देश के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अभूतपूर्व सैन्य आक्रमण शुरू करने की भारत सरकार की योजना के ख़िलाफ ज्ञापन

प्रति

डॉ. मनमोहन सिंह
प्रधानमन्त्री, भारत सरकार,
साउथ ब्लॉक, रायसीना हिल,
नई दिल्ली,

हम भारत सरकार द्वारा आन्‍ध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, महाराष्ट्र, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल राज्यों के आदिवासी (मूल निवासी) बहुल इलाकों में सेना और अर्द्धसैनिक बलों के अभूतपूर्व हमले शुरू करने की योजना को लेकर बेहद चिन्तित हैं।

कथित तौर पर इस हमले का लक्ष्य इन इलाकों को माओवादी विद्रोहियों के प्रभाव से ”मुक्त” कराना है। इस तरह के सैन्य अभियान से उन क्षेत्रों में रहने वाले लाखों ग़रीब लोगों का जीवन और आजीविका खतरे में पड़ जायेंगे, जिसके परिणामस्वरूप आम नागरिकों का बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा और कठिनाइयाँ बढ़ेंगी एवं उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा। विद्रोह के प्रभाव को खत्म करने के प्रयास के नाम पर सबसे ग़रीब भारतीय नागरिकों की धर-पकड़ के प्रतिकूल और खतरनाक परिणाम होंगे। अर्द्धसैनिक बलों द्वारा चलाये जा रहे अभियान, जिन्हें सरकारी एजेंसियों द्वारा संगठित और वित्तापोषित विद्रोह-विरोधी (काउण्टर इन्सर्जेन्सी) मिलीशिया की सहायता मिल रही है; छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में पहले ही गृहयुद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न कर चुके हैं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और हजारों विस्थापित हो गये हैं। प्रस्तावित सैन्य आक्रमण से न केवल आदिवासियों में ग़रीबी, भुखमरी, अपमान और असुरक्षा बढ़ेगी, बल्कि यह और बड़े हिस्से में फैल जायेगी।

1990 के दशक के आरम्भ से भारतीय राज्य के नीतिगत ढाँचे में आये नवउदारवादी बदलाव के बाद से बढ़ती राज्य प्रायोजित हिंसा के कारण भारत की अधिकांश आदिवासी आबादी भीषण ग़रीबी में रसातल का जीवन जीने के लिए अभिशप्त है।

पहले ग़रीबों का जंगल, जमीन, नदियों, चरागाह, गाँव के तालाब और साझा सम्पत्ति वाले संसाधनों पर जो भी थोड़ा-बहुत अधिकार था, वे भी विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) और खनन, औद्योगिक विकास, सूचना प्रौद्योगिकी पार्कों आदि से सम्बन्धित अन्य ”विकास” परियोजनाओं की आड़ में भारत राज्य के लगातार निशाने पर हैं। जिस भौगोलिक क्षेत्र में सरकार द्वारा सैन्य या अर्द्ध-सैनिक हमले करने की योजना है, वहाँ खनिज, वन सम्पदा और पानी जैसे प्रचुर प्राकृतिक स्रोत हैं, और ये इलाके बड़े पैमाने पर अधिग्रहण के लिए अनेक कॉरपोरेशनों के निशाने पर रहे हैं। विस्थापित और सम्पत्तिविहीन किये जाने के खिलाफ स्थानीय मूल निवासियों के प्रतिरोध के कारण कई मामलों में सरकार के समर्थन प्राप्त कॉरपोरेशन इन क्षेत्रों में अन्दरूनी भाग तक जाने वाली सड़कें नहीं बना सके हैं। हमें डर है कि यह सरकारी हमला इन कॉरपोरेशनों के प्रवेश और काम करने को सुगम बनाने के लिए और इस क्षेत्र के प्राकृतिक स्रोतों एवं लोगों के अनियन्त्रित शोषण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए ऐसे लोकप्रिय प्रतिरोधों को कुचलने का प्रयास भी है। बढ़ती असमानता और सामाजिक वंचना तथा ढाँचागत हिंसा की समस्याएँ, और जल-जंगल-जमीन से विस्थापित किये जाने के खिलाफ ग़रीबों और हाशिये पर धकेल दिए गये लोगों के अहिंसक प्रतिरोध का राज्य द्वारा दमन किया जाना ही समाज में गुस्से और उथल-पुथल को जन्म देता है एवं ग़रीबों द्वारा राजनीतिक हिंसा का रूप अख्तियार कर लेता है। समस्या के स्रोत पर धयान देने के बजाय, भारतीय राजसत्ता ने इस समस्या से निपटने के लिए सैन्य हमला शुरू करने का निर्णय लिया है : ग़रीबी को नहीं ग़रीब को खत्म करो, भारत सरकार का छिपा हुआ नारा जान पड़ता है।

हमारा मानना है कि यदि सरकार ने लोगों की परेशानियों पर धयान दिये बिना अपनी ही जनता के दमन का प्रयास किया, तो इससे भारतीय लोकतन्त्र पर कुठाराघात होगा। ऐसे प्रयासों की अल्पकालिक सैन्य सफलता भले ही बेहद सन्दिग्ध है, लेकिन जैसा कि पूरी दुनिया में असंख्य विद्रोही आन्दोलनों के मामले में देखा गया है, जनसाधारण पर टूट पड़ने वाली तकलीफों और तबाही के कहर के बारे में कोई सन्देह नहीं है। हम भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह तुरन्त सैन्य बलों को वापस बुलाये और ऐसे सैन्य अभियान चलाने की योजनाओं पर रोक लगाये जिनसे गृहयुद्ध भड़कने की सम्भावना है, क्योंकि इससे भारतीय आबादी के ग़रीब और सर्वाधिक शोषित तबकों की तकलीफें और बढ़ जायेंगी तथा कॉरपोरेशनों द्वारा उनके संसाधनों की लूट का रास्ता साफ हो जायेगा।

हस्ताक्षरकर्ता –

अरुन्धती राय, अमित भादुड़ी, सन्दीप पाण्डे, प्रशान्त भूषण, मनोरंजन मोहन्ती, गौतम नवलखा, सुमन्त बैनर्जी, कोलिन गोंजाल्वेस, स्वप्न बनर्जी-गुहा, मधु भादुड़ी, अरुन्धति धुरू, नंदिनी सुन्दर, अरविन्द केजरीवाल, गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक, हावर्ड जिन, जॉन बेलामी फॉस्टर, डेविड हार्वे, महमूद ममदानी, गिल्बर्ट अचकार, कात्यायनी, सत्यम, रामबाबू, अभिनव सिन्हा, कमला पाण्डेय, शकील सिद्दीकी, वीरेन्द्र यादव, राहुल दारापुरी, सी.बी.सिंह, जी.पी. भट्ट, कामतानाथ, गिरीशचन्द्र श्रीवास्तव, रवीनद्र वर्मा, नरेश सक्सेना, संजय श्रीवास्तव, सुशील दोषी, अ. रतन, सुखविन्दर, राजविन्दर, लखविन्दर, तपीश मैंदोला, मीनाक्षी, शाकम्भरी, विमला सक्करवाल, संदीप शर्मा, कपिल स्वामी, जयपुष्प, शिवानी कौल, शिवार्थ, आशीष, अजय स्वामी

इस ज्ञापन पर अब तक देश भर के हजारों बुद्धिजीवी, और सामाजिक कार्यकर्ता हस्ताक्षर कर चुके हैं…

बिगुल, अक्‍टूबर 2009


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments