गोरखपुर में शराब माफिया के ख़िलाफ़ नौजवान भारत सभा का संघर्ष रंग लाया
गोरखपुर के जंगल तुलसीराम बिछिया मलिन बस्ती में खुली सरकारी देशी शराब की दुकान मवालियों, अपराधियों और गुण्डों का अड्डा बनी हुई है। महिलाओं के साथ छेड़छाड़, मार-पीट, गाली-गलौज, पियक्कड़ों की धमाचौकड़ी, टुन्न होकर रास्ते में गिरे रहना रोज-रोज की बात बन चुकी है। इस दुकान का सबसे बुरा प्रभाव नई पीढ़ी पर पड़ रहा है। 14-15 साल के किशोरों का झुकाव शराब की ओर हो रहा है, कितने तो बाकायदा पियक्कड़ बन चुके हैं। शराबखोरी के साथ-साथ जुए की लत भी फैल रही है।
इस दुकान को बस्ती से बाहर हटवाने को लेकर नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में बस्ती के लोग पिछले कई महीनों से आन्दोलन चला रहे हैं। प्रशासन बार-बार आश्वासन देने के सिवा कुछ नहीं कर रहा था। इसके विरोध में गत 6 अप्रैल को नौभास की अगुवाई में बस्ती के करीब 300-400 लोगों ने शराबखाने के सामने सड़क जाम करके ज़बर्दस्त प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलाएँ और नौजवान शामिल हुए।
धरनास्थल पर कार्यकर्ताओं ने कहा कि छोटे-छोटे काम-धन्धे करके मेहनत-मशक्कत से गुजारा करने वाले लोग जीवन की परेशानियों, तकलीफों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं लेकिन इसी चक्कर वे कब पेशेवर पियक्कड़ बन जाते हैं उन्हें खुद ही पता नहीं चलता है। जब उनकी खुमारी उतरती है तो अपने-आप को पहले से ज्यादा परेशान और जकड़ा हुआ पाते हैं। वे खुद तो तबाह होते ही हैं, उनका पूरा परिवार और बच्चों का भविष्य भी तबाह हो जाता है। सरकार सबकुछ जानकर भी दोगली नीति चलाती है। एक ओर वह करोड़ों रुपये खर्च करके शराबखोरी के खिलाफ प्रचार करती है और दूसरी ओर बस्ती-बस्ती में शराब की दुकानें खोलती है। इस मलिन बस्ती में मुहल्लेवासियों की इच्छा के खिलाफ सरकारी गुण्डई के दम पर दारू का अड्डा खोले रखना क्या साबित करता है? सरकार को आम नागरिकों और उनके परिवारों की फिक्र नहीं है बल्कि शराब की बिक्री से होने वाली अरबों रुपये की कमाई की चिन्ता है। हकीकत तो यह है कि सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, सब यही चाहती हैं कि हम अपने शोषण-अत्याचार, गरीबी-बेरोजगारी, महंगाई-भ्रष्टाचार और रोज-रोज होने वाले अपमान के बारे में न सोचें और नशे में डूबे रहें।
पहले तो शराब के ठेकेदार के लोगों ने नौजवान सभा के कार्यकर्ताओं को डराने-धमकाने की कोशिश की लेकिन लोगों के उग्र तेवरों को देखकर प्रशासन को बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा। थाने में पुलिस अधिकारियों और बस्ती के लोगों की मौजूदगी में ठेकेदार ने कहा कि वह तीन दिन के अन्दर अपनी दुकान हटा लेगा। इसके बाद प्रदर्शन समाप्त किया गया। लेकिन तीन दिन का समय बीत जाने के बाद भी दुकान बस्ती से हटाई नहीं गयी है। साफ है कि ठेकेदार को पुलिस और नेताओं से शह मिली हुई है। उल्लेखनीय है कि क्षेत्र के भाजपा पार्षद ने अपने लेटरपैड पर आबकारी विभाग को यह लिखकर दे दिया था कि बस्ती के लोग शराबखाना हटवाना नहीं चाहते हैं। नौभास द्वारा इस पत्र की प्रतियाँ बस्ती में बाँटने के बाद उसने झेंपते हुए आन्दोलन का समर्थन करने की बात कही लेकिन अन्दर-अन्दर ठेकेदार का समर्थन जारी है।
नौभास और बस्ती के लोगों ने दुकान हटने तक आन्दोलन पर डटे रहने का संकल्प किया है।
बिगुल, अप्रैल 2009
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