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(मज़दूर बिगुल के जनवरी 2011 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
21वीं सदी के पहले दशक का समापन : मजदूर वर्ग के लिए आशाओं के उद्गम और चुनौतियों के स्रोत
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
माइक्रो फ़ाइनेंस : महाजनी का पूँजीवादी अवतार / आनन्द
श्रम कानून
आन्दोलन : समीक्षा-समाहार
हैरिंग इण्डिया में मजदूरों का शानदार संघर्ष और अर्थवादी सीटू का विश्वासघात
एलाइड निप्पोन में सीटू की ग़द्दारी के कारण आन्दोलन दमन का शिकार और मजदूर निराश
मज़दूर आंदोलन की समस्याएं
आपने ठीक फ़रमाया मुख्यमन्त्री महोदय, बाल मजदूरी को आप नहीं रोक सकते! / मीनाक्षी
समाज
त्रिपुर (तमिलनाडु) के मजदूर आत्महत्या पर मजबूर : मजदूरों को संगठित संघर्ष की राह अपनानी होगी
बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्यायपालिका
पूँजी के इशारों पर नाचती पूँजीवादी न्याय व्यवस्था – विनायक सेन को आजीवन क़ैद / अभिनव
लेखमाला
माँगपत्रक शिक्षणमाला – 3 ठेका प्रथा के ख़ात्मे की माँग पूँजीवाद की एक आम प्रवृत्ति पर चोट करती है
मज़दूर बस्तियों से
कौन लेगा गरीबों की सुध? / प्रेम सागर, झिलमिल, दिल्ली
गतिविधि रिपोर्ट
झिलमिल और बादली औद्योगिक क्षेत्र में माँगपत्रक आन्दोलन का सघन प्रचार अभियान
काकोरी के शहीदों की याद में ‘अवामी एकता मार्च’
कला-साहित्य
कविता – य’ शाम है / शमशेर बहादुर सिंह
आपस की बात
कविता – तुम्हारी चुप्पी को क्या समझा जाए! / गौरव, दिल्ली
शहीदों के सपनों को साकार करना होगा / रासलाल ,दिल्ली
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन