मेहनतकश साथियो, संघ परिवार के लग्गू-भग्गुओं के चाल-चरित्र-चेहरे को पहचानो!
शुचिता और संस्कारों के भाजपाई ठेकेदार हमेशा ख़ुद अमानवीय-अनैतिक धन्धों और घृणित अपराधों में लिप्त क्यों पाये जाते हैं?
अरविन्द
संघ परिवार और भाजपा से जुड़े लोग अक्सर ही देश में प्राचीन संस्कृति, संस्कारों, शुचिता, देशभक्ति और राष्ट्रवाद की दुहाई देते नज़र आ जाते हैं। बहुत सारे लोग तब ताज्जुब में पड़ जाते हैं जब संघियों-भाजपाइयों को स्त्री उत्पीड़न, बलात्कार, घरेलू कामगारों को यातना देने, बच्चों की तस्करी, बन्धक बनाना, यौन शोषण और हत्या तक के तरह-तरह के अवैध-अनैतिक धन्धों में शामिल पाते हैं। वैसे तो तमाम दलों और संगठनों में नाना प्रकार के लोग पाये जा सकते हैं लेकिन भाजपा और संघ परिवार में अक्सर ही घिनौनेपन की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। अतीत से लेकर वर्तमान तक में फ़ासीवादियों के दावों और हक़ीक़त में ज़मीन-आसमान का अन्तर पाया जाता रहा है। हिटलर और मुसोलिनी के प्यादे भी एक तरफ़ प्राचीन गौरव, राष्ट्रवाद, संस्कार और ईमानदारी की बात करते पाये जाते थे और दूसरी तरफ़ उनके हाथ हर प्रकार की गन्दगी से लिथड़े होते थे। तमाम तरह के फ़ासीवादियों का बस एक ही काम होता है शुचिता और संस्कारों की जुमलेबाज़ी कर अपनी गन्दगी छिपाना और बड़ी पूँजी की सेवा करना। भारतीय फ़ासीवादियों के “संस्कारी” चेहरे के पीछे की असलियत से इनकी जन्मकुण्डली की भी सही निशानदेही की जा सकती है। पिछले कुछ मामलों पर नज़र डालें तो यह साफ़ हो जाता है कि फ़ासीवादियों की कथनी और करनी में कितना फ़र्क़ हो सकता है।
– उत्तराखण्ड में अनैतिक काम नहीं करने पर भाजपा नेता विनोद आर्य का बेटा पुलकित आर्य उसके रिज़ॉर्ट की कर्मचारी युवती अंकिता की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार। उसका रिज़ॉर्ट कई बड़े भाजपा नेताओं-मंत्रियों के लिए अय्याशी का अड्डा होने का आरोप।
– झारखण्ड के रांची से भाजपा नेत्री और महिला विंग की राष्ट्रीय कार्यसमिति की सदस्या सीमा पात्रा ने अपनी नौकरानी को आठ साल तक बन्धक बनाया, उसके दांत तोड़े और जीभ से मल-मूत्र तक चटवाया!
– मेघालय का भाजपा राज्य उपाध्यक्ष बर्नार्ड मराक छोटे बच्चों और महिलाओं को बन्धक बनाकर वेश्यालय चलाने में संलग्न पाया गया।
– छत्तीसगढ़, राजनांदगाँव में शराब तस्करी के आरोप में भाजपा नेता जयराम दुबे गिरफ़्तार।
– पश्चिमी बंगाल, जलपाईगुड़ी में बाल तस्करी के आरोप में भाजपा नेत्री जूही चौधरी गिरफ़्तार की गयी और मामले में भाजपा के नेताओं कैलाश विजयवर्गीय और रूपा गांगुली के नाम भी जुड़े।
– उत्तरप्रदेश में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी क़रार।
– राजस्थान में आरएसएस प्रचारक निम्बाराम पर 20 करोड़ के सीडी घूसकाण्ड के लिए भ्रष्टाचार दस्ते ने किया मुक़दमा दर्ज।
– हैदराबाद, मालेगाँव, समझौता ट्रेन विस्फोट मामलों में आरएसएस नेताओं का हाथ होना पाया गया। गुजरात, दिल्ली, उत्तरप्रदेश से लेकर देश के विभिन्न इलाक़ों में हुए साम्प्रदायिक दंगों में संघ परिवार की स्पष्ट भूमिका रही है।
– कर्नाटक, बीजापुर में श्री राम सेने नाम के दक्षिणपन्थी समूह के लोगों ने दंगे भड़काने की नीयत से सरकारी इमारत पर पाकिस्तान का झण्डा फहराया।
– कर्नाटक विधानसभा में भाजपा के तीन विधायक अश्लील वीडियो देखते पाये गये, सदस्यता रद्द हुई लेकिन बाद में येदुरप्पा सरकार में उप-मुख्यमंत्री बनाया गया।
