आपस की बात

मेरा नाम अमित है। मैं हरियाणा के ज़िला हिसार के खरकड़ा गाँव के एक ग़रीब दलित मज़दूर परिवार से ताल्लुक़ रखता हूँ। मैंने जातिगत भेदभाव भी झेला है। फ़िलहाल मैं कॉलेज छात्र हूँ लेकिन ज़रूरत पड़ने पर मैं मज़दूरी भी करता हूँ। मेरे रिश्तेदार के गाँव में बिगुल मज़दूर दस्ता के प्रचार अभियान के दौरान मई 2021 में मुझे मज़दूर बिगुल का अंक पहली बार मिला था। मुझे बिगुल पढ़कर ऐसा अहसास हुआ जैसे इसमें मेरे ही मनोभावों को अभिव्यक्त किया गया हो। तब से मैं नियमित तौर पर मज़दूर बिगुल अख़बार पढ़ता हूँ और इसके वितरण में भी सहयोग देने का प्रयास करता हूँ।
मुझे लगता है मज़दूर बिगुल को और भी व्यापक रूप से जनता के हर हिस्से तक पहुँचाया जाना चाहिए। यह अख़बार एक हथियार की तरह है जोकि हमारे संघर्षों को दिशा देता है, हमें हमारे गौरवशाली अतीत से परिचित कराता है तथा हमें शिक्षित करता है। मैं यह बात भी दावे के साथ कह सकता हूँ कि जातिवाद के ख़िलाफ़ हमारा संघर्ष भी तभी कामयाब हो सकता है जब तमाम जातियों के ग़रीब लोग इसके ख़िलाफ़ वर्गीय एकजुटता के साथ उठ खड़े होंगे। साथ ही पूँजीवादी व्यवस्था ही मुख्य तौर पर आज जातीय शोषण को बरक़रार रखे हुए है। मुझे पूरा यक़ीन है कि मज़दूर बिगुल शोषक जमात की नींद उड़ा देगा जिन्होंने हमारा जीना हराम कर रखा है।

– अमित, गाँव खरकड़ा,
ज़ि‍ला हिसार, हरियाणा

मेरा नाम सन्दीप कुमार है। मैं एक ग़रीब मज़दूर परिवार में पैदा हुआ था। फ़िलहाल मैं सोनीपत नगर निगम में ठेकेदार कम्पनी के तहत एक सफ़ाई कर्मचारी के तौर पर काम करता हूँ। वैसे तो मैं बीए पास हूँ लेकिन कोई और रोज़गार नहीं मिलने के चलते मुझे इस काम में लगना पड़ा है। मुझे लगता है कि कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता है। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि सफ़ाई कर्मचारी का काम बेहद जोखिम-भरा काम है। हमें काम करने के दौरान किसी भी प्रकार का कोई भी सुरक्षा का साधन नहीं दिया जाता। वैसे तो हम अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों में आते हैं लेकिन नगर निगमों और सरकारों को हमारे जीने-मरने की कोई चिन्ता नहीं होती है। हमारे लिए कोरोना काल में भी सरकार की ओर से कोई ख़ास सुरक्षा इन्तज़ाम नहीं किया गया। बारिश का समय तो हमारे लिए सबसे मुश्किल वक़्त होता है। ऐसे में हमें रुके हुए नालों और सीवरेज होलों को ख़ाली और साफ़ करना होता है। हमारे कितने ही सफ़ाईकर्मी भाई इस काम के दौरान मौत के मुँह में समा जाते हैं।
मैं पिछले 1 साल से मज़दूर बिगुल अख़बार पढ़ रहा हूँ। मज़दूर बिगुल अख़बार की स्पष्टवादिता और सच को सामने लाने की विशेषता का मैं शुरू से ही प्रशंसक रहा हूँ। सरकार मज़दूर वर्ग के विरुद्ध क्या-क्या षड्यंत्र कर रही है, इस बात को भी बिगुल अच्छे से बताता है। बिगुल हमें मज़दूर वर्ग के इतिहास के बारे में भी बताता है और इससे हमें काफ़ी प्रेरणा मिलती है। पिछले अंक में तेलंगाना किसान आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन पर आये लेख मुझे काफ़ी बढ़िया लगे। मुझे उम्मीद है मज़दूर बिगुल अख़बार ऐसे ही निकलता रहेगा और मज़दूर वर्ग को जगाने का काम करता रहेगा।

– सन्दीप कुमार, सोनीपत

मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2021


 

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