एलाइड निप्पोन में सीटू की ग़द्दारी के कारण आन्दोलन दमन का शिकार और मजदूर निराश
बिगुल संवाददाता
एलाइड निप्पोन अभी कुछ समय तक अख़बारों की सुर्खियों में बना रहा था। ज्ञात हो कि साहिबाबाद की एलाइड निप्पोन फैक्टरी में मजदूरों ने अपने ऊपर प्रबन्धन के गुण्डों द्वारा फायरिंग के जवाब में आत्मरक्षा में जो संघर्ष किया, उसमें प्रबन्धन का एक आदमी मारा गया। इसके बाद, मालिकों के इशारे पर ग़ाजियाबाद प्रशासन ने मजदूरों पर एकतरफा कार्रवाई करते हुए दर्जनों मजदूरों को गिरफ्तार किया और यह रपट लिखे जाने तक मजदूरों की धरपकड़ जारी थी। प्रबन्धन के लोगों पर गोली चलाने और मजदूरों को उकसाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गयी। साफ था कि प्रशासन मालिकों की तरफ से कार्रवाई कर रहा था। ऐसे में सीटू ने इस संघर्ष में प्रवेश किया और मजदूरों के संघर्ष को अन्दर से कमजोर और खोखला बना दिया। सीटू ने न तो गिरफ्तार मजदूरों को छुड़वाने के लिए कोई जुझारू संघर्ष किया और न ही प्रबन्धन पर कार्रवाई की माँग को लेकर कोई आक्रामक रुख़ अपनाया। उल्टे सीटू ने मजदूरों के दिमाग़ में ही ग़लती होने की बात बिठाना शुरू कर दिया। दोगलेपन की हद तो तब हो गयी, जब सीटू ने सिर्फ अपने कुछ लोगों को छोड़ने की दरख्वास्त ग़ाजियाबाद प्रशासन से की। बाकी मजदूरों की उसे कोई फिक्र नहीं थी। मजदूरों पर प्रशासन ने आतंक का राज कायम करने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी है। कारख़ाने के इर्द-गिर्द के इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया गया है और कारख़ाने को इसके तहत खोल दिया गया है। गिरफ्तार मजदूरों की कोई सुनवाई नहीं है; सीटू अब दृश्यपटल से ग़ायब है (मजदूरों के संघर्ष को तोड़ने और पस्त करने का उसका काम जो पूरा हो गया); बचे-खुचे मजदूर निराशा और पस्तहिम्मती का शिकार हैं और शोषण की मशीनरी पुराने ढर्रे पर लौट रही है। मालिक सन्तुष्ट और निश्चिन्त है और प्रशासन उसकी सेवा में चाक-चौबन्द! सीटू मालिकों की चाकरी करने का अपना कर्तव्य पूरा कर आराम फरमा रही है!