ये तो चन्द ही उदाहरण हैं जिनमें भाजपा व संघ के कारकूनों की सच्चाई से पर्दा उठाया गया है। यदि इनके एक-एक कारनामे का कच्चा-चिट्ठा खोला जाये तो एक बड़ा पुराण भी लिखा जा सकता है। भला ऐसा क्यों होता है कि “संस्कार” और “प्राचीन भारतीय हिन्दू संस्कृति” के ढिंढोरची ही कुसंस्कारों की गटरगंगा में सबसे अधिक गोते लगाते पाये जाते हैं? असल बात यह है कि फ़ासीवाद के मूल में ही पर्देदारी की प्रवृत्ति निहित होती है। इसका काम ही पूँजीवाद के असल अन्तरविरोधों को छुपाकर नक़ली अन्तरविरोध खड़ा करना होता है। जनता की असली समस्याओं से उसका ध्यान भटकाकर उसे प्रतिक्रिया की दिशा में धकेलना होता है। फिर भला अपने भ्रष्टाचार और चरित्र की गन्दगी को संघी संस्कारों के चोग़े तले छुपाते हैं तो उसमें विस्मय कैसा?!
संघ परिवार के लोगों की चिकनी-चुपड़ी बातों पर यक़ीन करके इनके संस्कारों और शुचिता का भरोसा कोई मूर्ख ही कर सकता है। संघी-भाजपाइयों के चरित्र में उतने ही संस्कार होते हैं जितनी सावरकर के चरित्र में वीरता थी। असल में संस्कारों का इनका सारा ढिंढोरा इनके चरित्र और आत्मा पर पड़े बदनुमा दाग़ों को छिपाने के लिए होता है। हर प्रकार के फ़ासीवादियों का बस एक ही काम होता है और वह होता है जनता को शुचिता और संस्कार का पाठ पढ़ाते हुए उसे फ़र्ज़ी मुद्दों के आधार पर बाँटकर आपस में लड़ाना और अपने पूँजीपति आक़ाओं की तहे दिल से सेवा करना। इटली, जर्मनी ही नहीं बल्कि भारत के वर्तमान दौर से भी यह स्पष्ट हो जाता है।
आज एक तरफ़ प्रधानमंत्री की ‘न खाऊँगा न खाने दूँगा’ की जुमलेबाज़ी चलती रहती है लेकिन दूसरी तरफ़ देश के कच्चे माल, संसाधनों और श्रमशक्ति को देशी-विदेशी पूँजीपति डकार रहे हैं। चोर-लुटेरे जनता की गाढ़ी कमाई के हज़ारों करोड़ रुपये लेकर विदेशों में चम्पत हो जा रहे हैं और सरकार लकीर पीटती रह जाती है। संघी-भाजपाई दोनों हाथों से माल लूट रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा जनता को कर्तव्यपरायणता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। जनता को त्याग और बलिदान की शिक्षा दी जा रही है जबकि देश का पूँजीपति वर्ग और नेताशाही जोंक की तरह जनता का ख़ून चूसने में लगे हुए हैं।
फ़ासीवाद और इसकी राजनीति एक आधुनिक पूँजीवादी परिघटना है। फ़ासीवादी विचार और संगठन तो पूँजीवाद के हर दौर में मौजूद रह सकते हैं किन्तु फ़ासीवाद सत्ता तक तभी पहुँचता है जब पूँजीवादी व्यवस्था संकट में घिरी होती है और टुटपुँजिया वर्ग को गुमराह करके उसका एक प्रतिक्रियावादी आन्दोलन खड़ा किया जाता है। फ़ासीवाद निम्न मध्यमवर्ग का एक प्रतिक्रियावादी आन्दोलन होता है जिसका नेतृत्व फ़ासीवादी विचारधारा से लैस तमाम तरह के रुग्णमना व्यक्तित्व करते हैं। मरणासन्न पूँजीवाद की गन्दगी पर पनपने वाला फ़ासीवाद आज हमारे समाज को बर्बरता और रुग्णता की ओर धकेल रहा है। फ़ासीवादियों के नारों-जुमलों और असल हक़ीक़त में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ होता है। जनता को इनके फ़र्ज़ी दावों और जुमलों के झाँसे में आने की बजाय इनकी असलियत को पहचानना चाहिए और इन्हें बेपर्द करना चाहिए।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2022
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