सुब्बोत्निक पर लेनिन
1 मई 1920 को रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) की केन्द्रीय समिति ने राष्ट्रव्यापी सुब्बोत्निक संगठित किया। उस दिन सर्वत्र देश में लोगों ने सुब्बोत्निक पर काम किया। फ़ौजी रंगरूट और मैं भी – यह क्रेमलिन में था – क्रेमलिन चौक में कुछ काम करने के लिए गये। उस समय क्रेमलिन चौक अंशतः तरह-तरह के कूड़े-करकट और निर्माण-सामग्रियों से भरा हुआ था तथा इससे सामान्य फ़ौजी ट्रेनिग में बाधा पड़ती थी।
कोर्स-कमिसार के रूप में मैं दायें बाजू था। तभी क्रेमलिन कमाण्डेण्ट मेरे पास आये और कहा:
“साथी लेनिन सुब्बोत्निक में हिस्सा लेने के लिए आये हैं।”
मैंने इल्यीच को देखा। वह पुराने सूट और जूतों में हमसे कुछ क़दम दूर खड़े आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे।
मैंने उन्हें सुझाव दिया कि वरिष्ठ साथी के रूप में उन्हें हमारे साथ मेरे दायें खड़ा होना चाहिए। उन्होंने अपना स्थान बड़ी फुर्ती से यह जल्दी-जल्दी कहते हुए ग्रहण कर लिया:
“बस बता दीजिये कि मुझे क्या करना है।”
सुब्बोत्निक के संचालक ने आदेश दिया:
“दायें – घूम!”
हमें जो काम करना था, उसकी ओर बढ़े। हमें दो-दो की जोड़ियों में काम करना था और इस प्रकार व्लादीमिर इल्यीच और मैं लट्ठे ढोने लगे।
वह लट्ठे के पतले सिरे की ओर न जाकर मोटे सिरे की ओर चले गये और उसे पकड़कर उठाने की कोशिश करने लगे, जबकि मैं चाहता था कि वह लट्ठे को पतले सिरे की ओर से पकड़कर उठायें। हम इस पर बहस करने लगे।
“आपको,” उन्होंने कहा, “मुझसे भारी वजन ले जाना पड़ता है।”
मैंने उन्हें दिखाया कि मैं ठीक कर रहा हूँ। “क्योंकि,” मैंने उनसे कहा, “आप 50 साल के हैं और मैं 28 साल का।”
उन्होंने बड़े अच्छे ढंग से काम किया। वह धीरे-धीरे नहीं, बल्कि दौड़कर दूसरों से आगे निकल जाते थे, मानो वह यह दिखाना चाहते हों कि तेज़ी से काम करना ज़रूरी है। मैं थक गया और वस्तुतः काम कर रहे सभी लोग सुस्ताने के लिए बैठ गये। साथी लेनिन रंगरूटों के साथ बैठ गये।
सूरज तेज़ी से चमक रहा था और संगीत काम करते हुए लोगों को प्रेरणा प्रदान कर रहा था। उस क्षण सभी ने महसूस किया कि शारीरिक श्रम से जितनी ख़ुशी मिलती है, उतनी किसी भी चीज़ से नहीं। टोली में से किसी ने साथी लेनिन की ओर एक सिगरेट बढ़ायी।
“नहीं, शुक्रिया, मैं सिगरेट नहीं पीता,” उन्होंने उत्तर दिया। “मुझे याद है कि जब मैं माध्यमिक स्कूल में पढ़ता था, तो मैंने दूसरे लड़कों के साथ इतनी सिगरेटें पी थीं कि सर चकराने लगा था। तबसे मैंने कभी सिगरेट नहीं पी।”
मध्यान्तर के बाद हमें कुछ बलूत की भारी सिल्लियाँ ले जानी थीं। छः-छः लोगों ने मिलकर उन्हें थूनियों पर उठाकर ढोया। उनकी ढुलाई के दौरान हमने एक-दो बार आराम किया।
व्लादीमिर इल्यीच ने रंगरूटों के साथ चार घण्टे काम किया।
वे चार घण्टे, जो मैंने लेनिन के साथ कठिन शारीरिक श्रम करते हुए बिताये, मेरी स्मृति मे जीवनभर बने रहेंगे।
इ. बोरीसोव
सुब्बोतनिक: यह नाम उस अवैतनिक काम को दिया गया था जो सोवियत संघ के मेहनतकश छुट्टी के दिनों में अथवा अपने काम के घण्टों के बाद स्वेच्छा से देश के लिए करते थे। पहले सुब्बोतनिक (अवैतनिक काम) की व्यवस्था 10 मई, 1919 को, एक शनिवार के दिन मास्को-कज़ान रेल के सोरटीरोवोश्नाया डिपो के मज़दूरों की पहलक़दमी पर की गयी थी (रूसी भाषा में शनिवार को सुबोता कहते हैं, इसलिए इस आन्दोलन का नाम सुब्बोतनिक पड़ा था)। सोवियत सत्ता के प्रारम्भिक वर्षों में तथा महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध के दौरान सुबोतनिकों के इस आन्दोलन ने काफ़ी व्यापक रूप ग्रहण कर लिया था। लेनिन सहित सभी कम्युनिस्ट नेता खुद इन सुब्बोतनिकों में भाग लेते थे और मेहनतकशों को प्रेरित करते थे कि वे अपने राज को मज़बूत करने के लिए स्वेच्छा से काम करें। यह इस बात का भी प्रतीक था कि जब मज़दूर वर्ग शोषक मालिकों के लिए नहीं बल्कि खुद अपने लिए काम करता है तो श्रम करना बोझ नहीं रह जाता बल्कि उत्साह और आनन्द का स्रोत बन जाता है।
बिगुल, अप्रैल 2009
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन