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(मज़दूर बिगुल के मार्च 2022 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ़ फ़ाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-ख़बरों आदि को यूनिकोड फ़ॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
संघर्षों के बीच
दिल्ली की 22,000 आँगनवाड़ी कर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल; केजरी-मोदी सरकारों द्वारा काला क़ानून ‘हेस्मा’ थोपने से लड़ाई रुकेगी नहीं!
आँगनवाड़ी वर्कर्स और हेल्पर्स तथा अन्य स्कीम वर्कर्स के शोषण से पूँजीपति वर्ग को और समूची पूँजीवादी व्यवस्था को कैसे फ़ायदा होता है? देखरेख करने वाले काम (केयर वर्क) का राजनीतिक अर्थशास्त्र / अभिनव
चुनाव
पंजाब में “आप” की सरकार बनने से क्या राज्य की जनता के जीवन में कोई वास्तविक बदलाव आयेगा?
मण्डल-कमण्डल की राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू : त्रासदी से प्रहसन तक / विवेक
संघी ढोल की पोल
‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के बहाने मोदी ने की पूँजीपतियों के मन की बात; अधिकारों को भूल जायें, चुपचाप “कर्तव्यों” का पालन करें! / आनन्द
शान्तिश्री धुलिपुड़ी पण्डित की नियुक्ति, यानी जेएनयू पर आरएसएस-भाजपा का हमला जारी रहेगा! / लता
जिनकी मेहनत से दुनिया जगमगा रही है वे अँधेरे के साये में जी रहे हैं / धर्मराज, अविनाश
समसामयिक
अन्तर्राष्ट्रीय
विरासत
भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत (23 मार्च) की 91वीं बरसी पर; युद्ध आज भी जारी है… / आशीष
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के अवसर पर; पितृसत्ता के ख़िलाफ़ कोई भी लड़ाई पूँजीवाद विरोधी लड़ाई से अलग रहकर सफल नहीं हो सकती! / वारुणी
पाठकों से बातचीत
मज़दूर बिगुल के सभी पाठकों और शुभचिन्तकों से…
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन