पंजाब में भी जनता बदहाल, नेता मालामाल
विधायकों-मन्त्रियों के वेतन-भत्तों में भारी बढ़ोत्तरी की तैयारी
लखविन्दर
पंजाब सरकार खजाना खाली होने की दुहाई दे रही है और जनता पर तरह-तरह के टैक्स लगाने की तैयारी कर रही है। वहीं पंजाब विधानसभा के विधायकों के वेतन, भत्तों तथा अन्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की तैयारी की जा रही। सभी पार्टियाँ आपस में चाहे जितना भी लड़ें-झगड़ें, लेकिन इस मुद्दे पर सब एक हैं। 11 जुलाई को जब पंजाब विधानसभा में विधायकों के वेतन, भत्ते तथा अन्य सहूलियतों को बढ़ाने का प्रस्ताव रखने वाली रिपोर्ट पेश की गयी तो एक भी पार्टी या विधायक ने विरोध नहीं किया। रिपोर्ट में मुख्यमन्त्री, मन्त्रियों, डिप्टी मन्त्रियों, विरोधी पक्ष की नेता, मुख्य संसदीय सचिवों, स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के वेतनों और भत्तों में भी बढ़ोत्तरी करने की सिफ़ारिश की गई है।
इस रिपोर्ट के अनुसार हर विधायक को मौजूदा तनख़्वाहों और सहूलियतों के मुकाबले डेढ़ गुना अधिक सहूलियतें और पैसा मिलेगा। हर विधायक का वेतन 4000 से बढ़ाकर 10,000 रुपये करने का प्रस्ताव है। दैनिक भत्ता 500 की जगह 1000 रुपये हो जायेगा। इलाका भत्ता 8000 से बढ़ाकर 15,000 रुपये महीना करने की सिफ़ारिश की गई है। गाड़ी के लिए प्रति किलोमीटर 6 रुपये की जगह 12 रुपये खर्चा मिला करेगा। पहले मकान खरीदने के लिये विधायक को 10 लाख तक का कर्ज मिलता है वह 40 लाख कर दिया जायेगा। कार के लिए 6 लाख तक का कर्ज मिलता है वह 10 लाख कर दिया जायेगा। इन सब के अलावा कार, रेल में सफ़र करने के लिए 440 लीटर प्रति महीना डीजल और 290 लीटर प्रति महीना पेट्रोल मिलता है। यह अब तय की गई दूरी के हिसाब से मिला करेगा। इन सबके अलावा और भी बहुत सारी सहूलतें विधायकों, मन्त्रियों आदि को देने की तैयारी ज़ोर-शोर से चल रही है। बिल बनने के बाद जनता को निचोड़ कर जमा होने वाले धन का बँटवारा शुरू हो जायेगा। हर विधायक को 40,000 रुपये का मासिक फ़ायदा होगा।
यह रिपोर्ट पेश होने के बाद मन्त्रियों ने आवाज़ उठानी शुरू कर दी कि उनके वेतन में की जा रही यह बढ़ोत्तरी उन्हें मंजूर नहीं। वे आईपीएस, आईएएस अधिकारियों के बराबर लाखों में महीनावार वेतन चाहते हैं। मन्त्रियों की माँग पर भी विचार होना शुरू हो चुका है। मन्त्रियों के वेतन में इस प्रकार की बढ़ोत्तरी मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में पूरी तरह सम्भव है। उनके वेतन में इस तरह की बढ़ोत्तरी होने पर कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी।
पंजाब की जनता भयंकर ग़रीबी झेल रही है। मज़दूर हाड़तोड़ मेहनत से भी परिवार का खर्च नहीं चला पा रहे हैं। नौजवान रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। पंजाब में लाखों लोग झुग्गी-झोपड़ियों में, सड़कों के किनारे, पुलों के नीचे दिन काट रहे हैं। लोग बिना इलाज के दम तोड़ रहे हैं। इस सबके साथ-साथ आसमान छू रही क़ीमतें कहर बरपा कर रही हैं। आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्याओं का रुझान बढ़ता जा रहा है।
बदहाल जनता के लिए सरकार के पास कुछ नहीं हैं। नाम की स्कीमें चलाई जाती हैं। आटा-दाल स्कीम का खासा ढिंढोरा पीटा गया था। इस स्कीम का लाभ ग़रीब जनता के एक छोटे से हिस्से को मिल रहा है। जब जनता की बात आती है तो ख़ज़ाना खाली होता है लेकिन विधायकों-मन्त्रियों को किसी चीज़ की कमी न रहे इसके लिए कहीं से भी इन्तज़ाम कर लिया जायेगा। सभी जानते हैं कि इन परजीवियों को मिलने वाली सहूलियतों का सारा बोझ जनता पर ही डाला जायेगा। जनता की जेब पर डाका डाल कर ही इनका घर भरा जायेगा।
चुनाव कोई ग़रीब व्यक्ति तो लड़ नहीं सकता। अगर चुनाव में खड़ा भी हो जाये तो जीत नहीं सकता। पंजाब विधानसभा में करोड़पतियों-अरबपतियों का डेरा है। राजनीति आज सबसे अधिक मुनाफ़े वाला धन्धा बन चुकी है। ये सभी वोट-बटोरू नेता चुनावों के दौरान चन्दे के रूप में पूँजीपतियों से भी पैसा बटोरते हैं और बदले में उनकी खूब सेवा करते हैं। इनमें से अनेकों तो खुद भी उद्योगपति हैं, सैकड़ों-हजारों एकड़ जमीन के मालिक हैं, ट्रांसपोर्टर हैं, बड़े-बड़े बिजनसमैन हैं। सत्ता में आने के बाद ये विकास कार्यों के लिए मिलने वाले धन में बड़े-बड़े हिस्से भी डकार जाते हैं। घूस से ये लोग बेहद कमाई करते हैं। यह बातें खासतौर पर इसलिए इंगित की जा रही है क्योंकि कोई विधायकों का वेतन सिर्फ़ 4,000 रूपये होने के कारण उनसे हमदर्दी रखते हुए यह कह सकता है कि वेतन बढ़ाया जाना जायज़ है। असल में सरकार से मिलने वाला वेतन-भत्ता तो बहुत मामूली है। उनकी असल कमाई तो अन्य रास्तों से होती है जिसका ऊपर ज़िक्र किया जा चुका है। लेकिन उनका पेट इससे भी नहीं भरता। उनकी भूख की कोई सीमा नहीं है। हालांकि इन्हें सरकार की तरफ़ से पहले भी अच्छी-खासी सहूलियतें मिलती है लेकिन वे तो सरकारी ख़ज़ाने से जनता की गाढ़़ी कमाई का और भी बड़ा हिस्सा चाहते हैं।
विधायकों-मन्त्रियों के वेतन-भत्तों आदि में भारी बढ़ोत्तरी करने की इस प्रक्रिया से एक बार फिर भारतीय पूँजीवादी जनतन्त्र की पोल खुलती जा रही है। तरह-तरह के हथकण्डे अपनाकर जनता की के वोट हासिल करके कुर्सी पर बैठने के बाद यहाँ कोई जनता की सेवा नहीं करता। जनता की बदहाली दूर करने के लिए इनमें से कोई नेता चिन्तित नहीं है। इन्हें चिन्ता होती है तो बस यही कि वे कैसे जनता को अधिक से अधिक लूट-खसोटकर अपनी तिज़ोरियाँ भरें।
बिगुल, सितम्बर 2009
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