अब तक मजदूरों को मालिकान- पुलिस-प्रशासन-श्रम विभाग आदि से आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। कारख़ाने की यूनियन सीटू के बताये रास्ते से अभी तक कुछ हासिल नहीं कर पायी है। मजदूर थक रहा है। कारख़ाने में कुछ मजदूर काम पर भी लौटे हैं। करीब 150 मजदूर हर शिफ्ट में काम कर रहे हैं। ये सभी मजदूर ठेके पर काम करते हैं। मालिक अपनी चाल चलते हुए नये मजदूर ठेके पर भर्ती करवाकर उत्पादन का टारगेट पूरा कर रहा है। इसके अलावा स्थायी मजदूरों में से कुछ मजदूर भी काम पर जा रहे हैं जिनकी रिटायरमेण्ट नजदीक है। थोड़े से और मजदूर भी काम पर जा रहे हैं लेकिन कुल मिलाकर स्थायी मजदूरों की एक छोटी-सी गिनती ही इस काम में लगी हुई है। श्रम विभाग ने 13 जनवरी की तारीख़ दी है वार्ता के लिए। लेकिन आज तक की वार्ता से क्या हासिल हुआ है, यह भी मजदूरों को सोचना होगा और बिना संघर्ष किये कितना मिल जायेगा यह भी अन्दाजा लगाना होगा। यहाँ भी सीटू की वही पॉलिसी काम कर रही है: संघर्ष एक बार करने की बजाय लम्बा खींचकर टुकड़ों में हड़ताल करने का जुबानी जमाख़र्च करो, ज्ञापन और वार्ता के सहारे समस्याओं के समाधान का भ्रम मजदूरों के दिमाग़ में बैठाओ और इस प्रक्रिया में मजदूरों को थका दो और इस बात का हामी बना दो कि वे लड़ नहीं सकते और हारना ही उनकी नियति है! सीटू इस बात की हर सम्भावना को ख़त्म करने की हर सम्भव कोशिश करता है कि एक ही बार डटकर हड़ताल की जाये, उसमें स्थायी, कैजुअल और ठेका सभी मजदूरों को साथ लिया जाये और घेरा डाल दिया जाये। सीटू का रास्ता मजदूरों को थका रहा है। इस नये साल में वायदा किया गया था कि मजदूरों को कारख़ाने में दोबारा काम करने के लिए कोई बदले की कार्रवाई नहीं की जायेगी लेकिन इसके उलट जेल में कैद मजदूरों की संख्या 13 से भी बढ़ गयी है क्योंकि पुलिस अभी भी मजदूरों को उठाना बन्द नहीं कर रही। थके-हारे मजदूर बीच-बीच में गाँव की तरफ मुँह कर रहे हैं। पिछले साल की नवम्बर से मजदूर अपनी माँगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। सीटू अपना असली चरित्र दिखलाते हुए मजदूरों के बीच बिगुल मजदूर कार्यकर्ताओं के बारे में झूठा प्रचार भी कर रही है कि ये लोग मालिकों से मिल जाते हैं; कभी यह कहते हैं बिगुल मजदूर दस्ता के लोग संघर्ष को बीच में छोड़कर चले जाते हैं; कभी यह कहते हैं कि ये कोई बड़ी फेडरेशन से नहीं जुड़े, इनकी कोई रजिस्टर्ड यूनियन नहीं है। कई प्रकार के भ्रम वे मजदूरों के बीच फैला रहे हैं। अभी तक दिल्ली से पंजाब तक तथा गोरखपुर के आन्दोलनों में बादाम मजदूर यूनियन, कारख़ाना मजदूर यूनियन और पूर्वांचल कारख़ाना मजदूर यूनियन के समक्ष कोई फेडरेशन व कानूनी रजिस्ट्रेशन न होना आड़े नहीं आया। बल्कि मजदूरों की व्यापक एकता तथा उनके संघर्ष के साथ इलाके की आम जनता तथा सामाजिक सरोकार रखने वाले संगठनों और लोगों की एकजुटता से इन संघर्षों की जीत हुई है। कानूनी कार्रवाई व ज्ञापन देने के साथ-साथ घेरा डालो और डेरा डालो की नीति से पूर्ण हड़ताल से ही जीत हासिल हुई है। मात्र यही एक सही रास्ता हो सकता है जो एलाइड निप्पोन के मजदूरों को भी समझना होगा और अपनाना होगा। फिलहाल, यह संघर्ष पीछे की तरफ जा रहा है। ऐसे में मजदूरों को दो घड़ी सुस्ताकर नये सिरे से संगठित होना होगा, सीटू जैसे मजदूर वर्ग के ग़द्दारों को किनारे करना होगा, और अपनी यूनियन के दम पर अन्त तक लड़ने की इच्छाशक्ति के साथ हड़ताल करनी होगी, इलाकाई पैमाने पर मजदूरों को साथ लेना होगा और कानूनी कदमों के साथ-साथ पूर्ण हड़ताल के साथ शोषण का चक्का जाम करना होगा।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2011
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