। लेकिन जनता को हमेशा-हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। एक दिन शोषित-उत्पीड़ित जनता उठेगी और उस मंच को ही उखाड़ फेंकेगी, जिस पर देश के हुक्मरान तरह-तरह के ड्रामे करते रहते हैं।

बिगुल, अक्‍टूबर 2009


 

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