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(मज़दूर बिगुल के अक्टूबर 2013 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
सावधान! फ़ासीवादी शक्तियाँ अपने ख़तरनाक खेल में लगी हैं!
श्रम कानून
रहे-सहे श्रम अधिकारों के सफ़ाये की तेज़ होती कोशिशें
संघर्षरत जनता
लुधियाना में टेक्सटाइल मज़दूर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर
महान शिक्षकों की कलम से
दुश्मन द्वारा हमला किया जाना बुरी बात नहीं बल्कि अच्छी बात है / माओ त्से-तुङ
बुर्जुआ जनवाद – चुनावी नौटंकी
पूँजीवादी लोकतंत्र का फटा सुथन्ना और चुनावी सुधारों का पैबन्द / मीनाक्षी
स्वास्थ्य
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में दिमागी बुखारः 35 वर्ष से जारी है मौत का ताण्डव / डॉ अमृत
डेंगू — लोग बेहाल, “डॉक्टर” मालामाल और सरकार तमाशाई / डॉ अमृत
लेखमाला
इतिहास
पेरिस कम्यून: पहले मज़दूर राज की सचित्र कथा (ग्यारहवीं किस्त)
औद्योगिक दुर्घटनाएं
मेट्रो मज़दूर उमाशंकर – हादसे का शिकार या मुनाफ़े की हवस का
कला-साहित्य
अवतार सिंह ‘पाश’ की दो कविताएँ
आपस की बात
ख़ामोशियों को तोड़िये, आवाज़ दीजिये / प्राची, इलाहाबाद
मज़दूरों की कलम से
एक मज़दूर की मौत! / गुड़गावं से एक मज़दूर
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन